हम मलाई को तैयार कर ऊपर आने का निमंत्रण दुहराने आएं हैं-दिव्येश व्यास
उज्जैन। सन् 1983 में परम पूज्य गुरुदेव ने मलाई को तैयार कर ऊपर आने का निमंत्रण दिया था। उन्होंने साधकों को तप करने और तपने के बाद साधना का फल मलाई के रुप में समाज में वितरित करने को कहा था। अभी जो किया जा रहा है वह जरूरी तो है पर बहुत काफी नहीं। वही निमंत्रण हम दुहराने के लिए आए हैं।
यह उदगार दिव्येश व्यास प्रभारी आई.टी. विभाग शांतिकुज्ज हरिद्वार ने गायत्री शक्तिपीठ पर प्रमुख कार्यकर्ताओं के बीच व्यक्त किए। आपने परिजनों के विभिन्न सवालों के जबाब में कहा कि उल्टे को उलटकर सीधा करने का काम ही युग निर्माण योजना है। लोकसेवा के फलस्वरूप विवेक का जागरण होता है। सही गलत का अंतर करने की बुद्धि मिलती है यही गायत्री साधना का फल भी है। 24 वर्ष की लोक सेवा के बाद अपने को पर्दे के पीछे करते जाना चाहिए। अभी गुरूदेव के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते हैं, आज की वैज्ञानिक प्रगति में बाधा बन सकने वाली स्काईलेव की दुर्घटना को टालने के लिए साधनात्मक प्रयोग की चर्चा करते हुए व्यास ने बताया कि स्काईलेव से बचाव यदि नहीं होता तो सारी प्रगति रुक जाती। क्योंकि इसके द्वारा होने वाले विनाश को देखते हुए वैज्ञानिकों को और उपग्रह नहीं छोड़ने दिया जाता। इसके लिए गुरूदेव ने रात्रि में 9 से 9.30 बजे तक गायत्री मंत्र जाप करवाया था और भारतीय समयानुसार रात्रि 9.15 बजे स्काईलेव समुद्र में गिरा था। 2000 तक सारे विनाश को टाल दिया गया है। अब नवनिर्माण ही होना है। विवेकानंद यदि नहीं आते तो सब नास्तिक बन जाते। अब विवेकानंद का उत्तरार्ध चल रहा है। विकसित देश अकेले पन और भोग से दुखी हैं। अवतारी सत्ता के साथ प्रवाह के विपरीत चला जा सकता है। आपने कहा कि गायत्री परिवार के सक्रिय परिजनों की संख्या कम जरूर दिखाई दे रही है पर आशा अपेक्षा इन्हीं से की जा रही है। आगामी दिनों समाज को लोकसेवियों की बड़ी आवश्यकता पड़ेगी। गुजरात में प्लेग के समय सभी धर्म सम्प्रदायों के घरों में यज्ञ की मांग को गायत्री परिवार ने ही पूरा किया था।