मप्र के चुनावी चटखारे,मोघे के मन की बात कौन सुने, कौन समझे
कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार
खरगोन से सांसद रहे, महापौर रहे और मध्य प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री रहे कृष्ण मुरारी का तब भले ही जलवा रहा हो लेकिन अब उनकी सलाह मानने, उनके मन की बात सुनने का न तो मुख्यमंत्री के पास समय है और न ही संगठन के नेताओं के पास, यही कारण है कि वो अपने मन का दर्द कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की याद करते हुए करते पहते हैं।
मोघे ने जब प्रदेश भाजपा संगठन मंत्री का दायित्व संभाला था उसके बाद उन्हें चमचमाती गाड़ी से लेकर टीपटॉप रहने का हुनर इंदौर के नेताओं ने ही समझाया था।भाजपा के पितृपुरुष कुशाभाऊ ठाकरे के प्रिय रहे संगठन मंत्री मोघेका तब आरएसएस में भी खूब सम्मान था। इन दो दशकों में पार्टी में निरंतर हुए बदलाव, केंद्रीय संगठन से लेकर मप्र सहित सभी राज्यों में मोशाजी के अहं ब्रह्मास्मीवाद का ही असर है कि मोघे और सत्यनारायण सत्तन भी भंवर सिंह शेखावत, दीपक जोशी की तरह पार्टी की नजरों से दूर होते गए हैं।
मध्य प्रदेश में फिर से सत्ता में आने के लिए भाजपा नेतृत्व ने मोघे, सत्तन जैसे वरिष्ठ नेताओं को रूठे हुए कार्यकर्ताओं की मानमनौवल का दायित्वसौंपा था। मोघे ने इंदौर सहित आसपास के क्षेत्रों में भी दौरे किए, नाराज कार्यकर्ताओं की पीड़ा से प्रदेश संगठन, सीएम आदि को अवगत भी कराया। कार्यकर्ताओं को भी लगा था कि जब सत्तन-मोघे जैसे वरिष्ठजन उणके घर आए हैं तो पार्टी को भी उनके योगदान की याद आएगी लेकिन अब वे सभी और रूठों को मनाने वाले भी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री- पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे को भी अब महसूस होने लगा है कि पार्टी में कार्यकर्ता का सम्मान होना चाहिए। उनसे संपर्क, संबंध रहना चाहिए। पार्टी के कामकाज में कार्यकर्ता की भूमिका होनी चाहिए। मोघे को लगने लगा है कि कार्यकर्ताओं के सम्मान में कमी आई है। मैं तो पार्टी को इसकी जानकारी दे चुका हूं, इसकी चिंता जरूर की जाएगी। कार्यकर्ता के मन की बात सुनी जाएगी।
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