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सरकार को केवल हिंदू मठ मंदिरों की व्यवस्था की ही चिंता क्यों- डाॅ. अवधेशपुरी महाराज


मुख्यमंत्री को लिखा पत्र लिखकर कहा अन्य धर्म के धार्मिक स्थलों की व्यवस्था में सरकार किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करती तो हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिये

उज्जैन। भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी सरकार को किसी भी धर्म के धर्मस्थलों के अतिक्रमण का अधिकार नहीं है। क्योंकि धार्मिक स्थलों की व्यवस्थाएं उन धार्मिक परंपराओं एवं संस्कृतियों के आधार पर होती हैं और किसी भी धर्म की परंपराएं एवं संस्कृति उस धर्म के अनुयायियों की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है कि वह अपने धर्मस्थलों का संचालन अपनी मान्यताओं एवं परंपराओं के आधार पर करें। किंतु देखने में आ रहा है कि सरकार अन्य किसी भी धर्म के धार्मिक स्थलों के व्यवस्था एवं अन्य प्रबंधन की चिंता न कर केवल हिंदू मठ मंदिरों की व्यवस्था एवं आय के प्रबंधन की चिंता पालती नजर आ रही है जो कि धार्मिक असमानता का आचरण सिध्द होता है। यदि सरकार को अधिग्रहण ही करना है तो समस्त धर्मों के धार्मिक स्थलों का करना चाहिये किसी एक ही धर्म के सिध्दांतों पर प्रहार नहीं करना चाहिये। 

उक्त बात परमहंस डाॅ. अवधेशपुरी महाराज ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को भेजे पत्र में कही। आपने कहा कि अब तक सरकार ने जिन बड़े हिंदू मठ मंदिरों का सरकारीकरण किया है वहां भक्तों की श्रध्दा के साथ खिलवाड़ एवं सरकार का व्यवसायिकरण दृष्टिकोण का पर्याय हो चुका है। मठ मंदिरों में वीआईपी कल्चर एवं मंदिरों की व्यवस्था का केन्द्र आदि इसी के दुष्परिणाम है। वर्तमान में महाकाल मंदिर का हाल इसी का दुष्परिणाम है। अतः जब अन्य धर्म के धार्मिक स्थलों की व्यवस्था में सरकार किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करती तो हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिये। यह हिंदू धर्म का अपमान है। यदि वहां भी व्यवस्थाओं में कुछ खामियां हैं तो धार्मिक व्यवस्थाओं के द्वारा ही उन्हें दूर करना चाहिये न कि सरकारीकरण करना चाहिये। अतः आप से अनुरोध है कि ओंकारेश्वर मंदिर, जानापाव एवं धूनीवाले दादाजी धाम के सरकारीकरण से पूर्व व्यवस्थाओं पर पुनर्विचार कर हिंदू धर्म के सिध्दांतों को आधार पर धार्मिक एवं सामाजिक लोगों के हाथ में व्यवस्था सौंपनी चाहिये। 

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