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शक्ति संरक्षण सामूहिक चांद्रायण साधना होगी, सावन के माह में शांतिकुज्ज हरिद्वार के मार्गदर्शन में होगा आयोजन


 

उज्जैन। गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई से 26 अगस्त श्रावणी पूर्णिमा तक शांतिकुज्ज हरिद्वार केे मार्गदर्शन में उच्च स्तरीय चंद्रायण साधना देश भर में सरल रीति से सामूहिक रुप से कराई जाएगी। 

गायत्री शक्तिपीठ पर उपक्षोन समन्वयक राकेश गुप्ता ने साधना में भागीदारी की प्रक्रिया बताते हुए कहा कि साधकों को पंजीयन मोबाइल फोन से कराना है। सभी को एक वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा। अपने घर पर रहकर ही साधना संपन्न करनी है। म. प्र. के मार्गदर्शक प्रकाश मूरजानी को मो. नंबर 7987549545 तथा उज्जैन जिले के लिए देवेन्द्रकुमार श्रीवास्तव से मो. नंबर 9425373939, नीति दीदी से मोबाईल नंबर 8770370684 से संपर्क किया जा सकता है।

राकेश कुमार गुप्ता ने चंद्रायण साधना की विशिष्टता बताते हुए बताया कि ’पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वाेपरि वर्णन किया गया है। 

(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।

(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।

दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -

(1) पिपीलिका मध्य चान्द्रायण।

अर्थात- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।

(2) यव मध्य चान्द्रायण -

-शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।

(3) यति चान्द्रायण 

अर्थात- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।

(4) शिशु चान्द्रायण

- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।

(5) मासपरायण - चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।

जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।

चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। भूमि शयन, एवं ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है।

अनुष्ठान - एक मास में एक सवा लाख जप अनुष्ठान करें या कम से कम तीन 24 हज़ार के अनुष्ठान करें तो उत्तम है। इतना न सधे तो कम से कम दो 24 हज़ार के या एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।

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