शिप्रा-खान नदी विकास प्राधिकरण का गठन हो
संदीप कुलश्रेष्ठ
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) द्वारा उज्जैन की शिप्रा और खान नदी को गंगा नदी की सहायक नदी माना गया है। इसलिए गंगा नदी प्राधिकरण की तर्ज पर शिप्रा और खान नदी विकास प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए। इसी के साथ 600 करोड़ रूपए की प्रस्तावित अव्यवहारिक खान नदी क्लोज डक्ट परियोजना को निरस्त किया जाना चाहिए। यदि प्राधिकरण का गठन किया जाए तो उसका अध्यक्ष गैर शासकीय और गैर राजनैतिक, नदी शुद्धिकरण और प्रवाहमान बनाने में विशेषज्ञता प्राप्त कर चुके व्यक्ति को ही बनाया जाना चाहिए।
पर्यावरण संरक्षण समिति ने लिखा पत्र -
उज्जैन के पर्यावरण संरक्षण समिति के अध्यक्ष डॉ. विमल गर्ग ने हाल ही में उक्त आशय की एक चिट्ठी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को लिखी है। उनका यह प्रयास सराहनीय है। यदि यह हो जाता है तो शिप्रा और खान नदी प्रदूषण मुक्त होने के साथ-साथ प्रवाहमान भी हो सकेगी। इसके साथ ही इस क्षेत्र का और अधिक विकास भी संभव हो सकेगा।
100 करोड़ रूपए की खान नदी डायवर्सन योजना फेल -
2016 के सिंहस्थ के लिए प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने खान नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 100 करोड़ की खान नदी डायवर्सन योजना बनाई थी। यह योजना 1 साल भी चल नहीं पाई और अपने उद्देश्य में पूरी तरह असफल सिद्ध हो गई। खान नदी पर बनाया गया अस्थाई कच्चा डेम हर साल बारिश में टूट जाता है और खान नदी का पानी शिप्रा में मिल जाता है। यह हर साल का रोना है। यह योजना पूरी तरह से आज असफल सिद्ध हो चुकी है। जल संसाधन मंत्री श्री तुलसी सिलावट ने भी इस बात को पिछली बार पत्रकारों से चर्चा करते हुए स्वीकार किया है।
अब फिर बनी 600 करोड़ की योजना -
इस वर्ष फिर 600 करोड़ रूपए की खान नदी क्लोज डक्ट परियोजना जल संसाधन विभाग द्वारा बनाई गई है। इसे मुख्यमंत्री द्वारा स्वीकृति भी दे दी गई है। किन्तु यह योजना भी 100 करोड़ की खान नदी डायवर्सन योजना की तरह ही मूल उद्देश्य को लेकर बनाई गई है। इस नई योजना ने भी उन्हीं बातों को आधार बनाया गया है। जिस बात के आधार पर 100 करोड़ की योजना बनाई गई थी। वह योजना असफल सिद्ध हो चुकी है इसलिए यह योजना भी अव्यवहारिक सिद्ध होने वाली है। इसलिए इस अव्यवहारिक योजना को निरस्त किया जाना चाहिए।
शिप्रा-खान नदी विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष विशेषज्ञ को बनाया जाए -
शिप्रा-खान नदी विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष नदी शुद्धिकरण में अपना नाम रोशन करने वाले विशेषज्ञ को ही बनाया जाना चाहिए। इनमें कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार के भी हो सकते है। उदाहरण के लिए पद्मश्री और पद्मविभूषण प्राप्त डॉ. अनिलप्रकाश जोशी या पद्मश्री श्री महेशचन्द्र शर्मा या रमन मैग्सेसे से पुरस्कार प्राप्त और जलपुरूष के रूप में ख्यात श्री राजेन्द्र सिंह या जल योद्धा श्री उमाकांत पांडे जी हो सकते है। कोई और भी हो सकते है जिन्होंने नदियों को पुनर्जीवित किया हो और प्रवाहमान बनाया हो। इस क्षेत्र में पारंगत विद्वान को ही इस प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
अगले सिंहस्थ में शिप्रा में ही हो स्नान -
अगला सिंहस्थ 2028 में आने वाला है। पिछला सिंहस्थ 2016 में आयोजित हुआ था। इसे 7 साल से ज्यादा समय हो गया है। पिछले सिंहस्थ में नर्मदा के जल से श्रद्धालुओं ने स्नान किया था, न कि शिप्रा के जल से। अब अगला सिंहस्थ आने में 5 साल ही बचे है। प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान उज्जैन में अनेक बार यह घोषणा कर चुके है कि अगला सिंहस्थ का स्नान शिप्रा के जल से ही होगा। इसके लिए यह जरूरी है कि शिप्रा-खान नदी विकास प्राधिकरण का गठन किया जाए और गंगा प्राधिकरण की तरह ही केन्द्र से उसके लिए आवश्यक राशि प्राप्त की जानी चाहिए, तभी शिप्रा शुद्ध और प्रवाहमान हो सकेगी और शिप्रा के जल से ही श्रद्धालु अगले सिंहस्थ में स्नान कर सकेंगे।
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