घर का जोगी जोगड़ा और आन गाँव का सिद्ध
रविवारीय गपशप
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लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं,और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
कहते हैं घर का जोगी जोगड़ा और आन गाँव का सिद्ध , यानि आदमी को इज्जत कमाने बाहर जाना हीपड़ेगा इसलिए ही आदमी रोज़गार और इज्जत की ख़ातिर घर बार छोड़ कर दुनियां जहान में भटकते है । लेकिन एक बातमैंने महसूस की और वो ये कि सारा जीवन कहीं भी आदमी भटक ले पर अंत समय में उसे अपना घर ही याद आता है ।
एक बार ट्रेन में यात्रा के दौरान एक सज्जन से मेरी मुलाकात हुई जो इंजिनियर थे और इटली में रह रहे थे ।बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे मूलतः छतरपुर के निवासी हैं और खजुराहो में गाइड थे । खजुराहो में दुनिया भर सेलोग आते हैं सो इसी दौरान इटली से खजुराहो घूमने आयी एक लड़की से उनके नैना चार हुए , दोनों में प्यार हो गया औरसन अस्सी के दशक में वे उसी लड़की के साथ इटली चले गए । वहां उन्होंने फर्नीचर की दुकान डाल रखी थी और उसइतालवी लड़की से शादी कर ली थी । बातचीत में उन्होंने बताया कि मैं तो हर वर्ष यहाँ आता हूँ , यहाँ से कुछ पुरानाफर्नीचर , घरों के दरवाजे आदि खरीद कर इटली ले जाता हूँ और उन्हें वहां सुधार कर एंटीक आइटम के रूप में बेच देता हूँ। इसी बहाने हर वर्ष अपने घर आने और सबको देखने सुनने का मौका मिल जाता है । मैंने पूछा तुम्हारे बीबी बच्चे नहींआते ? तो कहने लगे “एकाद बार वे आये थे , पर उन्हें यहाँ अच्छा नहीं लगता और जब मैं आता हूँ तो दूकान मेरी बीबी कोसम्हालनी पड़ती है , इसलिए मैं अकेला ही आता हूँ पर मुझे तो हर साल यहाँ आये बिना चैन नहीं पड़ता , तो ये बहाना धंधेका मैंने इसीलिए ढूंढ लिया है कि घर के लोगों से मुलाक़ात होती रहे ।
ट्रेन के सफ़र में ही ऐसे ही एक सज्जन से मेरी मुलाक़ात हुई जो जर्मनी से अपना सब कुछ छोड़ कर आयेथे । उनकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प थी वे सन उन्नीस सौ पचास में ही जर्मनी चले गये थे । आई आई टी रुड़की सेइंजीनियरिंग करके राउरकेला प्लांट में नौकरी करते थे । कहने लगे “एक बार किसी ट्रेनिंग में वहां गया और वहीं एकजर्मन लड़की से प्रेम हो गया , फिर क्या था वहीँ शादी की और वहीँ बस गया फिर वापस इंडिया नहीं आया , कुछ बरसपहले रिटायर हो गया हूँ तो मेरा मन वहां लगता नहीं है , इसलिए यहाँ आ गया । मैंने पूछा यहाँ कौन है ? तो कहने लगेसभी कोई हैं , ताऊ हैं उनके लड़के मेरे भाई बंधू और उनके बच्चे , गाँव में रहते हैं । मैंने कहा कुछ खेती बाड़ी ? तो कहनेलगे अरे नहीं वो तो सब मैंने तभी सबको दे रखी थी अब तो बस एक छोटा सा घर वहीँ गाँव में बनाया है और नाते रिश्तेदारोंके बीच रहा आता हूँ और पूरा भारत घूमता रहता हूँ, आज महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन करने जा रहा हूँ । मैंने फिर पूछाआपके बच्चे और पत्नी कहाँ हैं , तो कहने लगे अरे वो लोग़ तो सब जर्मनी में ही हैं , सब अपने अपने कामों में लगे हैं पत्नीके भी सब रिश्तेदार वहीँ हैं , तो वो तो मेरे साथ नहीं आई कहने लगी अब अंत समय में अपना देश क्या छोडूं पर मेरा तोदेश ये ही है इसलिए मैं ही सब छोड़ के आ गया । अब कभी कभी साल दो साल में जब उनकी याद आती है तो उनसे वहीँजाकर मिल आता हूँ । वे कभी मिलने नहीं आते ? मैंने कहा तो गहरी सांस भर कर बोले उन्हें यहाँ का वातावरण सूट नहींकरता पत्नी शुरू में जब हम जवान थे तो एकाद बार आई है पर बच्चे कभी नहीं आये और न उनकी इच्छा होती है । मुझेथोडा आश्चर्य हो रहा था तो न चाहते हुए भी मैंने पूछा की इतने दिनों में इतने जीवन भर का सम्बन्ध , घर , संपत्ति पत्नीबच्चे सब छोड़ कर आप यहाँ आ गए विचित्र नहीं लगता आपको ? कहने लगे क्या करूँ मुझे अपने घर की और देश कीबड़ी याद आती थी , नौकरी से रिटायर हो दो एक साल कोशिस की पर फिर मुझसे रहा नहीं गया , बाल बच्चे तो अपनेकामों में व्यस्त हैं और पत्नी अपने काम में वे पर मुझे अपने वतन की बड़ी याद आती थी तो मैं तो सब छोड कर आ गया , और ऐसा नहीं है कि सम्बन्ध खत्म कर दिए , पर मैं ये जान गया हूँ कि वे कभी यहाँ नहीं आ पाएंगे और मैंने उनके साथरहता तो मैं कभी यहाँ नहीं आ पाता इसलिए मैंने ये रास्ता चुना , मुझे लगता अच्छा है अपने लोगों के बीच रह के , चाहेकभी किसी से कोई काम न हो न सही पर हिंदुस्तान में लोगों में प्यार ज्यादा है , अब आप ही देखो आप को क्या लेना देनाहैं मुझसे और इतनी बातें पूछ रहे हो , वहां ऐसा नहीं है सब अपने काम से काम रखते है | बस ऐसे ही जीवन गुजर जाएगाअपने देश में अपने लोगों के बीच अपने गाँव की मिटटी में दम तोडूंगा बस यही संतोष है |
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