ट्रक पर सफ़र करने का वो मेरा आख़िरी मौक़ा
लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं,और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं। रविवारीय गपशप ——————— जब हम लोग नौकरी में भर्ती हुए , तो उस समय धूमधाम और दिखावे का रिवाज नहीं था , और ये बात सेवा के सभी संवर्ग के लिए लागू थी । राजनांदगाँव में हमारे कलेक्टर श्री अजय नाथ की पत्नी बैंक में प्रोबशनरी अफ़सर थीं और अपने बैंक की ब्रांच में , जो ज़िले से दूर कहीं थी , आने जाने के लिए सरकारी जीप नहीं बल्कि परिवहन निगम की बस का इस्तेमाल किया करती थीं ।एक बार वे ऑफिस जाने के लिये चढ़ीं , तो रास्ते में बस रोक कर आगे की सीट ख़ाली कराई गई , थोड़ी देर बाद उसपर एक महिला आकर बैठ गई । श्रीमती नाथ को अपने बग़ल में बैठा देखकर उसने उन्हें शान से बताया कि उसका पति पटवारी है , इसके बाद जब उसने मैडम का परिचय लिया और उसे पता लगा तो वो पानी पानी हो गई । हर्ष मंदर जो नाथ साहब के पूर्व हमारे कलेक्टर थे , सामान्य श्रेणी की स्लीपर क्लास में यात्रा किया करते थे । एक दिन जब मुझे पता लगा कि कलेक्टर साहब किसी काम से भोपाल जा रहे हैं , तो मैं अपने घर से थर्मस में चाय भर के उन्हें पिलाने रेलवे स्टेशन पहुँच गया । डोंगरगढ़ में ट्रेन बहुत कम रुका करती थी , सो ट्रेन के आते ही चाय पिलाने की औपचारिकता हमने पूरी कर ली , इसके बाद मैं प्लेटफ़ार्म पर खड़ा ट्रेन के रवाना होने का इन्तिज़ार कर रहा था , तभी कलेक्टर साहब का ड्राइवर मेरे पास आया और मुझसे कहने लगा कि “ सर टीटी से बोल कर मेरी बर्थ बदलवा दो “ मैंने कारण पूछा तो कहने लगा , “ साहब मैं भी अपने काम से भोपाल जा रहा हूँ पर मेरी बर्थ कलेक्टर साहब की बर्थ के ठीक ऊपर है , अब मेरी भला क्या मज़ाल कि मैं कलेक्टर साहब के ऊपर वाली बर्थ पर सोऊँ , आप तो डब्बे में कहीं और बर्थ दिलवा दो “ । राजनांदगाँव से जब मेरा पहला स्थानांतरण ज़िले से बाहर नरसिंहपुर हुआ तब मैं खैरागढ़ अनुविभाग का एस.डी.एम. था । मेरी धर्मपत्नी उनदिनों अपने मायके गई हुईं थीं । गृहस्थी में कुछ ज़्यादा सामान तो था नहीं , लेकिन जितना भी था उसे जब पैक करके परिवहन के लिए लादने की बारी आयी , तो सारा सामान एक छोटे से वाहन में आ गया जिसे टाटा 407 कहा करते थे । जब सारा सामान लद गया , तो मैंने सोचा नरसिंहपुर जाने के लिये सीधी कोई ट्रेन तो है नहीं , दुर्ग जाकर ट्रेन पकड़नी होगी और बीच में एक और ट्रेन बदलकर ही नरसिंहपुर पहुँचा जा सकेगा । मैंने मिनी ट्रक के ड्राइवर से पूछा कि क्या मैं भी इसी ट्रक में आपके साथ नरसिंहपुर तक चल सकता हूँ ? ड्राइवर को क्या एतराज होता , वो मान गया और शाम को मैं उसी छोटे ट्रक में बैठ नरसिंहपुर की और चल पड़ा , रास्ते में कवर्धा के अनुविभागीय अधिकारी श्री गणेश शंकर मिश्रा जी को जब ये बात पता लगी तो उन्होंने मुझे कवर्धा बुलवा लिया और हम सब को भरपेट भोजन कराया । इसके बाद रात में ही हम ट्रक में बैठकर चल दिये । ड्राइवर ने जंगल वाला रास्ता पकड़ा और सिवनी होते हुए हम दूसरे दिन दोपहर तक नरसिंहपुर पहुँच गए । ट्रक से सामान उतरवा कर मैं तो बेसुध सोया और दूसरे दिन जब उठ कर चाय पीते हुए अख़बार पढ़ रहा था तो पता चला गंडई होते हुए जिस जंगली रास्ते से हम गुजरे थे उस पर रास्ते में पड़े फारेस्ट के जाँच नाके पर नक्सलियों ने हमला बोल पूरी जाँच चौकी ही उड़ा दी थी । ट्रक पर सफ़र करने का वो मेरा आख़िरी मौक़ा था ।