मोक्षदायिनी शिप्रा तट पर किया श्रावणी उपाक्रम
उज्जैन। श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर बुधवार को श्रावणी उपाकर्म कर ब्राह्मणों नई जनेऊ धारण की। बुधवार को सुबह 11 बजे से पूर्णिमा तिथि होने से शिप्रा तट पर ब्राह्मण समाज के बटुक और जनेऊधारी ब्राह्मणों ने श्रावणी उपाक्रम किया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच नदी में स्नान कर जनेऊ बदली गई।
श्रावणी उपाकर्म श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है, जिसमें अपने पितरों का तर्पण कर जाने अनजाने में हुए समस्त दोषों से मुक्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। श्रावणी उपाकर्म करने से देवता व पितृ प्रसन्न होते हैं। पूर्व में हुए दोषों के पश्चाताप व पितृ और देवता की कृपा प्राप्त करने का यह पर्व माना गया है। ब्राह्मण बंधुओं द्वारा प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन पर यह कर्म शिप्रा नदी तट पर वृहद स्तर पर संपन्न किया जाता है। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि सुबह 10:58 पर प्रारंभ होने से 11 बजे बाद ही ब्राह्मणजन परंपरा का निर्वहन करने के लिए नदी तट पहुंचे। यहां श्रावणी कर जनेऊ बदली गई।प्रायश्चित संकल्प, संस्कार व स्वाध्याय श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष हैं। संकल्प लेकर गाय के दूध, दही, घृत, गोबर व गोमूत्र व पवित्र कुशा से स्नानकर करने के बाद वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मो के लिए प्रायश्चित किया जाता है। यह जीवन को सकारात्मकता की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करने वाला है। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान व यज्ञोपवीत पूजन करने का विधान है। इसे प्रायश्चित संकल्प कहा गया है। नवीन यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करना आत्म संयम का संस्कार होना माना जाता है। उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय है। इसमें ऋगवेद के मंत्रों से आहुति दी जाती है।