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दिग्गजों को टिकट मतलब पुनः मूषको भवः..


ना काहू से बैर

राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
                   पुनर्मूषिको भव - अर्थात् फिर से चूहा बन जाओ। यह कथा बहुत सार्थक और शिक्षाप्रद है। सियासत से लेकर समाज के सभी क्षेत्रों में उन तमाम धुरन्दरों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो जीरो से हीरो बने हैं। राजनीति में इस कुटिलता को कुछ नेताओं ने आदर्श मान लिया है कि जिन सीढ़ियों से चढ़कर शिखर तक पहुंचो उसे तोड़ दिया जाए ताकि दूसरा उनके स्थान पर काबिज ना हो सके। हर कोई ऐसी करता होगा फिर भी जो शिखर पर है वह कभी तो नीचे आते ही हैं। लोकतंत्र के ऋषियों की कृपा से नए नए चूहों को हम बाघ बनते और फिर उनके चूहे होने के साक्षी बनते हैं। यदि शेर बने रहना है तो सत्ता के शीर्ष पर ले जाने वाली सीढ़ियों में अपने हितैषियों, कार्यकर्ताओं, संगठनों और ऋषि रूपी जनता- जनार्दन को ईमानदारी से जोड़ने का समय है। वैसे तो हरेक चुनाव में ऐसा होता है। लेकिन विधानसभा चुनाव में इसका आरम्भ भाजपा में हुआ लगता है।  
                  पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने अपने दिग्गज नेताओं को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बना कर इसका आगाज कर कथा को बहुत प्रासंगिक बना दिया है। राष्ट्रीय नेताओं को चुनाव जीतने के लिए अब दिन रात गली गली घूमने और घर घर भटकने के साथ साथ कार्यकर्ताओं को फिर से साधने का काम दे दिया है। हो सकता है जबावी कार्रवाई में कांग्रेस भी ऐसा ही कुछ करे।लेकिन अभी तो दिग्गजो के अहंकार के गलने टूटने और चेहरे की लाली कम होने का योग बन रहा है। संदेश साफ है " नेता हो तो जीतो, नही तो घर बैठो"। इससे अब कार्यकर्ताओं को भी अपना हिसाब करने का अवसर मिल रहा है। कथा में जहां भी ऋषि शब्द है उसे जनता और कार्यकर्ता समझा जाए। कथा के अर्थ को चिट्ठी के बजाए तार समझा जाए। क्योंकि समय कम है और चुनाव आ चुके है। कथा यह है कि एक ऋषि जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे।उनकी कुटिया के आस पास काफी पवित्र वातावरण था। ऋषि के प्रभाव से सारे जीव वहां निर्भय होकर विचरण करते थे। एक दिन ऋषि पूजा के आसान पर बैठे थे तभी एक चूहा उनकी गोद में आ गिरा। चूहा भयभीत था। उसे बिल्ली ने मारकर खाने के लिए पीछा किया था। ऋषि ने चूहा को दुखी देखा तो सोचा अगर इसे बिल्ली से भय है तो ये भी बिल्ली हो जाए। ऋषि ने उस चूहे को भी बिल्ली बना दिया। अब उस बिल्ली बने चूहे को बिल्ली से भय नहीं रहा। वह आश्रम के इर्दगिर्द सुखपूर्वक विचरण करता। एक दिन किसी कुत्ते ने उस बिल्ली का पीछा किया।
                   बिल्ली भागते भागते ऋषि के शरण में आई। ऋषि ने उससे परेशानी का कारण पूछा। बिल्ली ने कहा की कुत्ते मुझे डराते हैं। ऋषि ने कहा "स्वानः त्वाम विभेति! त्वमपि स्वानोभाव "अर्थात कुत्ता तुम्हे डरा रहा है तुम भी कुत्ता हो जाओ। ऋषि के आशीर्वाद से बिल्ली बना चूहा अब कुत्ता हो गया। अब उसे कुत्ते बिल्लियों से कोई डर नहीं रहा। एक दिन कुत्ते पर ब्याघ्र (बाघ ) की नजर पड़ी. उसने कुत्ते को खाने के लिए उसका पीछा किया। बाघ के डर से कुत्ता भाग कर ऋषि की शरण में जा पहुँचा। ऋषि ने कुत्ते को बाघ को डर से भयभीत देखा ऋषि बोले "ब्याघ्र: त्वम् विभेति! त्वमपि ब्याघ्रों भव" अर्थात बाघ तुम्हे डरातें हैं तुम भी बाघ हो जाओ। अब ऋषि के आशीर्वाद से वह बाघ बन गया।
                 ऋषि के आशीर्वाद से बने बाघ को अब किसी जानवर से डर नहीं था। वह जंगल में निर्भय हो घूमता था।जंगल के दूसरे जानवर उसके बारे में बाते करते की ये बाघ पहले चूहा था। ऋषि ने इसे आशीर्वाद / वरदान देकर बाघ बना दिया है। बाघ को अपने बारे में दूसरे जानवरों से ऐसा सुनकर बहुत बुरा लगता। जब भी कोई उसे कहता की ये तो पहले चूहा था ऋषि के वरदान से बाघ बना है। तो वह बात बहुत लज्जित हो जाता। बाघ अपने सारी परेशानी का जड़ ऋषि को मानने लगा। बाघ ने समझा की जब तक ये ऋषि जीवित है।लोग मेरे बारे में ऐसे ही बोलते रहेंगे। इस ऋषि को खत्म कर देना चाहिए। ऐसा विचार कर उस कृतघ्न बाघ ने ऋषि पर आक्रमण कर दिया। ऋषि ने बाघ की कुटिलता को पहचान लिया। ऋषि ने कहा"कृतघ्नोसि पुनर्मूषिको भव" अर्थात कृतघ्न हो फिर से चूहा हो जाओ। इस तरह कृतघ्न बाघ ऋषि के शाप से फिर से चूहा बन गया। शेष तमाम नेताजी समझदार हैं। इस बार ना काहू से बैर में बस इतना ही...

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