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ये है "नारी वंदन विधेयक" की असलियत...


खुद अमल कर पाने की हिम्मत नही है !
अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                      संसद में नारी वंदन विधेयक पारित होने के बाद अपनी पहली जनसभा में उन्होंने बड़ी भीड़ के सामने काफी देर तक अपनी पीठ ठोंकी!महिलाओं को आरक्षण देने का पूरा श्रेय खुद लिया!यही नहीं पिछले साढ़े नौ साल में महिलाओं के लिए उनकी सरकार ने जो "कुछ" किया है उसका भी सिलसिलेवार ब्यौरा दिया ! वे यह बताना भी नही भूले कि उन्होंने ही देश भर में महिलाओं के लिए शौचालय बनवाए हैं!उससे पहले महिलाओं को अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ता था।कितनी तकलीफ में रहती थीं बेचारी ! उन्होंने एक बार फिर इस बात के लिए अपनी पीठ ठोंकी कि एक गरीब आदिवासी महिला को देश का राष्ट्रपति उन्होंने ही बनाया है!अपनी उज्ज्वला योजना का भी जिक्र करना वे नही भूले। नए संसद भवन में विशेष सत्र बुलाकर महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने का श्रेय तो उन्होंने  खुद लिया साथ ही उसका बिना शर्त समर्थन करने वाले अन्य दलों का मजाक भी उड़ाया।उन्होंने कहा - इन लोगों ने मजबूरी में विधेयक का समर्थन तो कर दिया है।लेकिन अब उसमें तरह तरह के अड़ंगे लगाएंगे!कांग्रेस पर तो इस तरह हमलावर थे कि 55 मिनट के भाषण में 42 बार उसका नाम लिया।पानी पी पी कर उसे कोसा।एक बार तो ऐसा लगा कि कांग्रेस देश की महिलाओं और गरीबों की सबसे बड़ी दुश्मन है।बीजेपी से बड़ा उनका कोई हितैषी नही है।
                  आप ठीक समझे ! मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही बात कर रहा हूं।वे 25 सितंबर को भोपाल आए थे।पिछले 6 महीने में एमपी का उनका यह सातवां दौरा था।उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पीछे करके विधानसभा चुनाव की कमान अपने हाथ में ले ली है।अब तक 230 में से करीब 100 विधानसभा सीटें वे कवर कर चुके हैं।अब वे अपने भाषणों में शिवराज का नाम लेने से भी परहेज करने लगे हैं
 प्रधानमंत्री क्या बोलते हैं और क्या करते हैं, यह बात अब देश का आम आदमी समझने लगा है।ऐसा ही कुछ कल भी हुआ।वे लंबा चौड़ा भाषण देकर दिल्ली पहुंचे। उसके बाद बीजेपी ने मध्यप्रदेश के विधानसभा प्रत्याशियों की दूसरी  सूची जारी की।इस सूची में भी 39 नाम थे।इससे पहले 18 अगस्त को भी 39 प्रत्याशियों की सूची आई थी। दूसरी सूची को लेकर पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया। मोदी ने अपने तीन मंत्रियों सहित 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतार दिया है।केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव कराने आए थे। सब चुनाव लडेंगे। प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते भी विधानसभा चुनाव के अखाड़े में दिखेंगे।कैलाश विजयवर्गीय भी इंदौर में अखाड़े में दिखाई देंगे ! लेकिन सबसे अहम बात यह है कि जिन महिलाओं को आरक्षण देने का जो दंभ दोपहर को भोपाल में मोदी ने दिखाया था वह शाम को दिल्ली से आई  सूची से गायब था।बीजेपी ने 39 प्रत्याशियों में सिर्फ 6 महिलाओं को जगह दी।उसकी जो पहली सूची आई थी उसमें भी 39 में से सिर्फ 4 महिलाएं थीं।
                    जिस आरक्षण का दावा मोदी दिन में कर रहे थे,उसके हिसाब से तोअब तक 26 महिलाओं को चुनावी मैदान में होना चाहिए था।लेकिन 26 तो दूर 13 को भी मोदी जी ने टिकट नहीं दिया।अब बाकी बची  152 सीटों पर बीजेपी को अपने प्रत्याशी तय करने हैं।230 सीटों के हिसाब से इनमें कम से कम 76 महिला प्रत्याशी होनी ही चाहिए!अगर 10 कम कर दें तो 66 महिलाओं को अभी और टिकट मिलने चाहिए ! आप कह सकते हैं कि अभी कौन सा आरक्षण लागू हो गया है जो 76 सीटें महिलाओं को दी जाएं!आपकी बात भी सही है।लेकिन जब सीना ठोंक कर महिला हितैषी होने का दावा कर रहे हैं,तो अपने स्तर पर यह पहल तो कर ही सकते थे। अगर बीजेपी 5 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में खुद 33 प्रतिशत महिला प्रत्याशी उतार कर विपक्षी दलों को चुनौती पेश करती तो एक अलग मिसाल बनती।
 लेकिन ऐसा करने की हिम्मत खुद नरेंद्र मोदी नही जुटा पाए हैं।उधर अभी तक यह भी साफ नही है कि जो विधेयक संसद में सर्वसम्मति से पारित हुआ है वह धरातल पर कब उतरेगा।क्योंकि मोदी सरकार ने उसमें जो शर्तें रखी हैं उन्हें देखते हुए तो ऐसा लगता है कि महिलाओं को अभी कम से कम दस साल तक इंतजार करना पड़ेगा। उसके बाद ही उन्हें आरक्षण मिलने की संभावना बन पाएगी। लेकिन इसका श्रेय मोदी ने लेना शुरू कर दिया है।अन्य दलों को कोसते हुए वे खुद को महिलाओं का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं।लेकिन अगर वे अपनी पार्टी के भीतर आरक्षण देने की पहल कर लें तो उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जायेगा।वैसे तो अन्य अन्य कारणों से वे इतिहास बना ही चुके हैं।लेकिन महिलाओं के लिए शौचालय और गैस से आगे बढ़कर उन्हें संसद और विधानसभाओं में पहुंचा देते तो बात ही कुछ और होती।
वे ऐसा करेंगे ,इस बात की उम्मीद न के बराबर है। हां अगर वे सच में चाहें तो कर भी सकते हैं।क्योंकि महिला आरक्षण में नोट बंदी जैसा जोखिम नही है। और न ही पांच किलो गेंहू की तरह सरकार के खजाने पर कोई भार पड़ेगा। देखना यह है कि इस दिशा में वे कितनी हिम्मत दिखायेंगे !

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