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प्रदोष व्रत के फल से राजकुमार को ऐसे मिला था अपना खोया हुआ राज्‍य



शास्त्रों में प्रदोष के व्रत की बड़ा गुणगान किया गया हैऔर इस व्रत के संबंध में कहा गया है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक शास्त्रोक्त विधि से जो भक्त करता है उसको कई जन्मों के पापकर्मों से छुटकारा मिल जाता है। महीने में दो बार आने वाले प्रदोष व्रत के दिन भगवान भोलेनाथ की आराधना की जाती है और इस दिन शाम के समय शिव उपासना करने से शिव प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। फिलहाल 24 नवंबर को प्रदोष है।

राजकुमार को मिला था खोया हुआ राज्य, जानिए प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण में प्रदोष की कथा का वर्णन किया गया है। प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मण स्त्री अपने पुत्र के साथ भिक्षावृत्ति के लिए सुबह घर से निकलती और शाम को अपने घर लौट आती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर अपने घर लौट रही थी उस वक्त रास्ते में नदी किनारे उसको एक सुंदर बालक खराब हालत में खड़ा हुआ दिखाई दिया। नदी के किनारे अकेला खड़ा बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। दुश्मनों ने उसके पिता का कत्ल कर उसके राज्य पर कब्जा कर लिया था और उसकी माता की भी दुर्दशा की वजह से अकाल मृत्यु हो चुकी थी। गरीब ब्राह्मण स्त्री ने उस बालक को अपने पास रख लिया और उसका अच्छी तरह से पालन-पोषण करने लगी।

कुछ समय बाद ब्राह्मण स्त्री दोनों बच्चों को लेकर मंदिर में दर्शन के लिए गई।दर्शन के वक्त उसकी मुलाकात महर्षि शाण्डिल्य से हुई। महर्षि शाण्डिल्य ने ब्राह्मण स्त्री को बताया कि जो बालक उसको नदी किनारे मिला है वह विदर्भ राज्य के राजा का सुपुत्र है जो युद्ध करते वक्त दुश्मन के हाथों मारे जा चुके हैं और उसकी माता को भी दयनीय अवस्था में घूमते हुए जंगली जानवर मारकर खा चुका है। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने को कहा। ऋषि आज्ञा का पालन करते हुए ब्राह्मणी के साथ दोनों बच्चों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन दोनों बच्चे जंगल में घूम रहे थे तभी अचानक उनकी मुलाकात कुछ गंधर्व कन्याओं से हुई। ब्राह्मण बालक तो उसी वक्त समय घर वापस आ गया, लेकिन राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बातचीत करने लगा। बातों-बातों में गंधर्व कन्या और राजकुमार को एक दूसरे से प्यार हो गया, गंधर्व कन्या ने राजकुमार को विवाह के लिए अपने पिता से मिलने के लिए आमंत्रित किया। दूसरे दिन राजकुमार जब फिर से गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने उसको बताया कि वह विदर्भ राजवंश से संबंधित है। भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त के साथ कर दिया।

विवाह के बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर हमला बोल दिया और अपना खोया हुआ राज्य वापस प्राप्त कर लिया। यह सब ब्राह्मण स्त्री और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का पुण्य फल था।

विवाह के बाद राजकुमार, राजा बन गया और उस महल में वह ब्राह्मणी और उसके पुत्र को आदर के साथ ले आया और अपने साथ रखने लगा। ब्राह्मण स्त्री और उसके पुत्र के सभी दुख, तकलीफ, दर्द और गरीबी दूर हो गई और वे सुख से अपना समय बिताने लगे। एक दिन रानी अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों का कारणऔर रहस्य पूछा, तब राजा ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरा वृतांत बताया और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।

प्रदोष व्रत में होती है शिव पूजा
स्कंदपुराण में प्रदोष की महिमा का वर्णन किया गया है, जो उपासक प्रदोष के व्रत के दिन शिवपूजा के बाद मन से प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसको सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता सा सामना नहीं करना पड़ता है। प्रदोष में भगवान शिव की पूजा करना चाहिए है। प्रदोष काल दिन और रात के मिलन के समय को कहते है। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि इस समय शिव पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। प्रदोष व्रत में संध्या के समय भक्त शिव मंदिर जाकर महादेव की आराधना करते हैं और पंचामृत, फल, फूल, मिष्ठान्न आदि क् उनका पूजन करते हैं। और शिवस्तुति से उनका गुणगान करते हैं।

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