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उज्जैन में निर्दलीय बने कांग्रेस की उम्मीद


उज्जैन बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल की नगरी  है,जहां देश विदेश से कॉरोड भक्त आते है लेकिन उज्जैन की राजनीती की बात करे तो वो भी अपने आप में अनूठी है यहां  पांच प्रत्याशी, ऐसे है जो  बागी होकर लड़े तो उन्हें कांग्रेस से टिकट मिल गया मतलब कांग्रेस ने बागियों को ज्यादा भरोसा जताया है  लेकिन जो कांग्रेस में थे उन्हें टिकिट नहीं मिला तो उन्होंने पहली बार कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता ने आप का दामन थाम लिया चलिए समझते है इस रिपोर्ट में उज्जैन का चुनावी गणित 

उज्जैन जिले की सात सीटों पर भाजपा ने चार तो कांग्रेस ने पांच प्रत्याशी घोषित किए कर दिए है 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों ही पार्टियां टिकट बांटने में फूंक-फूंककर कदम रख रही है। अभी तक की स्थिति में जिले में भाजपा ने चार तो कांग्रेस ने पांच प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है।   शहर की दोनों सीटों में कांग्रेस जहां उज्जैन दक्षिण में टिकट फायनल नहीं कर पाई है, वहीं भाजपा उज्जैन उत्तर में। पूर्व मंत्री और छह बार के विधायक पारस जैन को लेकर पेंच फंसा हुआ है। ये पेंच बेहद जबरदस्त है क्योंकि इसमें उम्र का पड़ाव है और पार्टी के अपने नियम है वही पहलवान भी टिकिट के लिए मैदान में दो दो हाथ करने को तैयार है  उज्जैन उत्तर में कांग्रेस से माया त्रिवेदी को टिकट मिलने के बाद प्रतिद्वंदी विवेक यादव ने आप में शामिल होकर विधानसभा का चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। अब कांग्रेस के लिए खुद कांग्रेस का व्यक्ति चुनौती बन गया है साथ ही एक सवाल यह भी खड़ा किया कि कांग्रेस में परंपरा बन गई है, जो भी निर्दलीय चुनाव लड़ता है उसे विधानसभा में टिकट मिल जाता है।जिले की सातों सीटों की पड़ताल की तो कांग्रेस की तरफ से ऐसे पांच चेहरे सामने आए, जो कभी बागी होकर निर्दलीय लड़े और फिर चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बना दिया। अब ऐसे में आगे क्या होगा ये तो वक्त ही तय करेगा 

कांग्रेस में ये ज्यादा हुआ अपनी ही पार्टी को नुकसान पंहुचाँने वाले को फिर  टिकट मिला
उज्जैन दक्षिण की बात करे तो  2008 - कांग्रेस से योगेश शर्मा, राजेंद्र वशिष्ठ और जयसिंह दरबार निर्दलीय चुनाव लड़े। बीजेपी के शिवनारायण जागीरदार ने 38,351 वोट प्राप्त कर जीत दर्ज की। कांग्रेस के योगेश शर्मा की जमानत जब्त हो गई।
2013- पिछले चुनाव में बागी जयसिंह दरबार को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। वह चुनाव हार गए। अब वो अब भाजपा में है और मोहन यादव ने 9 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की थी ।
2018- 2008 में कांग्रेस के बागी रहे वशिष्ठ को टिकट मिला लेकिन वे चुनाव नहीं जीत सके। दरबार फिर निर्दलीय मैदान में आ गए। मोहन यादव ने 18 हजार 960 वोटों से जीत दर्ज की।
2023- भाजपा ने मोहन यादव को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस से राजेंद्र वशिष्ठ, अजीतसिंह और चेतन यादव दावेदारी कर रहे हैं। दरबार भाजपा में हैं। उन्होंने भी दक्षिण से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी लेकिन भाजपा ने यादव को प्रत्याशी बनाया है। अब ऐसे में मोहन यादव के सामने कौन चुनौती बनता है ये तो कांग्रेस पार्टी ही तय करेगी 
उत्तर विधानसभा 2013- कांग्रेस से विवेक यादव मैदान में थे। वे हार गए। इस बार उन्होंने पूरी मेहनत की कांग्रेस के लिए  मैदान में  2018 में और 2023 में फिर टिकट मिलने की उम्मीद थी लेकिन टिकट नहीं मिला। वे खफा होकर  आप में चले गए।  2018- कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने से नाराज माया त्रिवेदी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र भारती के लिए चुनौती साबित हुई। इस बार 2023 में टिकट उन्हें मिल गया।
महिदपुर विधानसभा की बात करे तो 
कांग्रेस ने दिनेश जैन बोस को इस बार अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि पहले वे 2013 व 18 में दो बार निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं। दोनों बार 50-50 हजार वोट मिले। कांग्रेस प्रत्याशी हार गए। इस बार कांग्रेस ने दिनेश जैन को ही प्रत्याशी बना दिया।
नागदा विधानसभा
वर्तमान विधायक और इस बार भी कांग्रेस से मैदान में दिलीपसिंह गुर्जर भी 2003 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं और जीतकर विधायक बने। खैर, इससे पहले भी वह 1993 में विधायक रह चुके थे। गुर्जर चार बार विधायक रह चुके हैं। पांचवी बार मैदान में हैं।
घटि्टया विधानसभा
हाल ही में तराना से कांग्रेस विधायक और कांग्रेस के प्रत्याशी महेश परमार भी 2008 में घट्टिया से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, तब उन्हें 8163 वोट मिले थे। 

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