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11 हजार 135 दिनो में निरंतर 5290 आयम्बिल तप करने वाले



आचार्य श्री चंद्ररत्नसागरसूरिश्वर जी का पारणा पर्व सुरत में
उज्जैन। मालवा के गौरव पू.आ.दे.श्री चंद्ररत्नसागरसूरिश्वर जी म.सा. की 245वीं वर्धमान तप आयम्बिल ओली की विरल तपस्या का पारणा व अनुमोदना का गुजरात के महानगर सुरत में रविवार 29 सितम्बर को भव्य स्तर पर आयोजित होगा। इंदौर जिले के गौतमपुरा निवासी पूज्यश्री चातुर्मास के लिए सुरत में विराजित है। अपने तरह की इस अनूठी उग्र तपस्या के उज्जैन से बड़ी संख्या में समाजन शामिल होंगे। उज्जैन के अलावा इंदौर, रतलाम, मंदसौर और नीमच जिला सहित देशभर से पहुंच रहे श्रद्धालु साक्षी और सहभागी बनेंगे।
समाज के नीलेश सिरोलिया के अनुसार पू.आ.दे.श्री नरदेवसागरसूरीश्वर जी म.सा. की निश्रा एवं जिनशासनरत्न बंधु बेलड़ी पू.आ.दे.श्री जिनचंद्रसागरसूरिश्वर जी म.सा. एवं हेमचंद्रसागरसूरिश्वर जी म.सा.की पावन प्रेरणा से पू.आ.दे.श्री चंद्ररत्नसागरसूरिश्वर जी म.सा. की 245 वी वर्धमान तप आयम्बिल ओली की विरल तपस्या का पारणा व अनुमोदना का गुजरात के महानगर सुरत में भव्य आयोजित होगा। सुरत के कैलाश नगर जैन श्रीसंघ नूतन उपाश्रय में बन्धु बेलड़ी के धर्म समर्पण चातुर्मास में रविवार 29 सितम्बर को एक नया स्वर्णिम कीर्तिमान रचने जा रहा है।
उपवास उपासक -
पू.आ.दे.श्री जिनरत्नसागरसूरिश्वर जी म.सा.के शिष्यरत्न और जितचंद्रसागरसूरिश्वर जी म.सा.के लघुबन्धु पूज्यश्री चंद्ररत्नसागरसूरिश्वर जी म.सा. ने 245 वी वर्धमान तप आयम्बिल ओली की विरल तपस्या के शिखर तक पहुंचने में करीब तीन दशक साल का समय लगा है। जिसमें पूज्यश्री ने 2 बार 1 से 100 ओली की तपस्या की है। दूसरी बार की 1 से 100 ओली निरंतर बिना पारणे से करने का भीष्म पराक्रम किया है। इस तरह 14 साल 6 माह में पूज्य श्री ने 5190 आयम्बिल कुल 200 ओली में 11 हजार 135 दिन तपस्या की है। इस तरह यह अवधि 31 साल की होती है। इसके साथ ही 1 हजार 105 दिन यानि करीब 3 साल विभिन्न तपस्याओ में उपवास भी किये है, जो एक आचार्य के रूप में तपस्या का कीर्तिमान है। जबकि बियासने-एकासने 2520 किये है।
14 हजार 160 दिन तपस्या
एक आचार्य के रूप में पूज्यश्री यह उग्र तपस्या अपने आप में एक विश्व कीर्तिमान बनने जा रही है। इस तरह हम कह सकते है कि बीते 54 साल की आयु में से 41 साल से अधिक की तपस्या अवधि में से 83 फीसदी समय तपस्या में रहे है। जिसमे 14 हजार 160 दिन तपस्या में रहकर पूज्यश्री ने 31 साल आयम्बिल तपस्या को समर्पित किये है। जो तपस्या प्रधान जिनशासन के गौरवपूर्ण इतिहास में कीर्ति हस्ताक्षर के रूप में अंकित होने जा रहे है। ऐसे महान तपस्वी जिनके दर्शन और अनुमोदना का ऐतिहासिक मंगल प्रसंग 29 सितम्बर रविवार को कैलाश नगर नूतन उपाश्रय में रहेगा। जंहा पू.आ.दे.श्री सागरचन्द्रसागरसूरीश्वर जी म.सा. सहित सागर समुदाय सहित विविध समुदाय के अनेक साधु साध्वीजी भगवंत तथा गणमान्यजन की गरिमापूर्ण उपस्थिति रहेगी।
41 वर्ष की सुदीर्ध साधना
मालवा के गौतमपुरा जिला इंदौर (मप्र) के 54 वर्षीय तपस्वीरत्न पू.आ.दे.श्री चंद्ररत्नसागरसूरिश्वर जी म.सा. का सम्पूर्ण संयम जीवन उग्र तप आराधना को समर्पित रहा है। मात्र 9 वर्ष की अल्पआयु में दीक्षा अंगीकार कर 41 वर्ष में लगातार 2700 आयम्बिल, 1000 आयम्बिल, 500 आयम्बिल, 100 ओली की सतत तपस्याएँ करने वाले पूज्यश्री पहले आचार्य भगवंत बन गये है।
उपवास में 665 किमी विहार
इस तपस्या के साथ साथ उन्होंने 41 वर्ष के संयम वसंत में 2 वर्षीतप, सिद्दी तप, निगोद निवारण, 4-8-10-2 उपवास तथा विस स्थानक की आराधना की है। चौकाने वाली बात तो यह है कि जब पूज्यश्री के 20 दिन के निरंतर उपवास की तपस्या चल रही थी तभी जिनशासन की गौरवशाली संस्कृति की पताका थामे गुजरात के सुरत से मध्यप्रदेश के राजगढ़ तक करीब 665 किमी का कठिन विहार किया है। आज की ‘फूडवाद संस्कृति’ में आहार संयम के पूज्यश्री ब्रांड एम्बेसेडर बन चुके है।
परिवार में 25 दीक्षाएं
ऐसी तपस्या और जिनशासन के प्रति अहोभावपूर्वक सेवा सुश्रुवा अभिनव...अकल्पनीय...अविस्मरनीय है। जीवन के 54 में से 41 वर्ष कठोर तपस्या करने वाले पूज्यश्री की प्रेरणा और मार्गदर्शन में देशभर में आज हजारों श्रावक और श्राविकाओं का जीवन तपमय होकर मानव जीवन के सर्च्वोच लक्ष्य की ओर अग्रसर है। यह पूज्यश्री की तपस्या और प्रेरणा का प्रसाद है कि उनके सांसारिक पक्ष से अब तक 25 दीक्षाओं का अनूठा कीर्तिमान स्थापित हो गया है।  

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