top header advertisement
Home - उज्जैन << धार्मिक विवादों पर स्वामी विवेकानन्द का सन्देश- आचार्य सत्यम्

धार्मिक विवादों पर स्वामी विवेकानन्द का सन्देश- आचार्य सत्यम्



उज्जैन। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति के वसुधैव कुटुम्बकम् के आदर्श के अनुरूप विश्व धर्म संसद में भी भारत को विश्व गुरू के आसन पर प्रतिष्ठित करते हुए घोषणा की थी कि हमारी मातृभूमि जो हिन्दू और मुस्लिम समाजों की मिलन स्थली है। वेदान्त का मस्तिष्क और इस्लाम का शरीर ही इसकी एकमात्र आशा है। मैं अपने मानस नेत्रों से देख रहा हूं कि शीघ्र ही वर्तमान झंझावात और बवण्डर से निकलकर एक महान् भारतीय राष्ट्र का उदय होगा। वेदान्त का मस्तिष्क और इस्लाम का शरीर लेकर। स्वामीजी ने यह भी कहा था कि सभी धर्म सनातन (हिन्दू धर्म) के सहोदर हैं। सनातनधर्मियों को अन्य धर्मावलंबी छोटे भाईयों के प्रति बड़े भाई के रूप में कर्तव्य निभाना होगा। वर्तमान अयोध्या विवाद के समाधान हेतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय को हमने अपील प्रेषित कर यह मांग की थी स्वामी विवेकानंद के उपरोक्त आदर्शो के अनुरूप ही विवाद का समाधान करते हुए विवादित स्थल पर सर्वधर्म समभाव केन्द्र की स्थापना हो। विवादित धर्मस्थलों का भव्य निर्माण अयोध्या में ही अन्यत्र किया जावे। स्वामी विवेकानंदजी के साथ ही हमारे भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी अमर बलिदानियांे के स्वप्नों के भारत के निर्माण के लिए यह सभी भारतीय नागरिकों का परम राष्ट्रीय और धार्मिक कर्तव्य है कि वे परमात्मा के आराधना स्थलों पर विवाद के स्थान पर स्वामी विवेकानंद, गौतम, महावीर, गुरूनानक, सभी सूफी संतों और महात्मा गांधी के आदर्शों का पालन करें। गोस्वामी तुलसीदासजी से बड़ा ज्ञात रामभक्त दूसरा नहीं हो सकता जिन्होंने कहा था ‘‘मांग के खईबों मसीत (बाबरी मस्जिद) में सोईबों‘‘ सभी भारतीयों को अपने महान् पूर्वजों पर गर्व होना चाहिए जिन्होंने काशी और अयोध्या के विवाद पिछली सदियों में ही निपटा दिये थे। होल्कर राज्य इंदौर की महारानी प्रजामाता देवी अहिल्या ने 18वीं सदी में काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद यह कहकर हल कर दिया था कि मस्जिद के भी कण-कण में हमारे शंकर विराजमान हैं। और 19वीं सदी में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र के आदेश पर नाना साहेब पेशवा के सहयोग से अवध की बेगम हजरत महल ने अयोध्या विवाद का समाधान हनुमानगढ़ी और हनुमान मंदिरों के निर्माण के साथ कर दिया था। आचार्य सत्यम् ने भारत के सभी नागरिकों का आव्हान किया है कि वे हमारे महान् राष्ट्र की एकता और अखण्डता हेतु तथा महापुरूषों एवं शहीदों के सपनों का भारत बनाने के लिए राष्ट्रीय एकता को खण्डित न होने दें तथा न्याय पालिका और कार्यपालिका को विवाद के समाधान का प्रयास करने में सहयोग करें।

Leave a reply