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एक दर्जन निकायों के चुनाव ‘खतरे की घंटी’....


राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी

                  प्रदेश के अलग-अलग जिलों के निकायों में 13 पार्षदों के लिए हुए चुनाव बाहर से देखने में ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं लेकिन नतीजे कई संकेत देते हैं। भाजपा-कांग्रेस के लिए ये चुनाव परिणाम ‘न हम हारे, न तुम जीते’ जैसे भी हैं क्योंकि दोनों दल लगभग बराबरी पर हैं। भाजपा ने 7 वार्डों में जीत दर्ज की है और कांग्रेस ने 6 में। बावजूद इसके दोनों अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। भाजपा खुश है क्योंकि कमलनाथ के छिंदवाड़ा में भाजपा ने जीत दर्ज कर ली है और कांग्रेस इसलिए क्योंकि स्थानीय चुनावों में भी वह भाजपा की बराबरी पर है। भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने एक वार्ड का उल्लेख करते हुए कहा कि यहां कांग्रेस 20 साल बाद जीती है। यह भाजपा-कांग्रेस का अपना-अपना नजरिया है, लेकिन नतीजे दोनों दलों के लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं। भाजपा लंबे समय से सत्ता में है, इसलिए वार्डों के चुनाव में उसे नहीं हारना चाहिए, क्योंकि आमतौर पर स्थानीय चुनाव सत्तारूढ़ दल के पक्ष में जाते हैं। इससे साफ है कि जमीनी स्तर पर लोगों के बीच भाजपा का ग्राफ गिर रहा है। कांग्रेस को भी इसलिए ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए क्योंकि वह छिंदवाड़ा जैसे अपने गढ़ में हार गई। लिहाजा भाजपा-कांग्रेस दावा चाहे जो करें लेकिन ये चुनाव दोनों के लिए खतरे की घंटी हैं और सबक भी।
मप्र में हिमाचल, कर्नाटक दोहरा पाएंगी प्रियंका....!
                    जून के दूसरे हफ्ते में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के मप्र दौरे से कांग्रेस ने अपनी रणनीति साफ कर दी है। प्रियंका जिस तरह हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में सक्रिय थीं, उसी तर्ज पर मप्र विधानसभा चुनाव में सक्रिय होने वाली हैं। हिमाचल और कर्नाटक की तरह अपनी पहली रैली में ही उन्होंने कांग्रेस की सत्ता आने पर 5 गारंटियों की घोषणा कर दी है। यह प्रदेश में प्रियंका का चुनाव प्रचार का आगाज माना जा रहा है। लोगों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस मप्र में भी हिमाचल, कर्नाटक को दोहरा पाएगी? मप्र के राजनीतिक हालात भी हिमाचल और कर्नाटक से अलहदा नहीं हैं। उन दोनों प्रदेशों की तरह मप्र में भी कांग्रेस का संगठन मजबूत है। भाजपा से कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। कर्नाटक की तरह मप्र में भी कांग्रेस ने बाहरी समर्थन से सरकार बना ली थी। लेकिन वहां की तरह यहां भी विधायकों को तोड़कर भाजपा सत्ता में आई। हालांकि हिमाचल और कर्नाटक में आमतौर पर सत्ता बदलती रहती है लेकिन मप्र में ऐसा नहीं है। 15 माह छोड़ दें तो यहां 18 साल से लगातार भाजपा सत्ता में काबिज है। भाजपा को पिछले चुनाव में एंटी इन्कबेंसी का सामना करना पड़ा था, इस बार भी इसका असर हो सकता है। नजर राहुल गांधी और प्रियंका पर है, ये दोनों यहां कितना समय दे पाते हैं, क्योंकि मप्र सहित 5 राज्यों के चुनाव एक साथ होंगे।
फिर बाहर आया नेतृत्व में बदलाव का जिन्न....
