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विजयवर्गीय पर बढ़े भरोसे को भी समझ रहे हैं कार्यकर्ता


चुनावी चटखारे

कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार


                      भाजपा हाईकमान ने 2018 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर जितना भरोसा किया था, इस बार ऐसा नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का कद और उनकी संगठन क्षमता का ही असर है कि बीते वर्षों में मप्र की राजनीति में उनकी अहमियत को केंद्र ने भी समझा है। पिछले चुनाव में शिवराज सिंह का केंद्रीय नेताओं पर सम्मोहन का ही असर रहा था कि प्रदेश में उन वर्षों में विजयवर्गीय के साथ दूध में से मक्खी जैसा बर्ताव कर सके थे। इस बार विजयवर्गीय को साथ रखना शिवराज सिंह की मजबूरी इसलिए भी हो गई है कि निमाड़-मालवा क्षेत्र में उनके प्रभाव से दिल्ली के नेता तो प्रभावित हैं ही, केंद्र ने जिन केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के साथ भूपेंद्र यादव को अपने दूत के रूप में प्रदेश का प्रभार सौंपा है, वे भी विजयवर्गीय की संगठन क्षमता के कायल हैं। 
मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष जहां इस बार 200 पार का आह्वान हर सभा-सम्मेलन में कर रहे हैं, वहीं अमित शाह अपने हर दौरे, हर सम्मेलन में 150 सीटों पर सफलता को लेकर आशान्वित हैं। मतलब भाजपा नेतृत्व मान कर चल रहा है कि एक-एक सीट पर हाड़तोड़ मेहनत के लिए हर बूथ पर 51 फीसदी मतदान कराने के लिए कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के लिए सिर्फ शिवराज-वीडी शर्मा के भरोसे नहीं रहा जा सकता। मालवा-निमाड़ में पिछली बार असफलता का जो गहरा गड्ढा हुआ, उसे भरने के लिए विजयवर्गीय अधिक उपयुक्त रह सकते हैं। 
                         इन क्षेत्रों में ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी प्रभाव है, केंद्रीय नेतृत्व उनके मान-सम्मान का भी पूरा ध्यान रख रहा है, लेकिन इस हकीकत को भी समझ चुका है कि ग्वालियर-चंबल संभाग में तोमर-सिंधिया समर्थकों के बीच चल रही उठापटक थमने का नाम नहीं ले रही है। सिंधिया और उनके समर्थक मंत्री-विधायकों को आम भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा अब तक नहीं पचा पाने के अंदरूनी खतरों को भी भांप चुके नेताओं ने मालवा-निमाड़-ग्वालियर क्षेत्र में इसीलिए कैलाश विजयवर्गीय को जन आशीर्वाद यात्रा के स्टार के रूप में प्रोजेक्ट किया है।
                         मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 66 सीटों में से अधिकाधिक सीटें भाजपा को मिल जाएं, यह दायित्व एक तरह से विजयवर्गीय को ही दिया गया है। इसके साथ ही, अन्य क्षेत्रों में भी वहां के क्षत्रपों के साथ समन्वय बना कर भाजपा की जीत के लिए माहौल बनाने का काम भी वे आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से कर रहे हैं। इंदौर के क्षेत्र क्र. 3 से आकाश विजयवर्गीय का फिर से चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। महू सहित जिले की 9 सीटों में से अधिकाधिक सीटों पर कब्जा करने के लिए भाजपा कुछ प्रत्याशियों की सीट बदल भी सकती है। भाजपा कार्यकर्ताओं में चल रही चर्चा पर भरोसा किया जाए तो रमेश मेंदोला को दो नंबर की परंपरागत सीट की अपेक्षा एक या पांच नंबर से टिकट देने का प्रयोग भी किया जा सकता है। कारण यह कि एक नंबर क्षेत्र से भाजपा पिछली बार भी नहीं जीत सकी थी और पांच नंबर में वर्तमान विधायक महेंद्र हार्डिया को पुन: प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना क्षीण है। इस क्षेत्र से मेंदोला को चुनाव जीतने में अधिक परेशानी इसलिए भी नहीं आएगी कि इस विधानसभा से जुड़े दो वार्ड उनके दो नंबर क्षेत्र से जुड़े हैं। हालांकि, पांच नंबर से भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे के बाद आरएसएस के अशोक चौधरी का नाम भी चर्चा में है, लेकिन अंतिम फैसला संगठन को ही करना है, कौन सीट निकाल सकता है। पेंच यह भी फंस सकता है कि मेंदोला दो नंबर सीट की अपेक्षा अन्य किसी सीट से लड़ने पर तब ही राजी हो सकते हैं, जब किसी अन्य की अपेक्षा दो नंबर से कैलाश विजयवर्गीय ही चुनाव लड़ें। मेंदोला को पार्टी एक नंबर से लड़ाने का निर्णय कर ले तो इस सीट का चुनाव दो ब्राह्मण प्रत्याशियों के बीच मुकाबला होने से बेहद रोमांचक तो हो सकता है, लेकिन स्व. विष्णु शुक्ला बड़े भैया, भाजपा के पूर्व पार्षद राजेंद्र शुक्ला और विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष गोलू शुक्ला से संबंधों के चलते खुद मेंदोला इस सीट से चुनाव लड़ने पर राजी हो ही जाएं, ये संभव नहीं लगता। इसी तरह बेटे आकाश के साथ पिता कैलाश को भी इंदौर से चुनाव लड़वाकर भाजपा नेतृत्व परिवारवाद के आरोपों में नहीं उलझना चाहेगा। चुनाव परिणामों के बाद यदि भाजपा के सत्ता में आने की संभावना बनती है और दिल्ली के नेता प्रदेश का नेतृत्व कैलाश विजयवर्गीय को सौंपने का मन बना लें तो प्रदेश की किसी भी सीट से जीते विधायक का इस्तीफा करा के उस सीट से विजयवर्गीय को चुनाव लड़वाने का रास्ता भी निकाल सकती है। ऐसे में एक ही जिले से पिता-पुत्र को टिकट देने जैसे आरोप से भी बचा जा सकेगा।

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