बेहतर लेखन के लिए परम्पराओं का ज्ञान जरुरी- ज्ञान चतुर्वेदी
‘ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य सम्मान‘ व्यंग्यकार कमलेश पाण्डेय को प्रदान किया गया“
उज्जैन। व्यंग्य लेखन के लिए सहज हास्य बोध आवश्यक है और आप परंपरा से कट कर नहीं रह सकते। बेहतर लेखन के लिए व्यंग्य की परम्पराओं का ज्ञान भी जरुरी है क्योकिं नए लेखन के पीछे परम्पराओं का ही योगदान होता है।
ये विचार कलिदास अकादमी में राष्ट्रीय व्यंग्य लेखक समिति द्वारा आयोजित ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य सम्मान में प्रख्यात व्यंग्यकार डाॅ ज्ञान चतुर्वेदी ने प्रमुख अतिथि के रूप में व्यक्त किये। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए साहित्यकार प्रमोद त्रिवेदी ने कहा कि सार्थक लेखन वह है जो अपने समय की चुनौतियों को पेश कर सके। अभिव्यक्ति के खतरे उठाये बिना कोई लेखक सफल लेखक नहीं बन सकता। लेखक को अपनी रचना को लेकर अपने आप से सवाल करते आना चाहिए। आलोचक राहुल देव ने स्व. सुशील सिद्धार्थ के व्यंग्य में अवदान को रेखांकित करते हुए कहा कि यह सम्मान सम्मानित व्यंग्यकार को लेखन में जिम्मेदारी का अहसास कराता है कि व्यंग्य लेखन में ज्ञान जी की परंपरा को आगे बढाये।
व्यंग्य लेखक समिति के स्व. सुशील सिद्धार्थ द्वारा स्थापित वर्ष 2019 का ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान, नई दिल्ली के वरिष्ठ व्यंग्यकार कमलेश पाण्डेय को मुख्य अतिथि ज्ञान चतुर्वेदी, प्रमोद त्रिवेदी, ईश्वर शर्मा, डाॅ पिलकेंद्र अरोरा, मुकेश जोशी और डाॅ हरीशकुमार सिंह द्वारा सम्मान राशि ग्यारह हजार रुपये, शाल श्रीफल और सम्मान पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। सम्मानित व्यंग्यकार कमलेश पाण्डेय ने कहा कि यह सम्मान पाकर अभिभूत हूँ और ज्ञान जी की परंपरा को आगे बढाने का प्रयास करूंगा हालाँकि ऐसा करना कठिन और चुनौतीपूर्ण है। स्वागत भाषण शांतिलाल जैन ने दिया। समारोह में भोपाल के व्यंग्यकार विजी श्रीवास्तव के व्यंग्य संकलन ‘इत्ती सी बात‘ और स्व. सुशील सिद्धार्थ के व्यंग्य संकलन ‘आखेट‘ का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। आयोजक संस्था व्यंग्य लेखक समिति की आशा सिद्धार्थ का आडियो संदेश भी इस अवसर पर सुनाया गया। आरंभ में अतिथियों द्वारा दीप आलोकन कर आयोजन का शुभारम्भ हुआ।
उदघाटन एवं सम्मान सत्र के बाद प्रख्यात व्यंग्यकार डाॅ शिव शर्मा की स्मृति को समर्पित व्यंग्य विमर्श के तीन सत्र आयोजित किये गए जिनमें ‘व्यंग्य उपन्यास दशा और दिशा’ सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए राहुल देव ने कहा कि साहित्य की विधाओं में उपन्यास लेखन सबसे कठिन विधा है और उपन्यास लेखन के लिए लेखक को अपने प्रतिमान तोड़ने पड़ते हैं। डाॅ ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि उपन्यास धीमी आंच पर पकने वाली चीज है, उपन्यास लेखन रातों रात का काम नहीं है और उपन्यास के लिए उतना धैर्य होना चाहिए। उपन्यास लेखन आपको बड़ा कद दे देगा यह सोचना भी गलत है क्योंकि परसाई अपनी व्यंग्य रचनाओं से आज भी विख्यात हैं। सत्र की अध्यक्षता प्रमोद त्रिवेदी ने की। संचालन डाॅ पिलकेंद्र अरोरा ने किया।
