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प्रभु को भी निर्मल मन पसंद, छल कपट, ईष्र्या, राग, द्वेष अच्छा नहीं लगता



उज्जैन। कथा साक्षात् श्री कृष्ण है, कथा के रूप में श्री ठाकुर जी ही जीव के भीतर प्रविष्ट होते है, कथा के रूप में ठाकुर जी ही जीव के कानों के रस्ते प्रवेश करते है जैसै शरद ऋतु में शरद ऋतु सरोवर के जल को शुद्ध कर देती है ऐसे ही ठाकुर जी कथा के रूप में भक्तों के भीतर पधार के अंतःकरण को स्वच्छ कर देते है। प्रभु को भी निर्मल मन भक्त अच्छे लगते है उन्हे भी छल कपट, ईष्र्या, राग, द्वेष अच्छा नहीं लगता।
उक्त बात श्री सत्यनारायण मंदिर भाटी राजपूत समाज धर्मशाला प्रांगण लक्कड़गंज में आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा यज्ञ में चिंकेश्वरी दीदी नवीन पंड्या माली गौर ने कही। कृष्णा भागवत के अनुसार पपू गुरू दादा भाई भागवत पारमार्थिक सेवा समिति द्वारा आयोजित कथा में भक्तों ने संगीत की धुन पर नृत्य कर प्रभु भक्ति की।

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