मार्गशीर्ष अमावस्या पर ऐसे मिलेगी मॉं लक्ष्मी, श्रीकृष्ण और पितृों की कृपा
मार्गशीर्ष मास को अगहन मास भी कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास को अपना प्रिय मास बताया है। प्रत्येक मास की अमावस्या को दान-पुण्य, पूजा-पाठ, धर्म--कर्म और पितृकर्म का विशेष महत्व बताया गया है। मार्गशीर्ष मास में आने वाली अमावस्या को मार्गशीर्ष अमावस्या कहा जाता है। मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व कार्तिक मास की अमावस्या के समान माना जाता है। मान्यता है कि इस मास की अमावस्या देवी लक्ष्मी को बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन देवी लक्ष्मी की आराधना का विशेष शास्त्रोक्त महत्व बताया गया है। इस साल मार्गशीर्ष अमावस्या 26 नवंबर मंगलवार को है।
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व
अमावस्या तिथि को पितृकर्म से जोड़ा जाता है। इस दिन पितृकर्म करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। मार्गशीर्ष अमावस्या को पितृों के निमित्त दान-पुण्य और श्राद्धकर्म करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत कर विधि-विधान से पूजा करने से कुंडली के ग्रह संबंधी दोष दूर होते हैं। इस दिन गंगा, यमुना या पवित्र नदियों, सरोवर या पौराणिक कुंडों में स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। पितृदोष से पीड़ित जातक को और संतान प्राप्ति के इच्छुक लोगों को मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत करना चाहिए।
मार्गशीर्ष मास में भगवान कृष्ण की आराधना से उनकी कृपा प्राप्त होती है। मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा करने या कथा का श्रवण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मार्गशीर्ष मास में महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया था। अमावस्या के दिन सूर्योदय के समय स्नान करके देव आराधना करें। संध्या के समय शिव मंदिर जाकर गाय के घी का दीपक लगाए। सभी समस्याओं का समाधान होगा।
मार्गशीर्ष अमावस्या मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारंभ - 25 नवंबर, सोमवार , रात 10:43 बजे से।
अमावस्या तिथि समापन - 26 नवंबर, मंगलवार, रात 8:38 बजे पर।