विश्व अर्श दिवस आज
उज्जैन । शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के मीडिया प्रभारी श्री प्रकाश जोशी ने जानकारी देते हुए बताया कि मंगलवार 20 दिसम्बर को विश्व अर्श दिवस है। आधुनिक समय में अनियमित जीवनशैली (आहार विहार) से उत्पन्न होने वाले रोगों में अर्श रोग (बवासीर) प्रमुख रोग है, जोकि मल मार्ग में होता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन सभी संहिताओं में मिलता है।
अष्टांग आयुर्वेद में शल्यतंत्र के जनक आचार्य सुश्रुत ने अर्श रोग का वर्णन प्रमुखता से किया है। आचार्य ने इस रोग को शत्रु के समान कष्ट देने वाला बताया है। इसे उत्पन्न करने वाले कारणों में गरिष्ट भोजन, बासी भोजन, अधिक मद्यपान, एक जगह ज्यादा बैठना, समय पर भोजन न करना, अपच होने पर भी भोजन करना, गर्भावस्था में और आनुवांशिक कारण प्रमुख हैं।
अर्श के प्रमुख लक्षणों में गुदा मार्ग में दर्द होना, मल त्याग में कठिनाई होना, कठिन मल होने पर रक्त आना, पेट फूलना, कब्ज रहना, खट्टी डकार आना, सिरदर्द बने रहना, भूख न लगना मुख्य हैं। आचार्य ने आयुर्वेद में अर्श रोग की चिकित्सा 4 प्रकार से बताई है, जिसमें औषध क्षारकर्म और अग्निकर्म शस्त्र द्वारा चिकित्सा की जाती है। अर्श रोग के अल्प लक्षण होने पर आयुर्वेद चिकित्सा परामर्श अनुसार औषध चिकित्सा सफल होती है, जब अर्श मल मार्ग के बाहरी त्वचा में स्थित हो, तब अग्निकर्म चिकित्सा की जाती है। जब अर्श रोग में मांसाकुर मल त्याग के समय मल मार्ग से बाहर आये और उनमें रक्तस्त्राव हो तब क्षारसूत्र चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ होती है।
क्षारसूत्र में धागे पर स्नुहीक्षीर, अपामार्ग क्षार और हल्दी चूर्ण का लेप किया जाता है और इस औषध सिद्ध क्षारसूत्र से मांसाकुर को बांध दिया जाता है, जिससे वह 7 दिन में स्वत: ही सूखकर गिर जाता है।
क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति से होने वाले व्रण या घाव जल्दी ही भर जाते हैं और मल मार्ग में किसी प्रकार की क्षति नहीं होती। आयुर्वेद की यह पद्धति एक निरापद चिकित्सा है। अर्श रोग से बचाव के लिये दूध, छाछ, मट्ठा, पुराना गेहूं व अन्न, गाय का घी, हरी सब्जियां, समय पर आहार एवं उचित निंद्रा का सेवन करना चाहिये। भारी भोजन, अधिक तला हुआ, मिर्च-मसालेयुक्त भोजन एवं मांसाहार, मैदा और बेसन से बने उत्पादों का सेवन नहीं करना चाहिये। सभी लोग आयुर्वेद पद्धति को अपनायें और स्वस्थ रहें। अर्श से सम्बन्धित अन्य जानकारी के लिये और उपचार हेतु शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के शल्य चिकित्सक डॉ.दीपक नायक से सम्पर्क किया जा सकता है।