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संजा के माण्डनों में देश, काल और परिस्थितियों



संजा के माण्डनों में देश, काल और परिस्थितियों का चित्रण भी देखने को मिलता है। संजा बनाते समय कोट में पांच-पांच पांचों के तीन खाने होते हैं वहीं चौथा खाना खुला रखा जाता है। इधर बायीं ओर चंद्रमा तथा दायीं ओर सूर्य होता है। हमारे प्राचीन शास्त्रों का अध्ययन करें तो हमारे शरीर की बायी नाड़ी जिसे ईडा कहा गया है, वह चंद्र से प्रभावित होती है। वही दायी नाड़ी जिसे पिंगला कहते है वह सूर्य से प्रभावित होती है। उस समय भी यह बात तत्कालिन लोगों को ज्ञात थी, यह खास विशेषता है। इधर कोट के अंधर विभिन्न दिनों में बनने वाले अंकनों को लेकर यह बात भी उजागर होती है कि तब और अब में केवल काल का अंतर आया है। परिस्थितियां भी वही है और देश भी वही। तब पंखा था, अब भी है। फर्क मशीनी युग का है। आज भी पाट की प्रासंगिकता है वहीं चौपड़ हो या घेवर, उसका अपना महात्म्य है। संजा के माण्डने में आखिरी दिनों में जो किलाकोट बनाया जाता है, उसमें जहां गोठन होती है वहीं कुम्हार भी रहता है। हल्दी लगानेवाला नाई रहता है वहीं सफाई करनेवाली रानीजी भी रहती है। यह सभी ओर अन्य माण्डने बताते हैं कि उस समय समाज की संस्कृति किसप्रकार की थी।
आज का माण्डना चौथ की चौपड़ संजा पर्व के पांचवे दिन चौथ की चौपड़ बनाई जाती है। यह चौपड़
रकत होती है कि ससुराल में चूंकि संयुक्त परिवार रहते हैं, ऐसे में किससे कितना बोलना और कितना हिलमिलना चाहिए? परिवार में बताया जाता था कि ससुराल में सांप-सीढ़ि का खेल चलता है व्यावहार में।
मीठा बोलो और गम खा लो तो सीधे उंचाई पर नहीं तो पूरा परिवार खिलाफ हो जाता है। हालांकि आज भी यह बात परिवारों में एक सच्चाई के रूप में है। अब संयुक्त परिवार तो टूट गए लेकिन टी.वी. धारावाहिकों में वह सब षड तंत्र देखने में आ रहा है जो पहले के जमानों में संयुक्त परिवारों में अनेक जगहों पर देखने में आता था। चूंकि परिवार का मुखिया पारदर्शी रहता था तथा उसकी पैनी नजरें और सख्त कदम परिवार को बांध रखते थे, इसलिए बहुत कुछ बातें रसोई से शुरू होकर  शयन कक्ष तक के बीच खत्म हो जाती थी तब ननंद तो ठीक, देवर भी अपनी से बाज नहीं आते थे। इसी के चलते एक गीत में संजा की सखिया संजा के देवर को जमकर कोसती है, गीत की बानगी कुछ इस प्रकार है- आज का गीत
म्हारा आंगन में केल उगी, केल उगी उगजो चौरासी डाली, उगजो चौरासी डाली म्हारा बीराजी चढ़वा लाग्या, चढ़वा लाग्या चढजो उंची से डाली, चढजो उंची सी डाली. म्हारा देवरिया चढ़वा लाग्या, चढ़वा लाग्या चढजो सड़ी सी डाली, चढजो सड़ी सी डाली म्हारा बीराजी के भूख लागी, भूख लागी लउं से लाडू ने पेड़ा, लउं रे लाडू ने पेड़ा म्हारा देवरिया के भूख लागी, भूख लागी लउं रे सुखा सा टुकड़ा, लउं रे सुखा सा टुकड़ा म्हारा बीराजी केक तीस लागी, तीस लागी। लउं से झारी ने कलस्या, लउं रे झारी ने कलस्या म्हारा देवरिया के तीस लागी, तीस लागी लउं से फूटो से कुल्लड़, लउं रे फूटो सो कुल्लड़ म्हारा बीराजी के नींद लागी, नींद लागी लउं रे गादी ने तकिया, लउं रे गादी ने तकिया म्हारा देवरिया के नींद लागी, नींद लागी लउं रे कांटा ने भाटा, लउं रे कांटा ने भाटा।

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