आयॅल पेंट से लिखी पूरी रामचरितमानस, 150 किलो वजनी
राजस्थान में जयपुर के सांगानेर निवासी शरद माथुर ने ऑयल पेंट और ब्रश से पूरी रामचरितमानस लिखी है। इसे लिखने में उन्हें करीब साढ़े छह साल लगे। एथ्री आकार के करीब तीन हजार पेज में लिखी इस रामचरितमानस का वजन 150 किलो है। एक से सवा इंच आकार के अक्षरों में इसे लिखा गया है। इसकी जिल्दसाजी मुबारक भाई ने की है।
48 वर्षीय शरद आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है। वह सुंदरकांड का पाठ और बच्चों को संगीत सिखाते हैं। इनसे मिलने वाली राशि से गुजारा होता है। कुछ आमदनी मकान के किराये से होती है। रामचरितमानस तैयार करने में करीब पांच लाख रुपए खर्च हुए। शरद ने इसमें किसी से आर्थिक सहयोग नहीं लिया।
शरद बताते हैं कि इस काम को पूरा करने में परेशानियां तो आई, लेकिन भगवान की कृपा कुछ ऐसी रही कि काम कभी रुका नहीं। जब भी किसी चीज की कमी हुई, व्यवस्था होती गई। उन्होंने बताया कि सुंदरकांड का पाठ करते हुए कई बार लगता था कि अक्षर कुछ बड़े होने चाहिए, ताकि कमजोर नजर वाले भी इसे आसानी से पढ़ सकें। इसी विचार के बाद सुंदरकांड लिखना शुरू किया।
सुंदरकांड पूरा हो गया तो आत्मविश्वास बढ़ा और फिर एक-एक कर रामचरितमानस के सभी कांड लिख दिए। लाल रंग के ऑयल पेंट और ब्रश की मदद से एक से सवा इंच आकार के अक्षरों में इसे लिखा है। वे बताते हैं कि एक पेज लिखने में तीन से चार घंटे लगते थे। परिवार में मां, पत्नी पूनम और दो बच्चे शुभम व साहिल है। उनका भी पूरा सहयेाग मिला। मैं लिखता था और पत्नी व बच्चे इसकी बॉर्डर बनाने और लेमिनेशन का काम करते थे। रामचरितमानस के बाद अब उन्होंने गीता का लेखन शुरू कर दिया है।
जिल्दसाजी कराना मुश्किल हो गया
शरद ने बताया कि आकार बड़ा होने से इसकी जिल्दसाजी (किताब की शक्ल देना) कराना मुश्किल था। हर कांड की अलग जल्दसाजी होनी थी। इसके लिए मैंने लकड़ी की पतली प्लाई और करीब 170 मीटर कपड़ा तैयार कराया। इस पर भगवान राम का चित्र और पूरा डिजाइन छपवाया, लेकिन कोई भी जिल्दसाजी करने को तैयार नहीं हुआ। अधिक मेहनत का काम होने से कोई भी दोगुने दाम पर भी जिल्दसाजी को तैयार नहीं हुआ।
इसी बीच सांगानेर में ही रहने वाले मुबारकअली से संपर्क किया। पहले तो उन्होंने समयाभाव के कारण काम करने में असमर्थता जताई, लेकिन करीब दो घंटे बाद ही उन्होंने फोन कर कहा कि वे जिल्दसाजी करने के लिए तैयार हैं। जिस काम के लिए मैं हजार रुपए तक देने को तैयार था। उन्होंने और उनके साथी सुनील कुमावत ने सिर्फ साढ़े तीन सौ रुपए में इसे कर दिया।
अयोध्या में बनने वाले राममंदिर में भेंट करना चाहते हैं
शरद बताते हैं कि मेरी इच्छा है कि यह रामचरितमानस मैं अयोध्या में रामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर को भेंट करूं। इस रामचरितमानस को रखने के लिए लकड़ी और कांच की अलमारी भी तैयार कराई है। वे इसकी फोटोकॉपी भी करा चुके हैं, ताकि यह छोटे रूप भी लोगों को उपलब्ध हो सके।