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राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी,बात यहां से शुरू करते हैं... साफ-साफ है दिल्ली का संकेत, समझने वाले समझ भी गए


अरविंद तिवारी,वरिष्ठ पत्रकार

नरेंद्रसिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल और फग्गनसिंह कुलस्ते जैसे दिग्गजों को मैदान में लाकर भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने यह संकेत तो दे ही दिया कि मध्यप्रदेश में अब शिवराज युग समाप्ति की ओर है। इस बात का संकेत तो मिल ही गया है कि मध्यप्रदेश में यदि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी भी करती है तो शिवराजसिंह चौहान को शायद ही नेतृत्व का मौका मिले। शिवराज भी समझ गए हैं। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में उन्होंने जो भाषण दिया उससे भी यही ध्वनि निकल रही है कि 'सरकार' के दिन पूरे हो गए हैं। बहुत याद आएगा मामा भी केंद्र के इशारे के बाद दिल से निकली बात ही है। 

दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा, मैदानी पकड़ की अब असली परीक्षा

यह दांव खेलने का माद्दा नरेंद्र मोदी और अमित शाह में ही है। भाजपा की राजनीति में बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद निश्चिंत महसूस कर रहे आठ दिग्गज नेताओं को मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव के लिए मैदान में उतारकर  दिल्ली ने जो दांव खेला है वह दोनों स्थिति में उसके लिए फायदेमंद रहना है। मामला लिटमस टेस्ट जैसा है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस के पाले में गई इन सीटों पर यदि नरेंद्रसिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और फग्गनसिंह कुलस्ते के साथ ही राकेश सिंह, गणेशसिंह, उदयप्रताप सिंह और रीति पाठक चुनाव जीतते हैं तो भाजपा को बड़ा फायदा होगा और यदि नतीजे पक्ष में नहीं रहे तो इन नेताओं को उनकी हैसियत का अहसास भी हो जाएगा। सही कहा है किसी ने मैदानी पकड़ की असली परीक्षा तो अब है। 

समर्थक ही बढ़ा रहे हैं सिंधिया की दुविधा

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भले ही दिल्ली में अपना राजनीतिक कद बढ़ा लिया हो, लेकिन मध्यप्रदेश में समर्थकों के कारण उनकी भारी फजीहत हो रही है। सिंधिया समर्थक मंत्रियों और विधायकों का जो फीडबैक पार्टी के पास पहुंचा है, वह तो यही बता रहा है कि इनमें से आधे से ज्यादा चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं हैं। यही कारण है कि जिन वर्तमान मंत्रियों और विधायकों को उम्मीदवारी से वंचित किया जा रहा है, उनमें एक दर्जन से ज्यादा सिंधिया के समर्थक हैं। यदि ऐसा होता है तो तय मानिए कि अभी तक सिंधिया की छत्रछाया में बहुत राहत महसूस कर रहे कई दिग्गज उन्हीं के खिलाफ मुखर नजर होते नजर आएंगे। 

कमलनाथ की वक्रदृष्टि और जीतू पटवारी का बढ़ता कद

दिल्ली से भोपाल तक कई नेताओं का भरोसा जीत चुके जीतू पटवारी न जाने क्यों कमलनाथ की आंखों के तारे नहीं बन पा रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कमलनाथ की वक्रदृष्टि के बावजूद कांग्रेस की राजनीति में जीतू पटवारी का कद लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष होने के साथ ही वे मीडिया विभाग के सर्वेसर्वा तो पहले से ही थे, अब उन्हें कांतिलाल भूरिया की अगुवाई वाली चुनाव अभियान समिति का सहसंयोजक भी बना दिया गया है। इसे दिल्ली में जीतू के मजबूत होने का संकेत माना जा रहा है। दिल्ली में के.सी. वेणुगोपाल के वजन का फायदा मध्यप्रदेश में जीतू को मिल ही जाता है। 

इनका भी नाम है संसद से विधानसभा के सफर के लिए

सात सांसदों को विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारने के बाद अब चार और सांसदों को भी मैदान में लाने की तैयारी है। शंकर लालवानी, सुधीर गुप्ता, अनिल फिरोजिया, गजेंद्रसिंह पटेल और महेंद्रसिंह सोलंकी को विधानसभा चुनाव लडऩा पड़ सकता है। लालवानी इंदौर चार, गुप्ता मंदसौर या गरोठ, फिरोजिया आलोट, पटेल को भगवानपुरा और सोलंकी आष्टा से मोर्चा संभाल सकते हैं। इस रणनीति के दूरगामी नजरिए को भी समझिए, दरअसल इन सांसदों के लिए अगले यानि 2024 के लोकसभा चुनाव में अच्छी संभावना नहीं दिख रही है। 

