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मंदिरों के निर्माल्य से रोज तैयार हो सुगंधित अगरबत्ती


आयुर्वेदिक कॉलेज परिसर में बने प्रोसेसिंग प्लांट पर बन रही हर्बल अगरबत्ती, महाकाल चिंतामण, मंगलनाथ सहित प्रमुख मंदिरों से रोज एकत्रित हो रहा निर्माल्य उज्जैन. धार्मिक नगरी उज्जैन के मंदिरों में चढऩे वाले फूलों व अन्य पूजन सामग्री से हर्बल अगरबत्ती तैयार हो रही है। प्राकृतिक महक वाली ये अगरबत्ती ना तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है ना ही कोई अन्य साइड इफैक्ट। मंगलनाथ मार्ग् स्थित आयुर्वेदिक कॉलेज परिसर में बने प्रोसेसिंग प्लांट में निर्माल्य से अगरबत्ती व खाद बनाने का काम शुरू हुआ है। महाकाल, चिंतामण, मंगलनाथ, कालभैरव, हरसिद्धि सहित प्रमुख मंदिरों से रोजाना औसत 2 टन निमाज़्ल्य यहां पहुंचता है, जिससे करीब 200 किलो अगरबत्ती मसाला तैयार होता है। इनसे हर्बल अगरबत्तियां तैयार होती है। मंदिरों में चढऩे वाले फूल, पत्ती व अन्य पूजन सामग्री कलेक्शन के लिए नगर निगम ने अलग तरह के प्रबंध कराए हैं। रोजाना प्रमुख मंदिरों से निर्माल्य एकत्रित कर प्लांट पर पहुंचाया जाता है। जहां फूल के प्रकार व सामग्री के मान से सेग्रीगेशन किया जाता है और फिर 15 दिनों की प्रक्रिया में अगरबत्ती मसाला व खाद तैयार होता है। निगम उपायुक्त योगेंद्र पटेल के अनुसार निर्माल्य से हर्बल युक्त अगरबत्ती तैयार की जा रही है। इससे निर्माल्य का सही उपयोग होने लगा व लोगों की धार्मिक आस्थाएं भी आहत नहीं हो रही। निगम अमला इसकी सतत् मॉनिटरिंग करता है। फूल ऐसे अगरबत्ती में हो रहे तब्दील मंदिरों में चढ़ाए हमारे फूल व अन्य सामग्री रोजाना निर्माल्य वाहनों से प्लांट पर पहुंचते हैं। यहां गुलाब, गेंदे, मोगरा, चमेली, सेंवती को किस्म अनुसार अलग किया जाता है। ताकि सुगंध मिश्रित ना हों। निर्माल्य में आई अन्य सामग्री को अलग रखा जाता है, ताकि मसाला कम प्रोसेस में महीन बने। सेग्रीगेट फूलों को मशीन में डालकर महीन मसाला तैयार होता है। इस मसाले को खुली धूप व अन्य प्रोसेसिंग से सुखाया जाता है। सूखे हर्बल पदार्थ् में कुछ जरूरी वस्तु मिलाकर इससे अगरबत्ती तैयार होती है। इसमें कोई सेंट व कोयला नहीं मिलाया जाता, जिससे इसकी महक प्राकृतिक व वातावरण को आनंदित करती है। हर मंदिर की अलग तासीर प्रत्येक मंदिर के निमाज़्ल्य की किस्म व तासीर अलग होने से सेग्रीगेशन जरूरी है। महाकाल मंदिर में जल चढऩे से यहां के फूल गीले अधिक आते हैं। इनमें बिल्व पत्र व आंकड़े भी रहते हैं। शनि मंदिर में तेल चढऩे से यहां के फूल में तेल की चिकनाई शामिल रहती है। मंगलनाथ मंदिर पर कुमकुम अपिज़्त होने से यहां के फूलों में इनकी मात्रा अधिक पाई जाती है। काल भैरव मंदिर पर चढऩे वाले फूलों में अल्कोहल की सुगंध शामिल हो जाती है। हर मंदिर में निमाज़्ल्य की अलग तासीर होने से इन्हें अलग रूपों में सेग्रीगेट किया जाना जरूरी है।

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