इंदौर की अयोध्या में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में मशगूल कांग्रेस दावेदार
चुनावी चटखारे
कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार
अयोध्या कहे जाने वाला कांग्रेस के लिए 20 साल से अभेद्य किला बना हुआ है।इस बार कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह तक किसी दमदार प्रत्याशी की तलाश कर रहे हैं। जब तक यह तलाश पूरी नहीं होती दोनों ने राजा मांधवानी और अक्षय बम जैसे बेदम प्रत्याशियों को झुनझुना पकड़ा रखा है।एक को सिंधी वोटों का तो दूसरे को जैन मतदाताओं का भरोसा है।किंतु दोनों को इस क्षेत्र का इतिहास पता नहीं है। मांधवानी से पहले कांग्रेस इस क्षेत्र से गोविंद मंघानी को और बाद में जैन समाज के सुरेश मिंडा को भी चुनाव लड़वा चुकी है। मंघानी को खुद सिंधी समाज के शत-प्रतिशत वोट नहीं मिल पाए तो सुरेश मिंडा अपने ही दल के नेताओं के विश्वासघात का शिकार हो गए।
तब से अब तक कांग्रेस कल्चर में बदलाव जैसा चमत्कार आज तक नहीं हो पाया है।कांग्रेस ने अजित जोगी की पसंद पर उस दौर में अखबारी फाइल में सक्रिय नेता रहे मो इकबाल खान को भी टिकट देकर देखा तब से हिंदू-मुस्लिम में हुआ ध्रुवीकरण कांग्रेस पर भारी पड़ता रहा है। अभी जो शहर कांग्रेस अध्यक्ष हैं सुरजीत चड्डा उन्हें भी टिकट देकर सिख समाज को अपने पक्ष में करने का प्रयोग किया था लेकिन चड्डा भी नहीं जीत पाए थे।
इस क्षेत्र में कांग्रेस के सभी धड़ों में एकता-विश्वास का जो अभाव 1993 से बना है वह अब भी यथावत है।इस क्षेत्र से (फिलहाल) कांग्रेस के स्वयंभू प्रत्याशी राजा मांधवानी ने भी गुटबाजी को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, किस्मत से उन्हें टिकट मिलता है तो गुटबाजी को बढ़ाने वाली उनकी पहल पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाली साबित हो जाएगी।शहर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष गोलू अग्निहोत्री को साधने के चक्कर में मांधवानी जिले के दो कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला और विशाल पटेल का मान-सम्मान ही भुला बैठे। इन दोनों विधायकों का चार नंबर क्षेत्र के मतदाताओ में कुछ तो प्रभाव है ही-ऐसा नहीं होता तो पिछले चुनाव में गोलू अग्निहोत्री के मान-सम्मान का विधायक संजय शुक्ला ध्यान नहीं रखते।अब जबकि चड्डा की निरंकुशता पर नकेल लगाने के लिए पीसीसी चीफ कमलनाथ ने गोलू को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर गांधीभवन कार्यालय में बराबर की भागीदारी दे दी है मांधवानी को यह भ्रम होने लगा है कि चड्डा-गोलू को साधने और विधायक सज्जन वर्मा का संरक्षण चार नंबर में उन्हें मजबूत कर देगा।कांग्रेस के दोनों विधायकों संजय शुक्ला, विशाल पटेल सहित इस क्षेत्र के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी उनके समर्थकों में न सिर्फ बैचेनी का कारण बनती जा रही है बल्कि ये समर्थक मांधवानी के मुगालते दूर करने की रणनीति भी बना रहे हैं, यह संभव नहीं कि इन कार्यकर्ताओं की नाराजी की दोनों विधायकों को जानकारी न हो।
क्षेत्र क्रमांक चार के पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो 1990 में कैलाश विजयवर्गीय उनके बाद (स्व) लक्ष्मण सिंह गौड़ सतत तीन बार (1993, 1998 और 2003) में विधायक रहे। वाहन दुर्घटना देवास से पहले हुई वाहन दुर्घटना में असामयिक निधन के बाद उनकी पत्नी मालिनी गौड़ 2008 में सहानुभूति लहर में चुनाव जीतीं लेकिन उसके बाद के दो चुनावों (2013 और 2018) में भी जीत दर्ज करा के उन्होंने साबित कर दिया कि इस क्षेत्र के अयोध्या वाले मिजाज में बदलाव नहीं हुआ है।यही नहीं महापौर के चुनाव में प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने उन पर जो भरोसा किया उस पर भी वे खरी साबित हुईं।इस बार भाजपा फिर से उन पर भरोसा करती है तो कांग्रेस के इन दोनों प्रत्याशियों राजा मांधवानी और अक्षय बम में से कोई जीत ही जाए इस पर आज तो विश्वास नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि कांग्रेस के बड़े नेता अभी भी यहां से किसी दमदार प्रत्याशी की तलाश में हैं।
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