दुश्मन का दूसरा नाम नफरत- शंकराचार्य दिव्यानंद तीर्थ
राष्ट्रपति के भाई को विद्यासागर उपाधि से सम्मानित
उज्जैन। हम किसी के भी संग रहें हमारे स्वभाव पर संगत का असर पड़ता है, नफरत दुश्मन का दूसरा नाम है। तपोगुण हमारे ज्ञान के उपर परदा डाल देता है। हम सब जानते है कि क्या सही है, क्या गलत लेकिन हम मानते नहीं। रावण को मालूम था कि राम से बैर लेकर सोने की लंका समाप्त हो जाएगी फिर भी वह नहीं माने। भगवान ने भी पुतना को मां बनाया था तो पुतना का राक्षसपन समाप्त हो गया।
उक्त बात श्री मौनतीर्थ पीठ गंगाघाट पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महापुराण के छठे दिन शंकराचार्य दिव्यानंद तीर्थ ने भागवत के दसवें स्कंध का वर्णन करते हुए कही। आपने कहा श्रीमद् भागवत कथा हमको मोक्ष की तरफ ले जाती है। दसवें स्कंध में कृष्ण की प्राप्ति होती है। मौनतीर्थ पीठ के जनसंपर्क अधिकारी दीपक राजवानी ने बताया कि भागवत कथा में सर्वप्रथम भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बड़े भाई रामस्वरूप भारती ने भागवत महापुराण पर पुष्पमाला चढ़ाकर पूजन किया। मानस भूषण संत सुमनभाई व डॉ. अर्चना सुमन ने शंकराचार्यजी का आशीर्वाद लिया। वैभव शर्मा व गौरी शर्मा ने समस्त दंडीधारी संतों को माला पहनाकर दक्षिणा दी, पश्चात भानपुरा के शंकराचार्य दिव्यानंद तीर्थ ने रामस्वरूप भारती को विद्यासागर उपाधि से सम्मानित किया व उन्हें सम्मान पत्र व स्मृति चिन्ह देकर आशीर्वाद दिया। इस अवसर पर भारत भूषण शर्मा, भगवान शर्मा, माया शर्मा, कला शर्मा, ममता पाटीदार, लतिका शर्मा, अनीता पाटीदार, डॉ. देवेन्द्र नारायण शाह विक्रमशीला के कुलपति सहित कई लोग मौजूद थे।