आखिर सरकार क्यों चाहती है आपके DNA के बारे में जानना ?
नई दिल्ली। डीएनए टेक्नोलॉजी (यूज एंड एप्लीकेशन) रेगुलेशन बिल लोकसभा में पारित हो चुका है। इस बिल के जरिए सरकार अपराधियों, पीड़ितों, संदिग्धों और विचाराधीन कैदियों समेत चुनिंदा वर्ग के लोगों का डीएनए रिकॉर्ड रखना चाहती है। जानिए इसकी खास बातें -
क्यों जरूरी: इससे आपराधिक प्रकरणों के साथ ही लापता लोगों के केस सुलझाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा भीषण हादसों में बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने पर उनकी पहचान करना आसान होगा। पारिवारिक झगड़ों को सुलझाने के अलावा मानव अंगों के ट्रांसप्लांट में यह व्यवस्था मददगार साबित होगी।
अभी क्या स्थिति: डीएनए टेक्नोलॉजी (यूज एंड एप्लीकेशन) रेगुलेशन बिल, 2018 पर बहस का जवाब देते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि वर्तमान में एक प्रतिशत से भी कम लोगों का डीएनए परीक्षण किया जा रहा है। इस कारण बड़ी संख्या में केस लंबित हैं। देश में जितने मामलों में डीएनए प्रोफाइलिंग की दरकार है, जिनमें से महज 2 या 3 फीसदी ही पूरे हो पा रहे हैं।
अब क्या होगा: विधेयक में नेशनल डीएनए डाटा बैंक और रीजनल डीएनए डाटा बैंकों की स्थापना का भी प्रावधान है। प्रत्येक डाटा बैंक में अपराध स्थलों, संदिग्धों या विचाराधीनों और अपराधियों की सूची समेत सभी तरह की सूचियां रखी जाएंगी।
दुरुपयोग तो नहीं होगा: विधेयक के दुरुपयोग को लेकर सदस्यों की चिंता पर हर्षवर्धन ने कहा कि किसी भी स्तर पर किसी भी चीज का दुरुपयोग किया जा सकता है। यहां तक कि चिकित्सकीय प्रयोगशालाओं द्वारा इकट्ठा किए गए खून के नमूनों का भी दुरुपयोग संभव है। विधेयक को बेहद व्यापक बताते हुए उन्होंने कहा कि बिल को इस स्तर तक लाने में 14-15 साल का लंबा वक्त लगा है।
यह भी खास: आपराधिक जांच और लापता लोगों की पहचान में डीएनए प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल के लिए विधेयक में संबंधित व्यक्ति की अनुमति लेने का प्रावधान भी किया गया है, लेकिन फौजदारी मामलों में डीएनएन प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल के लिए अनुमति लेने का प्रावधान नहीं किया गया है।