अपना एमपी गज्जब है..103 बिना दूल्हे के घूम रहे भव्य "सत्तावरण" रथ!
अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
एमपी में सत्ता के स्वयंवर की बिसात बिछ चुकी है।सत्ता के परिजनों (जनता) से खुद का वरण कराने के लिए सभी राजनीतिक दल अपने पांसे फेंक रहे हैं। चालें चल रहे हैं। दावे कर रहे हैं।सत्तारूढ़ दल ने तो सरकारी खजाने का मुंह ही खोल रखा है।दोनों हाथों से पैसा उलीचा जा रहा है।पैदल,हाथी,घोड़े,रथ और विमान सब जनता को रिझाने में जोत दिए गए हैं।सब एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में ऐसे दौड़ रहे हैं जैसे हिंसक शेर से जान बचाने के लिए हिरण! इस बीच एक खेल और हो रहा है!वह खेल है पाला बदलने का खेल! जनता को मोहने की दौड़ में प्यादे भी अपने खेमे बदल रहे हैं।कोई इधर जा रहा है तो कोई उधर!सबकी शानदार आवभगत भी हो रही है।बड़े ही रोचक नजारे देखने को मिल रहे हैं। इस दौड़ में अभी तक सत्तारूढ़ दल(बीजेपी) सबसे ज्यादा तेज गति से दौड़ रहा है।मजे की बात यह है कि सत्ता को अपनी "अंकशायिनी" बनाए रखने के लिए उसने नया प्रयोग किया है!अपने "रिकॉर्डतोड़" दूल्हे का चेहरा आगे करने की बजाय संभावित दूल्हों की पूरी जमात ही उतार दी है।
तीन सितंबर 2023 से प्रदेश में सबसे खर्चीली,तड़कीली ,भड़कीली और रंगीली बारातें देखने को मिलेंगी।ये बारातें करीब 18 दिन तक प्रदेश में घूमेंगी।करोड़ों की लागत वाली इन बारातों में फूफा,जीजा,चाचा, ताऊ,मौसा तो होंगे लेकिन कोई नखरे करता दिखाई नही देगा।उल्टे ये सभी अपनी झोली फैलाए नजर आएंगे।
जैसा कि होता है..सत्ता के लिए जनता से खुद का वरण कराना है। इसलिए इन बारातों को "जन आशीर्वाद" यात्रा का नाम दिया गया है।इनमें पहली यात्रा तीन सितंबर को सतना के चित्रकूट से शुरू होगी।आपको याद होगा कि राम ने वनवास के दौरान चित्रकूट में भी कुछ समय बिताया था।वे तो सत्ता छोड़ कर वन जाते समय चित्रकूट में रुके थे!इन्होंने सत्ता पाने के लिए चित्रकूट को चुना है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा पहले "रथ" को रवाना करेंगे! हालांकि यह काम पहले गृहमंत्री अमित शाह करने वाले थे।लेकिन शायद उन्हें यह याद आ गया कि पार्टी में एक अध्यक्ष भी हैं।इसलिए पहला दिन उन्होंने छोड़ दिया।अब वे 5 सितम्बर को दो स्थानों से "सत्तावरण" रथों को रवाना करेंगे।एक रथ को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और एक को हाशिए पर चल रहे सड़क मंत्री नितिन गडकरी आगे बढ़ाएंगे!अगले चार दिन में पांच रथ जनता के बीच दौड़ते नजर आएंगे।यह दौड़ पूरे पखवाड़े तक चलती रहेगी।चित्रकूट के अलावा नीमच,मंडला,श्योपुर और खंडवा से चलने वाले ये रथ भोपाल पहुंचेंगे।
आंकड़ों के मुताबिक यह यात्रा करीब 11 हजार किलोमीटर की होगी।पांच अलग अलग स्थानों से रवाना होने वाले रथ प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों से होते हुए भोपाल आयेंगे।इस दौरान 958 स्थानों पर यात्रा का स्वागत होगा।678 सामान्य सभाएं होंगी।211 बड़ी सभाएं की जाएंगी।आखिरी और बड़ी सभा 25 सितम्बर को भोपाल में होगी।उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे।उनके लिए दस लाख लोगों को भोपाल लाया जाएगा।
