जातीय सर्वे : अब नए सिरे से तय होगी राजनीति की दशा और दिशा
डॉ. चन्दर सोनाने
बिहार सरकार ने पिछले दिनोंं जातीय सर्वे के आँकड़ें जारी किए। इसके साथ ही ऐसा सर्वे करने वाला बिहार देश में पहला राज्य बन गया है। बिहार की जातीय सर्वे के आँकडं़े जारी होने के बाद राजस्थान सरकार ने भी जातीय सर्वे की घोषणा कर दी है। जातीय सर्वे के आँकड़ें, एक ऐसा जिन्न है जो अब बोतल से बाहर आ गया है। इसे वापस बोतल में डालना किसी के बस की बात नहीं है। जातीय सर्वे के बाद सभी राजनैतिक दलों के अपने-अपने फायदे और अपने-अपने नुकसान है। किन्तु यह तय है कि अब जातीय सर्वे के बाद देश की राजनीति की दशा और दिशा नए सिरे से तय होगी।
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 9 अक्टूबर 2023 को देश के 5 राज्यों में मतदान और मतगणना की तारीखों की घोषणा कर दी गई है। उसके अनुसार मिजोरम में 7 नवम्बर को मतदान होगा। छत्तीसगढ़ में 7 और 17 नवम्बर को दो चरणों में मतदान होगा। मध्यप्रदेश में 17 नवम्बर को और राजस्थान में 23 नवम्बर को मतदान की तारीख तय की गई है। तेलंगाना में 30 नवम्बर को मतदान की तिथि निश्चित की गई है। पाँचों राज्यों में एक साथ 3 दिसंबर को मतगणना होगी और चुनाव परिणाम घोषित किए जायेंगे। इसके बाद अगले साल 2024 में लोकसभा के चुनाव होंगे। यह निश्चित है कि उक्त 5 राज्यों में इस वर्ष नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद और अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बिहार के जातीय सर्वे के बाद नए सिरे से राजनीति की गोटियाँ बिछाई जायेंगी।
अभी देश में अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर 49.5 प्रतिशत आरक्षण का वर्तमान में प्रावधान है। बिहार के जातीय सर्वे के बाद राजस्थान सरकार ने भी जातीय सर्वे की घोषणा कर दी है। इसके पूर्व उड़ीसा ने 1 मई 2023 को 208 पिछड़ी जातियों के लोगों की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति का पहला सर्वे शुरू किया है। किन्तु इसकी रिपोर्ट अभी जारी नहीं की गई है। इसके भी पहले कन्नड़ ने 2013 में बनी कांग्रेस सरकार ने जातिवाद सामाजिक और आर्थिक सर्वे कराया था, किन्तु इसकी भी रिपोर्ट जारी नहीं की गई है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र और तमिलनाडु की विधानसभाओं में जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित हो चुके है। बिहार में हुए जातीय सर्वे के बाद निश्चित रूप से आरक्षण के उक्त प्रावधानों पर बहस छिड़ेगी और उसे बढ़ाने-घटाने पर बात होगी, यह भी तय है।
बिहार सरकार ने पिछले दिनों हुए जातीय सर्वे के जो आँकडं़े जारी किए है, उसके अनुसार करीब 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार में 36 प्रतिशत अति पिछड़े वर्ग के लोग निवास करते हैं। इसके अतिरिक्त कुल 27 प्रतिशत पिछड़े वर्ग के लोग रहते हैं। 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 1.68 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग हैं। सामान्य वर्ग से 15.52 प्रतिशत लोग बिहार राज्य में हैं। इस प्रकार बिहार राज्य में कुल 81.99 प्रतिशत हिन्दू और 17.7 प्रतिशत मुस्लिम हैं। बाकी के अन्य हैं। हमारे देश में पहली बार 1931 को ऐसे आँकडं़े जारी हुए थे। उसके बाद पहली इस प्रकार के आँकड़ें जारी किए गए हैं।
बिहार में हुए जातीय सर्वे के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग का कुल प्रतिशत 83.68 आ रहा है। अभी उक्त तीनों वर्गों के लोगों को 49.5 प्रतिशत का आरक्षण का प्रवधान है। बिहार राज्य के सर्वे के आधार पर जो आँकडं़े सामने आए हैं, वह एक राज्य का उदाहरण मात्र है। किन्तु यदि अन्य राज्यों में भी जातीय सर्वे होते हैं तो कमोबेश थोड़ा बहुत अंतर ही उन आँकड़ों में आयेगा। इससे राजनैतिक दलों के जातीय आधार पर की जाने वाली राजनीति निश्चित रूप से प्रभावित होगी। इससे ही विभिन्न राजनैतिक दलां की दशा और दिशा तय होगी, यह भी निश्चित है।
हमारे देश में 2021 की होने वाली जनगणना को कोरोना के कारण स्थगित कर दिया गया था। अब यह भी तय है कि आगामी जनगणना 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही होगी। इस वर्ष नवम्बर में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों और आगामी 2024 में होने वाली लोकसभा चुनाव के समय बिहार में की गई जातीय सर्वे का जिन्न बोलेगा। इससे कोई राजनैतिक दल अछूता नहीं रह पाएगा। सभी राजनैतिक दलों को अपनी प्राथमिकताए नए सिरे से तय करनी होगी। हालांकि सभी राजनैतिक दल जातीय आधार पर चुनाव की बात से इंकार करते हैं, किन्तु वास्तव में सभी राजनैतिक दल जातीय आधार पर ही विधानसभा और लोकसभा में उम्मीदवार खड़ा करते हैं। अर्थात प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चाहे अनचाहे रूप से सभी राजनैतिक दल इससे जुड़े हुए हैं। इससे कोई बच नहीं सकता। सभी राजनैतिक दलों को अब अपनी दशा और दिशा नए सिरे से परिभाषित करनी ही होगी। यह अच्छा होगा या बुरा यह भविष्य में ही पता चल सकेगा !
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