भाई दूज : मनुष्य को नहीं भोगना पड़ती यमलोक की यातना
दीपोत्सव पर्व सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। दिपावली का प्रारंभ धनतेरस से होता है और भाईदूज के दिन इसका समापन होता है। धनतेरस पर आरोग्य के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है और भाईदूज का पर्व भाई-बहन के स्नेह को समर्पित है। इस दिन बहन भाई के मस्तक पर तिलक लगाती है और भाई उसको स्नेहभरी भेंट देता है।
भाईदूज की पौराणिक मान्यता
शास्त्रोक्त मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को बहन यमुना ने अपने भाई यमदेव को घर पर आमंत्रित किया था और सत्कारपूर्वक भोजन करवाया था। इस आयोजन से नारकीय जीवन जी रहे जीवों को यातना से छुटकारा मिला था और वे तृप्त हो गए थे। पाप मुक्त होने के साथ ही वह सभी सांसारिक बंधनों से भी मुक्त हो गए थे| उन सभी जीवों ने मिलकर एक महोत्सव का आयोजन किया, जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इस कारण यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
भाईदूज को बहन यमुना ने भाई यम को अपने घर पर भोजन करवाया था। इसलिए मान्यता है कि इस दिन यदि भाई अपनी बहन के हाथों से बना भोजन ग्रहण करे तो उसको स्वादिष्ट और उत्तम भोजन के साथ धन-धान्य की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को यम पूजा करके यमुना स्नान करने से मानव को यमलोक की नारकीय यातनाएं नहीं भोगना पड़ती है और उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है।