विधानसभा चुनाव... बौद्धिक और साहित्यिक आयोजनों की बाढ़

विधानसभा चुनाव की नजदीकी के बीच शहर में बौद्धिक और साहित्यिक आयोजनों की बाढ़ सी आई हुई है। मुश्किल से ही कोई सप्ताह बीतता होगा जब शहर में एक-दो बड़े बौद्धिक और साहित्यिक आयोजन नहीं होते हों। बताने वाले तो यह बताते हैं कि इन आयोजनों के पीछे संघ से जुड़े लोगों और संगठनों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। पिछले दिनों भी ऐसे आयोजन हुए और आने वाले दिनों में भी ऐसे ही कई आयोजन होने वाले हैं। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से विधानसभा टिकट पाने को लालायित कुछ बुद्धिजीवियों की इन आयोजनों में लगातार सक्रियता ने इन आयोजनों को और अधिक चर्चा में ला दिया है। 

चलते-चलते

इंदौर में भाजपा के टिकट के लिए ऐसी उठापटक पहले कभी नहीं देखी गई। सुदर्शन गुप्ता का विरोध हुआ और टिकट कैलाश विजयवर्गीय को मिल गया। महेंद्र हार्डिया के बाद अब मालिनी गौड़ की खुलकर मुखालफत हो रही है। मनोज पटेल का विरोध करने वाले तुलसी सिलावट को भी समझा आए। उषा ठाकुर महू में विरोध के बाद इंदौर की ओर निगाहें करके बैठी हैं। 

पुछल्ला

इन दिनों बड़ी चर्चा इस बात की है कि प्रमोद टंडन के भाजपा छोडऩे की भनक लगने के बाद भी तुलसी सिलावट खामोश क्यों रहे। क्यों इसकी जानकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को नहीं दी गई। भाजपा के बड़े नेताओं के साथ ही संघ के दिग्गजों में भी चर्चा में है। कटघरे में खड़े सिलावट की इस खामोशी को दोनों नेताओं की पुरानी प्रतिद्वंद्विता से जोड़कर देखा जा रहा है। 

बात मीडिया की

मध्यप्रदेश के एक सप्ताह के प्रवास पर आए पत्रिका समूह के सर्वेसर्वा गुलाब कोठारी को सरकार ने राजकीय अतिथि का दर्जा दिया। ओंकारेश्वर में आदि शंकर की प्रतिमा के अनावरण के बाद मुख्यमंत्री उन्हें अपने साथ हेलीकाफ्टर से सभा स्थल पर ले गए और मंच पर ही बैठाया। 

काम के दबाव के चलते नईदुनिया इंदौर में एक के बाद एक कई साथी बीमार होते जा रहे हैं। उज्जवल शुक्ला, जितेंंद्र व्यास, पीयूष दीक्षित, कुलदीप भावसार, मुकेश मंगल और अब कपिश दुबे का नाम इस सूची में जुड़ गया है। कारण तो आप जानते ही होंगे, लेकिन इसका निदान कोई नहीं ढूंढ पा रहा है। 

पीपुल्स समाचार ने संपादक और यूनिट हेड की भूमिका में रहीं नेहा जैन ने अब संस्थान को अलविदा कह दिया है। हेमंत शर्मा के यहां संपादक और यूनिट हेड की भूमिका में आने के बाद से ही वहां से नेहा की रवानगी की सुगबुगाहट थी।

अखबार जगत में अपनी अलग पहचान रखने वाले सीनियर लेआउट प्लानर एवं ग्राफिक्स डिजाइनर प्रवीर पंजाबी ने पत्रिका समूह को अलविदा कह दिया है। वे पत्रिका के इंदौर संस्करण की शुरुआत से ही इस अखबार से जुड़े हुए थे। 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वरिष्ठ साथी अजहर शेख अब टीम डिजियाना का हिस्सा हो गए हैं। वे अभी तक न्यूज 27 में सेवाएं दे रहे थे। अजहर कई चैनल्स में सेवाएं दे चुके हैं। 

नईदुनिया में लंबे समय तक प्रथम पृष्ठ पर सेवाएं देने वाले अमित भटनागर अब टीम पत्रिका का हिस्सा हो गए हैं।

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