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उज्जैन में पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत पारस जैन ने पाई थी, इस बार टिकट का फैसला नहीं।


प्रदेश की राजधानी भोपाल में सियासी नक्शा तय करने में धर्मधानी उज्जैन की भूमिका अहम रही है। जब-जब विधानसभा चुनाव हुए है उज्जैन की जनता ने प्रदेश का राजनीतिक भविष्य तय किया है। बीते पांच चुनाव के परिणाम इस बात की तस्दीक करते हैं। चुनावी नतीजों की समीक्षा में पता चला है कि जिस राजनीतिक दल ने उज्जैन जिले की सात में चार सीटें जीतीं, प्रदेश में सरकार उसी दल की बनी।ये बात और है कि कुछ विधायकों ने चुनाव परिणामों के बाद दल बदलकर सरकार को गिरा डाला और सरकार कम जनमत पाई पार्टी को सौंप दी। ऐसा 2018 के चुनाव के बाद देखने को मिला था। जब कांग्रेस ने सरकार तो बना ली, मगर कई विधायकों ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया।एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1998 के चुनाव में कांग्रेस 6, वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा 6, वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा 4, वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा सभी सात और वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस 4 सीटें जीती थी। उज्जैन की सात सीटों से सर्वाधिक बार चुनाव लड़ने और जीतने का रिकार्ड भाजपा नेता पारस जैन के नाम है, जिन्होंने उज्जैन-उत्तर सीट से सात बार चुनाव लड़ा।

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