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अल्पसंख्यकों से क्यों बच रही है कांग्रेस ?


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                     कर्नाटक से मध्यप्रदेश तक आते आते कांग्रेस का चुनावी एजेंडा बदल गया सा लगता है।यहां वह बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात करने के बजाय बजरंग बली की आड़ लेती दिखाई दे रही है!अभी तक उसकी जो तैयारियां दिखाई दे रही हैं उनसे ऐसा लग रहा है कि एमपी में अल्पसंख्यक,दलित और महिलाएं उसकी प्राथमिकता में शामिल नहीं हैं।वह खुद को "प्रो हिंदू" साबित करने पर तुली हुई है। 
शनिवार को कांग्रेस ने बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्राओं के जवाब में जन आक्रोश यात्राएं निकालने का ऐलान किया।बीजेपी की पांच यात्राओं के मुकाबले वह सात यात्राएं निकालेगी।करीब 12000 किलोमीटर चलने वाली ये यात्राएं सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेंगीं।इनकी अगुवाई प्रदेश के 7 वरिष्ठ नेता करेंगे।ये नेता हैं - सुरेश पचौरी,डाक्टर गोविंद सिंह,अजय सिंह राहुल,अरुण यादव कांतिलाल भूरिया, जीतू पटवारी और कमलेश्वर पटेल।यात्राओं के लिए चुने गए नेताओं में कोई दलित ,अल्पसंख्यक और महिला नेता शामिल नहीं है।
                       यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने एमपी में उन मुद्दों पर जोर न देने की बात कही थी जो वहां सबसे अहम थे।खासतौर पर मुस्लिमपरस्त होने की अपनी छवि को वह बदलना  चाहती है।इसीलिए उसने यहां अपने को थोड़ा ज्यादा "हिंदू" दिखाने की कोशिश की।यही कोशिश जारी है। एमपी में मुसलमान कुल आबादी का  करीब 7 प्रतिशत हैं।अब तक 1962 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 7 मुस्लिम विधायक चुने गए थे।अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम  विधायक नही जीता था।फिलहाल दो मुस्लिम विधायक हैं। दोनों ही कांग्रेस के टिकट पर भोपाल  से ही चुने गए हैं!
                    जन आक्रोश यात्रा के पहले कांग्रेस ने चुनावी तैयारियों के लिए कुछ समितियां भी बनाई थीं। इनमें भी मुसलमानों की संख्या नगण्य सी है।मसलन स्क्रीनिंग कमेटी के 17 सदस्यों में एक भी मुसलमान नही है।न ही कोई महिला रखी गई है। प्रदेश चुनाव समिति में 23 सदस्य हैं।इसमें विधायक आरिफ मसूद को सदस्य बनाया गया है।दो महिलाएं भी इस समिति में हैं।
 प्रदेश चुनाव समिति में 40 सदस्य हैं।इसमें 4 महिलाओं को जगह दी गई है।जबकि दो मुस्लिम सदस्य रखे गए हैं। पॉलिटिकल अफेयर कमेटी में कुल 22 सद्स्य हैं।इनमें एक  विधायक आरिफ अकील को जगह दी गई है।महिलाओं का प्रतिनिधित्व शोभा ओझा करेंगी।
                इन सभी कमेटियों में कुल 3 मुसलमानों और 4 महिलाओं को जगह मिली है।मतलब 102 नामों में सिर्फ 3 मुसलमान और 4 महिलाएं। इस संबंध में एमपी के प्रभारी महासचिव रणजीत सुरजेवाला से जब पूछा गया तो उन्होंने गोलमोल जवाब दिया।उन्होंने कहा कि यात्रा में कांग्रेस के साथ सब चलेंगे।आप चेहरे न देखें!महिला दलित और मुसलमान को न शामिल किए जाने पर वे साफ कुछ नही बोले।
 उधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने सॉफ्ट हिंदुत्व पर बिना मांगे सफाई दी।उन्होंने कहा - मैं मंदिर जाता हूं तो बीजेपी को पेट में दर्द क्यों होता है।उल्लेखनीय है कि खुद को हनुमान भक्त बताने के लिए कमलनाथ हिंदू राष्ट्र की वकालत करने वाले विवादित धीरेंद्र शास्त्री के प्रवचन छिंदवाड़ा में करा चुके हैं।साथ ही शिवपुराण वांचने वाले प्रदीप मिश्रा भी छिंदवाड़ा में शिव की महिमा सुना आए हैं।कमलनाथ का बनवाया हनुमान मंदिर अक्सर चर्चा में रहता है।
               अल्पसंखकों और महिलाओं को हाशिए पर रखने के सवाल पर भले ही कांग्रेस नेता जवाब न दें पर इतना तो साफ है कि कांग्रेस एमपी में  फूंक फूंक कर पांव रख रही है।बीजेपी का एजेंडा साफ है।वह खुलेआम हिंदू कार्ड खेल रही है।मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक एक ही लाइन पर चल रहे हैं।राज्य सरकार कई हजार करोड़ रुपए मठ मंदिरों के पुनर्निमाण और निर्माण पर खर्च कर रही है।शास्त्री और मिश्र जैसे कथावाचक और तरह तरह के बाबा - संन्यासी उसकी मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस खुलकर मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने से परहेज कर रही है।इस वजह से मुस्लिम नेता नाराज भी हैं।पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी ने तो पिछले दिनों प्रदेश नेतृत्व पर सवाल भी उठाया था।पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान भी इसी तरह की बात कर रहे हैं।
 इसके बाद भी कांग्रेस अपनी चाल बदल नही रही है।उसे यह लग रहा है कि मुसलमानों के सामने उसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है।वे कहां जायेंगे?अब देखना यह है कि कांग्रेस की यह रणनीति उसे कितना फायदा पहुंचाती है। बीजेपी के सामने वह खुद को कितना  "हिंदू हितैषी" साबित कर पाएगी यह तो वक्त बताएगा।लेकिन  मुसलमानों की नाराजगी का खतरा साफ दिख रहा है।कहीं ऐसा न हो कि उसका असमंजस मध्यप्रदेश को उत्तरप्रदेश के रास्ते पर धकेल दे।

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