चुनाव चटखारे,देखते-देखते कविता तो राजनीति में महाकाव्य हो गईं…!
कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार
मध्य प्रदेश और खासकर इंदौर की भाजपा नैत्रियों को समझ नहीं आ रहा है कि उनमें इतनी प्रतिभा का अभाव क्यों है? महू के भाजपा नेता-पूर्व मंत्री रहे (स्व) भेरुलाल पाटीदार की पुत्री कविता पाटीदार से इन भाजपा नैत्रियों को जलन हो रही है लेकिन दुखड़ा रोएं भी तो किस के आगे, सब तो कविता के काम उनकी प्रतिभा के कायल हुए जा रहे हैं। भोपाल से लेकर दिल्ली तक में सरकार ने जो नाम बदलने की प्रथा शुरु की है वो भी ऐतिहासिक धरोहर तक सीमित कर रखी है वरना सीए से लेकर पीएम तक से मनुहार कर लेतीं कि हमारा भी नाम बदल कर कविता कर दीजियेना।
इन महिला नैत्रियों की जलन भी स्वाभाविक है। मप्र कोटे से राज्यसभा की सीट खाली हुई तो इंदौर सहित प्रदेश से दावेदार तो कई थे लेकिन भाजपा नेतृत्व ने कविता पाटीदार का नाम तय कर न सिर्फ पाटीदार परिवार बल्कि इंदौर सहित मप्र भाजपा के धुरंधर नेताओं को भी चौंका दिया।जबकि सब जानते हैं मप्र, गुजरात सहित अन्य क्षेत्रों में बसे पाटीदार समाज को प्रभावित करने का यह आसान तरीका था। एक तरह से यह कविता के महाकाव्य में बदलते जाने की शुरुआत थी।फिर तो सिलसिला चल पड़ा, सांसद बनते ही प्रदेश भाजपा की संगठन मंत्री तो हो ही गईं, भाजपा महिला मोर्चा का अतिरिक्त प्रभार सम्हालने की काबिलियत भी पार्टी को उनमें ही नजर आई। विशेष जनसंपर्क अभियान की प्रदेश संयोजक तो हैं ही। ग्वालियर की संगठन प्रभारी भी हैं।अब यदि पार्टी उन्हें महू से विधानसभा के लिए प्रत्याशी बनाना भी तय कर ले तो महिला नैत्रियों के सामने अंधेरे में छाती-माथा कूटने के अलावा चारा भी नहीं है क्योंकि सार्वजनिक रूप से तो कविता पाटीदार का सत्कार-सम्मान करना ही पड़ेगा।उन्हें महू से चुनाव लड़ाने पर चिंतन करने वाले भाजपा नेतृत्व को यह भी पता करना चाहिए कि महू में चल रहे बंगला-बगीचा मामले में सांसद की चुप्पी क्यों हैं।3 हजार परिवारों से जुड़े इस मामले में में एकाधिक बार मिल चुके रहवासियों से सीधे मुंह बात करने का भी वक्त क्यों नहीं निकाल पातीं जबकि ये हजारों परिवार इसी क्षेत्र के मतदाता भी हैं।
मोटाभाई पर मानसून भारी
कांग्रेस का तो कोई षड़यंत्र नहीं था लेकिन सर्वाधिक खुश वही है। कारण यह कि 27 जून को प्रधानमंत्री मोदी शहडोल पहुंचने वाले हैं वे करीब तीन घंटे वहां रहेंगे। उनकी यात्रा से पहले माहौल बनाने के लिए भाजपा ने मध्य प्रदेश में जो छह गौरव यात्राएं निकालना तय की थी।उसमें से पहली रानी दुर्गावती गौरव यात्रा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह गुरुवार को बालाघाट से शुरु करने वाले थे लेकिन मोटा भाई के हेलीकॉप्टर के आगे से बिल्ली बन कर मानसून निकल गया। फिर क्या वो रायपुर से बालाघाट के लिए उड़ ही नहीं सके। ये गौरव यात्राएं बालाघाट से शहडोल, छिंदवाड़ा से शहडोल, सिंगरामपुर से शहडोल, कलिंजर फोर्ट यूपी से शहडोल और धौहनी से शहडोल के लिए 26 जून तक निकलेंगी।पीएम, अमित शाह और जेपी नड्डा सहित इनका नेतृत्व भी आदिवासी नेता-सांसद आदि करेंगे।
उधर से घोषणा, जवाब में इधर से घोषणा
मुख्यमंत्री यदि नित नई घोषणा कर आमजन को लुभाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हैं तो कमलनाथ भी जवाबी घोषणा में पीछे नहीं हैं। लाड़ली बहना के जवाब में कमलनाथ नारी सम्मान ले आए और अब नगर-ग्राम सेवा समिति के सदस्यों को कांग्रेस सरकार बनते ही वर्दी और मानदेय देने की घोषणा कर दी है।इस समिति के प्रदेश अध्यक्ष ध्रुव सिंह सिकरवार की मांग पर यह घोषणा करने वाले कांग्रेस संगठन को लग रहा है यह लाड़ली सेना का माकूल जवाब है।
दांव दिग्विजय सिंह का
सिंधिया और उनके समर्थक मंत्रियों को घेरने का दिग्विजय सिंह कोई मौका नहीं छोड़ते।अभी सागर के सुरखी विधानसभा क्षेत्र में 10 आदिवासियों के मकान ढहाने को दिग्विजय सिंह ने मंत्री गोविंद सिंह राजपूत की खुन्नस से जोड़ दिया है।कह दिया है कि ये आदिवासी राजपूत से डरते नहीं इसलिए उन को बेघरबार कर दिया गया।पिता की तरह पुत्र जयवर्द्धन भी इंदौर में सिंधिया को लेकर बोल चुके हैं उनकी भानी भूमिका भाजपा में तय नहीं है।उनके समर्थकों को इस बार टिकट मिल जाएं यह भी तय नहीं है।
हाका लगा रहे हैं शिकारी
मप्र के सभी बड़े भाजपा नेता फिर चाहे वह वीडी शर्मा, पूर्व अध्यक्ष प्रभात झा हों, मुख्यमंत्री हों या गृहमंत्री मिश्रा ये सब शिकार करने के लिए हाका लगा रहे हैं।इन सब के निशाने पर पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व सांसद-कांग्रेस नेता अरुण यादव हैं। अभी यादव समाज की प्रतिभाओं के सम्मान में मुख्यमंत्री चौहान ने पूर्व मंत्री-विधायक सचिन यादव में छुपी प्रतिभा को भी पहचान लिया है। सम्मोहित करने के लिए उनके पिता सुभाष यादव की भी खूब तारीफ इसलिए भी कर डाली कि बड़ा नहीं तो छोटा भाई ही सही। यादव बंधुओं की इस घेराबंदी की वजह है पश्चिम निमाड़ क्षेत्र में भाजपा की कमजोर स्थिति। पिछले चुनाव में यादव बंधुओं के प्रभाव का ही असर रहा कि खरगोन की सभी छह सीटों पर भाजपा को पराजय मिली। अरुण यादव का खंडवा संसदीय क्षेत्र में भी प्रभाव रहा है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान के बाद से भाजपा को अरुण यादव जैसे प्रभावी नेता की तलाश है और ये दोनों भाई सॉफ्ट टारगेट लग रहे हैं।
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