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सबरीमाला धर्मस्थल की परंपरा की रक्षा करना पुजारियों का धर्म



अखिल भारतीय पुजारी महासंघ सबरीमाला मंदिर के पुजारियों के साथ
उज्जैन। कुछ दिनों से धर्म स्थलों की परंपरा पूजा पध्दति आदि में हस्तक्षेप करके परंपराओं को बिगाड़ने का कतिपय लोग पूरे देश में कार्य कर रहे हैं, मंदिरों की परंपरा आदि, अनादिकाल, त्रेता, द्वापर जैसे युग में भी हर श्रध्दालु एवं अवतार लिये हुए देवताओं ने भी उसका पालन किया है। उसके पश्चात उस युग में धर्म विरोधी प्रवृत्ति के लोग होते थे, उनके द्वारा धर्म विरोधी कार्य किया जाता था, जिससे धर्म को हानि पहुंचती थीं। देश, राज्य आदि में असंतोष, पापाचार बढ़ता था इस कारण देवता अवतार लेकर उस पाप एवं पाप प्रवृत्ति के लोग जो परंपरा को नष्ट भ्रष्ट करते थे उनका संवहार करते थे, आज जो सबरीमाला तीर्थ में न्याय की आड़ लेकर परंपरा तोड़ने का जो प्रयास किया जा रहा है वह उचित नहीं है। महिला न्यायाधीश ने महिला होकर भी न्याय की बात कही है इससे प्रतीत होता है कि न्याय के साथ परंपरा भी जीवित है। 
यह बात अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक महेश पुजारी ने सबरीमाला मंदिर के पुजारी एवं बोर्ड को पत्र लिखकर उनका समर्थन किया है। मंदिरों की परंपरा बचाने के लिए यदि पुजारियों को बलिदान भी देना पड़ जाये तो यह कम है, अखिल भारतीय पुजारी महासंघ परंपरा का समर्थन करते हुए देश के प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखकर मांग की है कि जिस तरह एट्रोसिटी एक्ट में न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय को बदल कर कानून बनाया उसी प्रकार सबरीमाला मंदिर पर भी कानून बनाकर परंपराओं को सुरक्षित करे, यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो सरकार की दोहरी नीति से देश के हिंदुओं का अहित होगा एवं मंदिरों की परंपरा एवं पवित्रता भंग होगी जो अनादिकाल से चली आ रही है, प्रधानमंत्री से मांग की है कि मंदिरों से संबंधित मुद्दे को न्यायालय में नहीं ले जाते हुए धर्म परंपरागत न्यायालय की स्थापना की जाये, जिसमें सभी धर्म के सर्वोच्च संतों को न्यायाधीश बनाया जाये जो मंदिरों की परंपराओं पर न्याय कर सके। सनातन धर्म के शंकराचार्य, मुस्लिम धर्म के मौलवीख् ईसाई धर्म के पोप, जैन संत, सिक्ख धर्म के गुरू आदि को लेकर न्यायालय की स्थापना की जाये उसी न्यायालय में धर्म एवं मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च आदि सभी के प्रकरण धर्म संबंधित सर्वोच्च धार्मिक न्यायालय में चलाया जाये। 

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