जानकारी के मुताबिक एक यात्रा में सत्तावरण रथ के साथ सात से दस वाहन चलेंगे।बधाई गाने के लिए मीडिया को साथ रखा ही जाएगा।यात्रा के दौरान कम से कम 100 लोगों के रुकने की व्यवस्था तय है।संख्या बढ़ेगी तो व्यवस्था भी बढ़ जायेगी।बाकी कितने वाहन साथ चलेंगे यह राम जाने।क्योंकि बारातियों की संख्या तो तय ही नही है।230(प्रदेश में इतने ही विधायक चुने जाते हैं) की गिनती में शामिल होने के लिए कितने भी लोग दौड़ लगा सकते हैं।वे दौड़ेंगे तो अपने ही भरोसे! अपने "बंदोबस्त" के साथ। एक बात पहले ही साफ कर दी गई है कि इन सत्तावरण यात्राओं की व्यवस्था "पार्टी" ही कर रही है।सरकार का इससे कोई लेना देना नही है।खर्च कितना होगा ..? इस सवाल का उत्तर न प्रदेश अध्यक्ष ने दिया और न ही चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक ने। अब आप खुद गणित लगाते रहिए!500 करोड़ खर्च होंगे कि 700 करोड़।इसमें टिकट पाने की आशा में शक्ति प्रदर्शन करने वालों का खर्च जोड़ा नही जा सकता।वह तो उनका कर्तव्य है।आखिर अपना चेहरा आगे करने के लिए कुछ न कुछ करना ही होगा।यह अलग बात है कि वे 230 की सूची में शामिल हो भी पाएंगे या फिर मंजिल न पाने वाले यात्री बन कर ही रह जाएंगे। भोपाल में दस लाख लोगों की रैली पर होने वाले खर्च का हिसाब तो अलग ही रखा जाएगा।दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिन भी उसी दिन है।उनका खाता अलग ही रखा जाता है। इन यात्राओं के लिए जो भव्य रथ बने हैं उनकी लागत का खुलासा नही हुआ है।ये रथ आज ही भोपाल से अपने गंतव्य स्थलों को रवाना किए गए हैं। सबसे रोचक बात यह है कि निवर्तमान दूल्हे को भी समय समय पर इन रथों पर सवार कराया जाएगा।सोचिए उस आदमी ने अपने सीने पर कितना बड़ा पत्थर रखा होगा जिसे यह साफ बता दिया गया हो कि तुम्हें अपनी जगह किसी और को देनी होगी साथ ही उसके लिए "सुख की सेज" सजाने का बंदोबस्त भी करना होगा! अब देखना यह है कि "सत्तावरण रथ" जनता को कितना प्रभावित कर पाते हैं।लोग तात्कालिक लाभ के आगे अपनी स्थाई परेशानियां भूल जायेंगे!रोटी पर मंदिर भारी पड़ जाएंगे!देवी देवताओं के भव्य लोक उनकी अगली पीढ़ियों का पेट भरने में क्या भूमिका निभाएंगे!कर्ज की कीमत पर बंट रही रेवड़ियां उनकी आखों पर कितनी मोटी पट्टी चढ़ाएंगी ! कुछ भी हो बिना दूल्हे की बारातों की चकाचौंध आंखों की रोशनी पर तो असर डालेगी ही।
स्वयंवर के अन्य प्रतिभागी अभी दौड़ की तैयारी में जी लगे हैं।इसलिए उन पर बात उनके दौड़ने के बाद की जायेगी। हां सब एक ही तरह की सारंगी बजा रहे हैं।किसी की तेज ध्वनि निकाल रही है तो किसी की धीमी ! लेकिन आप एक बात बताइए!आपने इससे पहले कभी ऐसा सुना या देखा है!बिना दूल्हे की बारातें!और दूसरे के लिए सुखसेज सजाता दूल्हा! ! नहीं न!कोई बात नहीं अब देख लीजिए और बताइए - अपना एमपी गज्जब है कि नहीं ! बताइए..बताइए !