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सभी मास में अति पवित्र होता है मार्गशीर्ष का महीना, ये है पूजन महत्व



मार्गशीर्ष मास को सनातन संस्कृति के सभी मासों में सबसे पवित्र मास माना जाता है। इस मास में भजन-मंडलियां सुबह-सुबह भजन-कीर्तन करते हुए प्रभातफेरी निकालती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास के संबंध में कहा है कि 'मासानां मार्गशीर्षोऽयम्'। मान्यता है कि सतयुग में देवताओं ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को वर्ष का प्रारंभ किया था। कश्यप ऋषि ने भी धरती के स्वर्ग कश्मीर की रचना इसी मास में की थी।

मार्गशीर्ष मास का महत्व
श्रीमद भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मार्गशीर्ष मास स्वयं मेरा ही स्वरूप है। इस मास में नदी, सरोवरों और पवित्र कुंडों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों तो बताते हुए कहा था कि इस मास में यमुना के जल में स्नान करने से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाउंगा। इसलिए श्रीकृष्ण के समय से इस मास में स्नान का खास महत्व है। इस मास में स्नान करने के लिए तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। जल में तुलसी के पौधे की मिट्टी, जड़ और उसके पत्ते मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके साथ ही 'ओम नमो नारायणाय' या 'गायत्री मंत्र' का जप करना चाहिए।

मार्गशीर्ष मास की उपासना
मार्गशीर्ष में उपवास का भी विशेष महत्व है। मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को उपवास का प्रारम्भ कर हर महीने की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक मास की द्वादशी तक इसका उपवास करना चाहिए। द्वादशी तिथि का उपवास करते हुए हर द्वादशी को श्रीहरी के केशव से लेकर दामोदर तक 12 नामों में से हर नाम की एक-एक मास तक आराधना करना चाहिए।

मान्यता है कि भगवान विष्णु की इस तरह आराधना करने से उपासक को पूर्व जन्म की घटनाओं का स्मरण होने लगता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को अमृत से सींचा जाता है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन गायों को नमक और परिवार की महिलाओं को सुंदर वस्त्र प्रदान किए जाते हैं। इसी दिन भगवान दत्तात्रेय जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।

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