स्वतंत्रता के बाद भी अनेक राज परिवार प्रभावी भूमिका में रहे
रविवारीय गपशप ——————— लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं,और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं। हमारे देश में स्वतंत्रता के बाद भी अनेक राज परिवार प्रभावी भूमिका में रहे हैं । कुछ राजनीति में आये और सांसद , विधायक और मंत्री भी बने और कुछ ने प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं में हिस्सेदारी की । मेरी प्रारंभिक पदस्थापना के ज़िले राजनांदगाँव के खैरागढ़ में जब मैं एस.डी.एम. बना तो वहाँ रश्मि देवी सिंह खैरागढ़ की विधायक थीं । बड़ी विनम्र और लोकप्रिय रश्मि देवी ख़ुद नवागढ़ राजघराने से थीं और खैरागढ़ के राजा रवींद्र बहादुर सिंह की पत्नी थीं । उनके ससुर राजा बहादुर वीरेंद्र बहादुर सिंह भारतीय पुलिस के उस जमाने के अफ़सर थे जब इस सेवा को आई.पी.एस. नहीं बल्कि आई.पी. यानी इम्पीरियल पुलिस कहा जाता था । उनके बारे में एक मज़ेदार संस्मरण लोग सुनाते थे कि एक बार वे दौरे पर निकले और अपनी कार में सो गए । ड्राइवर को सख़्त निर्देश थे कि साहब यदि आराम फ़रमा रहे हों तो उन्हें डिस्टर्ब न किया जाये लिहाज़ा ड्राइवर गाड़ी चलाता रहा । चलते चलते गाड़ी दूसरे राज्य की सीमा में प्रवेश कर गई और तब साहब की नींद खुली । उन्होंने ड्राइवर को पास के थाने में गाड़ी रोकने को कहा और इंस्पेक्शन के लिए घुस गए । थानेदार ने वर्दी देख सेल्यूट तो मारा पर कहा कि ये तो दूसरा राज्य है तो साहब बोले मैं तो आई.पी. हूँ , मुझ पर क्षेत्राधिकार का प्रश्न लागू नहीं होता , पूरे देश में कहीं भी जाँच कर सकता हूँ और बाक़ायदा जाँच कर उसकी रिपोर्ट उस प्रदेश के मुख्यालय को भेज दी । यह भी सत्य है कि अपने व्यवहार के कारण राजपरिवार के अनेक लोग आम जन में न केवल लोकप्रिय हुए बल्कि श्रद्धा के पात्र भी रहे । मैं जब उज्जैन में एस.डी.एम. था तो एक बार श्रावण सोमवार में महाकाल की सवारी के दौरान मैंने पाया कि गोपाल मंदिर के समक्ष अनेक नर-नारी लेट कर प्रणाम कर रहे हैं । मुझे अचरज हुआ और मैंने पास खड़े अपने एस.डी.ओ. पुलिस तिवारी जी से पूछा कि ये क्या माज़रा है , हर सप्ताह तो ऐसा न होता था ? तिवारी जी बोले “ अरे आपने ध्यान नहीं दिया आज गोपाल मंदिर में ऊपर राजमाता बैठी हैं “। आई.ए.एस. में प्रमोशन के कुछ सालों बाद मैं अपने साथियों के साथ इण्डक्शन कोर्स के लिए मैसूर गया जो वाडियार राजाओं की राजधानी रहा है । जब हम मैसूर के प्रसिद्ध महल को देखने गये तो हमारे गाइड ने इस महल के बारे में एक बड़ी दिलचस्प घटना सुनाई । उन्होंने बताया कि राजा कृष्ण राज वाडियार के परिवार में शादी के दौरान लगी भीषण आग में सन् 1897 में ये महल जल गया था । कहते हैं जब महल में आग लगी तो शादी का कार्यक्रम चल रहा था , पर आश्चर्य था कि आग लगने के बाद लोग महल के अंदर से बाहर भागने के बजाय अंदर भागे और सारी कीमती वस्तुएँ जिनमें हीरे और जवाहरात भी थे , निकालीं और राजा के पैरों में लाकर डाल दी । राजा ने कहा कि ये तो सब जल जाना था और अब बच गया है तो जिनने बचाया है (जनता ने) ये उन्ही का है । कहते हैं , इन्हीं बेशकीमती वस्तुओं को बॉम्बे स्ट्रीट में बेचकर कृष्णराज वाडियार ने मैसूर राज्य के अपने दीवान श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैय्या को बुलाया , जो एक महान इंजीनियर भी थे और जिनके जन्मदिन को हम इंजीनियर्स डे के रूप में मनाते हैं , और उन्हें कहा कि इस रक़म से सूखे से जूझ रही हमारी जनता के लिए एक बड़ा सिंचाई बाँध बनायें । सर विश्वेश्वरैया के निर्देशन में कावेरी नदी पर एक विशाल डेम बनवाया गया और उसका नाम कृष्ण राज के नाम पर कृष्णासागर बाँध रखा गया । इसके तट पर बने सुंदर उद्यान को ही हम वृन्दावन गार्डन के रूप में जानते हैं । आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि महात्मा गांधी जब 1927 में मैसूर आये थे तो उन्होंने कृष्णराज वाडियार को राजऋषि कहा था और साथ ही ये भी कहा था कि अंग्रेजो को इनसे सीखना चाहिए कि राज्य कैसे किया जाता है ।