मार्गशीर्ष के महीने में इस एक वस्तु की पूजा से मिलता है मॉं लक्ष्मी से वरदान
भारतीय संस्कृति परंपराओं के कई रंग देखने के मिलते हैं। रंगों और तरंगों में बिखरी इस संस्कृति में प्रकृति का भी अक्स दिखाई देता है। सनातन संस्कृति में एक वर्ष को बारह मासों मे विभाजित किया है और सभी बारह मासों को अलग-अलग नाम देकर उनको देवी-देवताओं की आराधना से भी जोड़ा गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नवे महीने को अगहन मास कहा जाता है। इस साल यह मास 13 नंबर 2019 बुधवार को प्रारंभ होने जा रहा है।
अगहन मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण की आराधना अनेक स्वरूपों और नामों से की जाती है। इनमें से एक श्रीकृष्ण का ही एक स्वरूप है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष मास का संबंध ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से एक मृगशिरा नक्षत्र से है। इस मास की पूर्णिमा तिथि को मृगशिरा नक्षत्र होता है। इस कारण इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से भी जाना जाता है।
यह मास भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित है इसलिए इस मास में शंख पूजा का विशेष महत्व है। अगहन मास या मार्गशीर्ष मास में सामान्य शंख को पांचजन्य शंख मानकर पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। शंख की पूजा इस श्लोक से करें।
पंचजन्य शंख मंत्र
त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते।
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।
शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥
इस मंत्र के साथ शंख को देवस्वरूप मानकर कुमकुम, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाल, फूल से पूजा कर वस्त्र समर्पित करें और पंचमेवा, ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचामृत का भोग लगाएं। धूपबत्ती और दीपक लगाएं।
शंख पूजा से मिलने वाला फल
शास्त्रोक्त मान्यता है कि शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। समुद्र मंथन से ही धन की देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई थी, इसलिए शंख को देवी लक्ष्मी का भाई माना जाता है। इसलिए शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि शंख की पूजा से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है और शंख उपासना करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होकर उसको सुख-समृद्धि का वरदान मिलता है। घर या देवालय में पूजा के बाद शंख के जल को छिड़कना समृद्धिकारक माना गया है।