ऐसी ही इस धाम की महिमा, बेसहारा भी अपने पैरों पर चलकर जाते है..
उम्मीद पर दुनिया कायम है। हालातों से हारे इंसान को यह कहावत बार-बार याद आती है और इसके बूते वह दुश्वारियों का ज़हर पीने का माद्दा रखता है। जिंदगी का यही फलसफा राजस्थान के नागौर जिले में जीवंत अर्थ पाता दिखाई देता है। यहां बुटाटी धाम नाम का मंदिर है जो अपनी विशेष मान्यता के चलते देश भर में मशहूर हो रहा है। मान्यता है कि इस मंदिर में सात दिन तक आरती-परिक्रमा करने से पैरालिसिस (लकवा) के मरीजों का यह मर्ज दूर हो जाता है। चूंकि यह जनआस्था है इसलिए इसका प्रचार भी देशज है लेकिन है व्यापक और प्रभावी। यही वजह है यहां देश भर के अलावा विदेशों से भी लकवे के मरीजों को परिजन केवल माउथ पब्लिसिटी के दम पर ले आते हैं। कई लोगों का दावा है कि सात दिन बाद लकवे का असर या तो पूरी तरह खत्म हो गया या बहुत हद तक सुधार हुआ।
कहां स्थित है, कैसे जाएं
बुटाटी धाम मंदिर राजस्थान के नागौर जिले की देगाना तहसील में स्थित है। यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन मेढ़ता रोड़ है जो करीब 45 किमी दूर है। जयपुर एवं जोधपुर रूट पर यह स्टेशन आता है। स्टेशन से मंदिर आने के लिए जीप मिलती है। अधिकांश लोग स्वयं की फोर-व्हीलर से भी आते हैं। ठहरने के लिए मंदिर परिसर से आधा किमी दूर गेस्ट हाउस है। अजमेर-कोटा रोड पर भी गेस्ट हाउस बना है लेकिन अधिकांश लोग मंदिर परिसर में ही ठहरते हैं। ऑटो सेवा है लेकिन बहुत सीमित।
सात दिन का नियम, क्या और क्यों
यहां मरीजों को अधिक से अधिक 7 दिन और 7 रात ही रुकने की अनुमति है। इससे अधिक समय होने पर उन्हें यहां से जाने के लिए बोल दिया जाता है। इसकी क्या वजह है। पूछे जाने पर मंदिर प्रबंध समिति अध्यक्ष शिवसिंह बताते हैं, नए लोगों को आने के लिए जगह मिलना चाहिये। कोई भी मरीज नया आता है तो सबसे पहले उसका रजिस्ट्रेशन किया जाता है। उसके अनुसार उसे सामग्री भी उपलब्ध कराई जाती है। इसमें दर्ज तारीख के अनुसार सातवें दिन उसे स्थान खाली करना होता है। यदि वह नहीं करता तो उसे यहां से जाने का आग्रह किया जाता है।
अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान से आए मरीज
बुटाटी धाम मंदिर का संचालन यहां ट्रस्ट और मंदिर समिति करती है। समिति के अध्यक्ष शिवसिंह का कहना है कि हम प्रचार में विश्वास नहीं रखते इसलिए आज तक मंदिर के बारे में हमने किसी ने कुछ नहीं कहा। सारे लोग केवल आस्था के चलते यहां आते हैं। पिछले दस वर्षों में यहां आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है। इंटरनेट पर मंदिर का खूब नाम है इसलिए देश ही नहीं, विदेशों से भी लोग आते हैं। नवरात्र में अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अफगानिस्तान से भी मरीज यहां आए थे।
यह है धार्मिक कहानी
मंदिर के संबंध में कहानी प्रचलित है। लगभग 600 साल पहले यहां चतुरदास जी नाम के संत थे। कहा जाता है कि उनके पास 500 से अधिक बीघा जमीन थी जो उन्होंने दान कर दी और आरोग्य की तपस्या करने चले गए। बताया जाता है कि सिद्धि प्राप्त करके वे आए यहां जीवित समाधि ले ली। उस स्थल पर ही आज मंदिर है।
