महिला आरक्षण : अभी आधी आबादी को 6 साल और करना होगा इंतजार
डॉ. चन्दर सोनाने
हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा से महिला आरक्षण विधेयक नारी शक्ति वंदन अधिनियम सर्वसम्मति से पारित हो गया। किन्तु इस विधेयक में यह शर्त जोड़ी गई है कि जनगणना के बाद परिसीमन होगा और उसके बाद ही इस अधिनियम को नियमानुसार लागू किया जा सकेगा। इसके पूर्व यह विधेयक देश की विधानसभाओं में भेजा जायेगा। 50 प्रतिशत विधानसभाओं से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा जायेगा और उनके हस्ताक्षर होने के बाद ही यह अधिनियम विधिवत कानून की शक्ल ले सकेगा।
इसका स्पष्ट मतलब है कि आगामी 2024 में लोकसभा चुनाव के समय यह विधेयक लागू नहीं हो सकेगा। आगामी लोकसभा चुनाव के बाद जनगणना होगी और जनगणना के बाद परिसीमन होगा। जनगणना में करीब 2 साल लगेंगे। इसी प्रकार परिसीमन में भी करीब 2 साल लगेंगे। इसके बाद विधानसभाओं में इस विधेयक को पारित होने में भी समय लगेगा। अर्थात् आगामी लोकसभा चुनाव के बाद अगला लोकसभा चुनाव 2029 में होगा। इसके साथ ही यह अधिनियम कानून की शक्ल ले पायेगा। इसका अर्थ है कि अभी इस विधेयक को लागू होने में कम से कम 6 साल और लगेंगे। यानी देश की आधी आबादी को अभी कम से कम 6 साल और इंतजार करना होगा।
निःसंदेह महिला आरक्षण विधेयक देश की आधी आबादी के लिए बहुत बड़ा तोहफा है। इसके लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस सहित सभी राजनैतिक दलों को इसका श्रेय जाता है। यह पहली बार है कि देश की आधी आबादी को आरक्षण देने में देश के सभी प्रमुख राजनैतिक दलों ने एकजुटता और सर्वसम्मति दिखाई। इसके लिए सभी बधाई के भी पात्र हैं। इस विधेयक के बाद अब देश की लोकसभा में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसी प्रकार देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं में भी अनिवार्य रूप से विधायकों की 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो सकेगी। यह निःसंदेह अत्यन्त सुखद है।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी मई 1989 में पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिए महिला आरक्षण विधेयक लाए थे। इसके बाद देश की आधी आबादी को लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में भी आरक्षण का इंतजार था। हाल ही में लोकसभा में लगभग सर्वसम्मति से और राज्यसभा में सर्वसम्मति से यह विधेयक पारित होने से लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित होने का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
यह महिला आरक्षण विधेयक करीब 3 दशक से अटका हुआ था। महिलाओं को आरक्षण देने का मुद्दा पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आंकलन करने वाली समिति ने उठाया था। इसके बाद पहली बार 2010 में मनमोहन सरकार ने इस विधेयक को राज्यसभा में तो पास करा लिया, किन्तु कुछ राजनैतिक दलों के विरोध के कारण लोकसभा में अटक गया। तब से अनेक कारणों से लोकसभा में यह विधेयक पारित नहीं हो सका। नई संसद में प्रवेश के समय यह विधेयक पारित हो सका।
वैसे देखा जाए तो लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की उपस्थिति कभी भी 15 प्रतिशत से अधिक नहीं रही। पिछले 5 लोकसभा चुनाव की ही बात की जाए तो सन 1999 में केवल 49 महिला सांसद थी। यह कुल सांसदों का 9 प्रतिशत ही था। 2004 में महिलाओं के सांसदों की संख्या और गिरकर 45 हो गई। उन सांसदो में महिलाओं का प्रतिशत 8.3 प्रतिशत ही रहा। 2009 में सांसदों की संख्या बढ़कर 59 हो गई, किन्तु यह प्रतिशत भी कुल लोकसभा सदस्यों की तुलना में 10.9 प्रतिशत ही रहा। सन 2014 में महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 62 हो गई। यह कुल सदस्यों में से महिलाओं का 11.4 प्रतिशत रहा। पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में पहली बार सांसदों की संख्या बढ़कर 78 हुई, किन्तु यह भी 14.4 प्रतिशत ही रहा। देश के किसी भी राज्य में 15 प्रतिशत से अधिक महिला विधायक कभी भी नहीं रही। इस मायने में देखा जाए तो यह विधेयक मील का पत्थर साबित होगा। जब देश की लोकसभाओं और विधानसभाओं में महिलाओं का 33 प्रतिशत हो जायेगा। यह जब भी होगा, निश्चित रूप से सुखद स्थिति होगी।
महिला आरक्षण अधिनियम में वर्तमान में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए दिए गए आरक्षण के अन्तर्गत ही महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह सराहनीय है। किन्तु और अधिक अच्छा होता, यदि इस अधिनियम में लोकसभा और विधान सभाओं में पिछड़े वर्ग के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया जाता और उसमें भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत का आरक्षण दिया जाता। भले ही लोकसभा और विधानसभाओं में पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता। यह अभी नहीं हुआ है। यह दुखद है।
वैसे देखा जाए तो यह विधेयक तुरंत प्रभाव से भी लागू किया जा सकता था। यदि इस विधेयक में जनगणना और परिसीमन का नियम लागू नहीं किया जाता तो निश्चित रूप से यह विधेयक आगामी लोकसभा चुनाव में लागू हो सकता था। मनमोहन सरकार ने जब राज्यसभा में सन 2010 में यह विधेयक पारित किया था, उसमें जनगणना और परिसीमन का नियम लागू नहीं किया गया था। अब देश की आधी आबादी को कम से कम 6 साल और इंतजार करना ही होगा तब जाकर सन 2029 के लोकसभा चुनाव में यह विधेयक लागू हो सकेगा। तब तक करना होगा महिलाओं को और इंतजार !
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