कानून में हो संशोधन जिससे लोगों को मिल सके जल्दी न्याय
डॉ. चन्दर सोनाने
नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड से मिली जानकारी चौंकाने वाली है। देश की विभिन्न अदालतों में अभी तक 4 करोड़ 44 लाख से ज्यादा प्रकरण लंबित हैं। इनमें से करीब आधे 2 करोड़ 7 लाख से भी अधिक मामले तो केवल वकील, पुलिस और अदालतों ने खुद ही अटका रखे हैं। लोगों को इससे जल्दी न्याय नहीं मिल पा रहा है। इसलिए कानून में संशोधन होना चाहिए। इसके लिए प्रकरण के निराकरण में आने वाली हर प्रक्रिया की समय सीमा निश्चित की जानी चाहिए, ताकि लोगों को समय पर न्याय मिल सके।
विभिन्न न्यायालयों में लंबित प्रकरणों में से 97 लाख 40 हजार से अधिक प्रकरण तो ऐसे हैं जो पुलिस ने ही अटकाएँ रखे हैं। इनमें से 33 लाख 50 हजार प्रकरण ऐसे हैं जो मुख्य गवाह की पेशी नहीं होने से अटके हैं। 18 लाख 62 हजार प्रकरण चार्जशीट दायर होने के बावजूद इससे जुड़े दस्तावेज कोर्ट में जमा नहीं होने के कारण रूके हुए हैं। यहाँ आश्चर्यजनक बात यह भी है कि 45 लाख 27 हजार प्रकरणों में आरोपी जमानत लेकर फरार हो गए, जिनका कोई अता-पता नहीं है। इसके अतिरिक्त 10 लाख 67 हजार 33 प्रकरणों में पक्षकारों ने न्यायालय में आना ही छोड़ दिया है। 38 हजार 847 प्रकरण तो एसे हैं, जिसमें रिकॉर्ड ही मिल नहीं रहे हैं।
दुखद खबर यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1 हजार 828 प्रकरण, हाईकोर्ट ने 1 लाख 44 हजार 26 प्रकरण, जिला जज न्यायालय ने 11 हजार 346 प्रकरण और अन्य विभिन्न अदालतों ने 30 लाख 99 हजार 918 प्रकरणों पर स्टे लगा रखा है। ये कुल मामलों का 7.2 प्रतिशत है। इसी तरह कुल लंबित केसों में से 76 लाख 55 हजार 728 प्रकरण तो ऐसे हैं, जिनमें वकील पेश ही नहीं हो रहे हैं। यह कुल मामलों का 17 प्रतिशत है। लंबित 10 लाख 67 हजार 33 मुकदमें ऐसे भी हैं, जिनमें पक्षकारों ने कोर्ट में आना ही छोड़ दिया है। यह कुल लंबित प्रकरणों का 2.4 प्रतिशत है। 2 लाख 6 हजार मामलों में वादी-प्रतिवादी केस लड़ते-लड़ते ही मर चुके हैं, किन्तु उनमें मुकदमों में उनके वारिस अब तक दर्ज ही नहीं हुए है।
हाल ही में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया श्री डी.व्हाय चन्द्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में वकीलों द्वारा मामलों की सुनवाई टालने के बढ़ते प्रकरणों पर गहरी चिंता भी जताई है। उन्होंने यह भी बताया कि सितम्बर से अक्टूबर केवल दो माह के बीच ही 3 हजार 688 मामलों में सुनवाई टालने का अनुरोध वकीलों द्वारा किया गया है। यहीं नहीं अक्टूबर खत्म होने के बाद रोज ऐसे करीब 150 आवेदन लगाए जा रहे है। यदि ऐसे ही आवेदन रोज आते रहे तो इससे लंबित मामलों को तेजी से निपटाने का उद्देश्य ही सफल नहीं हो सकेगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को तारीख पर तारीख देने वाली अदालत नहीं बनाने का भी अनुरोध किया, ताकि पीड़ितों का भरोसा कम नहीं होने पाए। आपने वकीलों से अनावश्यक रूप से सुनवाई नहीं टालने का भी अनुरोध किया।
नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड से मिली जानकारी विचारणीय और गंभीर है। केन्द्र सरकार को इस पर तुरन्त ध्यान देने की आवश्यकता है। यही नहीं न्यायालय के प्रति लोगों का भरोसा कम नहीं होने पाए, इसलिए न्यायालय में लंबित प्रकरणों की समय सीमा तय किया जाना आज बहुत जरूरी हो गया है। जरूरी हो तो कानून में संशोधन भी किया जा सकता है। मुख्य बात इसमें यह भी है कि पीड़ितों को जल्दी और सस्ता न्याय मिलें, इसके लिए वकील, पुलिस, पक्षकार और न्यायालय को संयुक्त रूप से पहल करनी होगी। अन्यथा न्यायालय से लोगों का विश्वास कम होगा जो कि खतरनाक होगा।
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