खास बातों पर एक नजर
- मरीजों को सुबह मंदिर की ओर से दवाई का निशुल्क वितरण किया जाता है।
- पूरे परिसर में लोग सात दिन तक रुक सकते हैं। उनसे रहने-खाने का शुल्क नहीं लिया जाता।
- करीब 90 प्रतिशत लोग अपने ठिकाने पर ही गैस या चूल्हे पर भोजन, चाय तैयार करते हैं।
- प्रतिदिन सुबह साढ़े पांच बजे और शाम को साढ़े छह बजे आरती होती है, जिसमें मरीजों-परिजनों का आना अनिवार्य है।
- परिसर में चारों तरफ बड़ी संख्या में व्हील चेयर इधर-उधर पड़ी नजर आती हैं। इनकी संख्या करीब 300 है।
- एकादशी के दिन यहां सर्वाधिक भीड़ उमड़ती है। इस दिन की गई आरती का विशेष महत्व बताया गया है।
राजस्थान के जिला टोंक, मालपुरा निवासी रामधन और नरेंद्र सिंह राठौड़ के पिता गोविंद सिंह को दो महीने पहले पैरालिसिस हुआ। पूरे परिवार ने फैसला किया कि उन्हें सीधे बुटाटी धाम लाएंगे। बेटों का कहना है कि हम डॉक्टरों के पास न जाते हुए सीधे यहां आए। वे पहले दो बार यहां आ चुके हैं, अष्टमी पर तीसरी बार आए हैं। उनका कहता है पिताजी की हालत में पचास फीसदी सुधार हुआ है। पहले ना बोल पाते थे, ना खा पाते थे, अब कर पा रहे हैं।
बीकानेर निवासी कपड़ा व्यापारी मुन्नीराम शर्मा के पिता देवराम को शुगर और हाई बीपी के चलते 13 दिन पहले राइट साइड पैरालिसिस आया। डॉक्टर को दिखाया, एमआरआई कराई। रिश्तेदारो से यहां का सुना था, सो चले आए। उनका दावा है कि सातवें दिन में पिता के चेहरे का तिरछापन दूर हो गया है। फर्क पड़ा है।
सिलीगुड़ी निवासी कमलादेवी अपने पति धनराज को बहुत उम्मीदों से यहां लाई हैं। चार महीने से धनराज को पक्षाघात की समस्या है। हालांकि उन्हें अभी कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है लेकिन इतने लोगों से सुनते हैं, तो उन्हें भी आस बंधी हुई है।
मेरठ के गजेंद्र सिंह का बीपी हाई था और दस महीने पहले दाहिने तरफ का लकवा पड़ गया था। आवाज भी चली गई थी। पत्नी ने मीडिया के ज़रिये पर बुटाटी धाम के बारे में सुन रखा था। मन में आशा लिए हुए रवाना हुए और रविवार को उनका यहां चौथा दिन है। बेटे कुणाल और बेटी रिचा को खुशी है कि पापा अब थोड़ा बहुत बोल पा रहे हैं तो खोई हुई आवाज सुनने को मिल रही है।
मुंबई में विले पार्ले के रहने वाले बिजनेसमैन भरत वीता को चार महीने पहले दाहिनी ओर का स्ट्रोक हुआ था। क्लॉट जमने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। परिजनों ने बुटाटी धाम के बारे में नेट पर पढ़ा था। यू-ट्यूब पर सर्च किया। फीडबैक अच्छा लगा तो उम्मीदें बंधी। मुंबई से राजस्थान रवाना हुए। रविवार को उनको यहां आए तीन दिन हो गए। साथ में 6 लोग आए हैं। बेटी पंक्ति और क्वीटी कहती हैं कि यह पूरी तरह से आस्था का मामला है। पहले पापा के पैर जमीन पर टिक नहीं पाते थे, अब पैर टिकने लगे हैं तो आस है कि सातवें दिन तक तो और सुधार होगा।