युवा व्यंग्य लेखन सत्र में समकालीन युवा व्यंग्य, कितना पारंपरिक कितना नवीन विषय पर युवा व्यंग्यकार सौरभ जैन ने कहा कि समकालीन व्यंग्य वन लाइनर हो गया है और एक पंक्ति में भी व्यंग्य किया जा सकता है वहीं व्यंग्यकार जगदीश ज्वलंत ने कहा कि आपका स्वयं का लेखन जब आपको स्वयं प्रभावित नहीं करता तो निश्चित ही पाठकों को भी नहीं करेगा इसलिए लेखक स्वयं अपनी रचना का आलोचक बने और निष्पक्ष समालोचना करे। विषय प्रवर्तन करते हुए मुंबई के व्यंग्यकार शशांक दुबे ने कहा कि चुनौती यह है कि क्या ये युवा कुछ नया लिख रहे हैं, विषय में नवीनता है ,प्रस्तुति में ताजगी है और क्या नएपन की तलाश में परंपराओं को नकार तो नहीं रहे। अध्यक्ष कैलाश मंडलेकर ने कहा कि आज पढने लिखने का संकट सबसे बड़ा संकट हो गया है और दृश्य माध्यम के बढ़ते प्रभाव से वैचारिकता का अभाव होने से चिंतन मनन कम हो गया है। युवा व्यंग्यकार के पास सम्पूर्ण व्यंग्य दृष्टि आवश्यक है। संचालन ईश्वर शर्मा ने किया।
स्त्री व्यंग्य लेखन में इतर चुनौतियां विषय पर आयोजित सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए व्यंग्यकार डाॅ हरीशकुमार सिंह ने कहा कि व्यंग्य लेखन में स्त्री, पुरुष को क्या अलग करके देखा जाना चाहिए और क्या व्यंग्य में स्त्री लेखिकाओं के विषय अलग हो सकते हैं। दिल्ली की व्यंग्यकार अर्चना चतुर्वेदी ने कहा कि चूँकि व्यंग्य एक गंभीर लेखन है और महिलाओं को अगंभीर माना जाता है इसलिए व्यंग्य लिखना महिलाओं के वश की बात नहीं है ये बातें कई मर्दवादी सोच वाले व्यंग्यकारों से सुनने को मिलती हैं। स्त्री, पुरुष के बीच वर्जनाओं की बाढ़ टूट चुकी है इसलिए लेखन में भेद अप्रासंगिक है। बिजनौर से आमंत्रित व्यंग्यकार डाॅ नीरज शर्मा ने कहा कि महिला लेखन को हाशिये पर डालने की प्रवृति पूर्व से ही रही है। समाज ने स्त्री पर नैतिकता, सहनशीलता, और त्याग जैसे मूल्यों को थोपा हुआ है और उसके लेखन से भी इन मूल्यों को बरकरार रखने की अपेक्षा की जाती है हालांकि व्यंग्य में पुरुषों की तुलना में आक्रोश, महिला लेखन में उतना मुखर नहीं हो पाता। लखनऊ की व्यंग्यकार इन्द्रजीत कौर ने कहा कि व्यंग्य, व्यंग्य होता है इसे स्त्री और पुरुष में विभाजित करना उचित नहीं है। महिलाओं के पास व्यंग्य लेखन कि अलग दृष्टि होती है और महिलाओं के पास व्यंग्य लेखन के विषयों की भी बहुतायत होती है। सत्र की अध्यक्षता कमलेश पाण्डेय ने की।
व्यंग्य पाठ सत्र में देश भर से पधारे व्यंग्यकारों ने व्यंग्य पाठ किया जिसमें प्रख्यात व्यंग्यकार प्रभाशंकर उपाध्याय, सुनील जैन राही, विजी श्रीवास्तव, अनुज खरे, कैलाश मंडलेकर, अर्चना चतुर्वेदी, डाॅ नीरज शर्मा, इन्द्रजीत कौर, जगदीश ज्वलंत, सौरभ जैन, सुदर्शन सोनी, मृदुल कश्यप, अक्षय नेमा, कमलेश पाण्डेय, सुधीरकुमार चैधरी, मुकेश जोशी, पिलकेंद्र अरोरा, शांतिलाल जैन, शशांक दुबे, राजेंद्र देवधरे दर्पण आदि ने व्यंग्य पाठ किया। आयोजन में समिति द्वारा डाॅ ज्ञान चतुर्वेदी का शाल श्रीफल और आभार पत्र प्रदान कर सम्मान किया गया। आयोजन में साहित्यकार सम्पादक श्रीराम दवे, प्रो हरिमोहन बुधोलिया, डाॅ अरुण वर्मा, शिव चैरसिया, डाॅ देवेन्द्र जोशी, डाॅ शैलेन्द्र कुमार शर्मा, शशिमोहन श्रीवास्तव, यू एस छाबडा, डाॅ राजेंद्र व्यास, डाॅ उर्मि शर्मा, डाॅ प्रकाश रघुवंशी, ओम अमरनाथ, विवेक चैरसिया, आशीष दुबे, संदीप सृजन, चंदर सोनाने, अनिल कुरेल, डाॅ पुष्पा चैरसिया, संतोष सुपेकर, रमेशचन्द्र शर्मा आदि उपस्थित रहे।
स्वागत मुकेश जोशी, शांतिलाल जैन, शशांक दुबे, संजय जोशी सजग, डाॅ हरीशकुमार सिंह आदि द्वारा किया गया। संचालन डाॅ पिलकेंद्र अरोरा एवं ईश्वर शर्मा ने किया। आभार डाॅ हरीशकुमार सिंह ने व्यक्त किया।