                    भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन का मसला जिन्न जैसा हो गया है। चाहे जब चर्चा में आता और चाहे जब गायब हो जाता है। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष के प्रदेश दौरे के बाद यह जिन्न एक बार फिर बाहर है। कहा जा रहा है कि संतोष का दौरा प्रदेश नेतृत्व में बदलाव को लेकर चल रही कवायद का हिस्सा भी है। केंद्रीय एवं राज्य नेतृत्व के बीच सेतु का काम कर रहे हैं राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय। खबर है कि संतोष और सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश की कैलाश विजयवर्गीय के साथ प्रदेश में संभावित बदलाव को लेकर चर्चा हुई है। इस संदर्भ में कैलाश भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से मिलकर पूरी रिपोर्ट देंगे। कैलाश पहले से इस कवायद का हिस्सा हैं। हालांकि अब भी इन खबरों को अंतिम मत मानिए, यह सिर्फ कयास ही हैं, जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा के केंद्र में है। राजनीतिक जानकार प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना से इंकार नहीं कर रहे हैं, यह सरकार स्तर पर होगा या संगठन स्तर पर, इसे लेकर कोहांसा छंटा नहीं है। भाजपा और संघ के बीच लगतार यह फीडबैक पहुंच रहा है कि मप्र में भाजपा आसानी से जीतने की स्थिति में नहीं है। इसके लिए संगठन और सरकार का नेता बदला जाए या मंत्रिमंडल में फेरबदल करने से काम चल सकता है, इसे लेकर कवायद चल रही है।
भाजपा-कांग्रेस में ‘नहले पर दहला’ की चाल....
                      विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर भाजपा-कांग्रेस के बीच ताश के पत्तों की तरह ‘नहले पर दहला’ चला जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘लाड़ली बहना योजना’ की घोषणा की। इसके रिस्पांस को देखकर कांग्रेस को पैरों के नीचे से जमीन खिसकती दिखी। शिवराज ने बहनों के खातों में एक हजार रुपए प्रतिमाह डालने की बात की थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ सक्रिय हुए और उन्होंने जवाबी ‘नारी सम्मान योजना’ का वादा कर दिया। इसके तहत उन्होंने महिलाओं को 1500 रुपए प्रतिमाह देने की घोषणा कर दी। दोनों योजनाएं महिलाओं के बीच लोकप्रिय होती दिखीं। नतीजतन, शह-मात के इस खेल में मुख्यमंत्री चौहान ने ‘लाड़ली बहना योजना’ के तहत दी जाने वाली राशि को आने वाले समय में 3 हजार रुपए प्रतिमाह तक करने की घोषणा कर नई चाल चल दी। हालांकि हर कोई जानता है कि ये चुनावी घोषणाएं हैं लेकिन चूंकि भाजपा सत्ता में है, इसलिए 10 जून से ‘लाड़ली बहना योजना’ के एक हजार रुपए महिलाओं के खातों में पहुंचना शुरू हो गए। कांग्रेस ने 500 रुपए में गैस सिलेंडर और कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम जैसे अन्य कई वायदे कर रखे हैं। मुख्यमंत्री चौहान भी लगभग हर वर्ग के लिए नई-नई योजनाएं लागू कर रहे हैं। जनता को किसकी चाल पसंद आई, यह चुनाव नतीजे बताएंगे।
छिंदवाड़ा में भाजपा के युवा संदीप का कमाल....
                       छिंदवाड़ा में भाजपा के युवा चेहरे संदीप सिंह चौहान ने कमाल कर दिया। इस युवा ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और सांसद नकुलनाथ की नाक के नीचे से जीत छीन ली। जीत भी चौतरफा। लगभग हर पोलिंग बूथ में संदीप को अच्छे वोट मिले। वार्ड का चुनाव यह युवा लगभग साढ़े 4 सौ वोटों के अंतर से जीता। नतीजा बताता है कि छिंदवाड़ा में भाजपा भले कमलनाथ की कांग्रेस को न हरा पाए लेकिन लोगों से सतत संपर्क में रहने वाला कोई भी व्यक्ति बाजी मार सकता है। संदीप को छिंदवाड़ा भाजपा का उभरता युवा चेहरा कहा जाए तो अतिशंयोक्ति नहीं। उसके लगातार लोगों के संपर्क में रहने और पार्टी गतिविधियों में सक्रिय रहने की खबर है। भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि वह संदीप जैसे युवाओं को कांग्रेस के गढ़ों में आगे बढ़ाए और पुराने हो चुके चेहरों को घर बैठ कर मार्गदर्शन करने को कहे। इस रणनीति से ही कांग्रेस के गढ़ों को ढहाया जा सकता है। हालांकि नरेंद्र मोदी-अमित शाह की भाजपा में यह परंपरा शुरू हो चुकी है। भाजपा हर चुनाव में अपने कुछ विधायकों को घर बैठा देती है। कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस भी जीतने की क्षमता वाले नेताओं को टिकट देने लगी है। इसके लिए सर्वे को आधार बनाया जाने लगा है। संभवत: पहली बार कांग्रेस अपने कुछ मौजूदा विधायकों के टिकट काटने वाली है।  
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