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वेशभूषा को लेकर मीणा समाज ईगो न बनाये



उज्जैन। महाकालेश्वर मंदिर की परंपरायें आदि-अनादि काल से प्रचलित हें। सभी धर्म के लोग अपने-अपने मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च की परंपरा का पालन करते तथाकराते हैं। किसी भी दर्शनरार्थी को मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च की परंपराओं को तोड़ने का अधिकार नहीं है। मीणा समाज वेशभूषा को लेकर ईगो न बनाये। इस विषय को लेकर धर्मशास्त्र जानने वालेों के साथ बैठकर हल करने का प्रयास करें। महाकालेश्वर मंदिर में सामान्य दर्शन के समय किसी भी वेशभूषा में जाने की अनुमति है लेकिन जब समस्त आरती एवं गर्भगृह का प्रवेश बंद होता है उस समय पुरूष वर्ग धोती या शोला पहनकर उपरी बदन पर कुछ भी वस्त्र नहीं पहनकर जाता है। इसी प्रकार महिलाओं को ब्लाउज, पेटीकोट एवं साड़ी पहनने पर प्रवेश दिया जाता है, अन्य वेशभूषा में नहीं, यह मंदिर की परंपरा है। और मंदिर समिति को इसका पालन सख्ती से करना चाहिये। 
यह बात अ.भा. पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक महेश पुजारी ने एक पत्र मंदिर समिति अध्यक्ष एवं संभागायुक्त को लिखा। आपने मांग की कि मीणा समाज जिस तरह से आंदोलन की चेतावनी देकर मंदिर की परंपरा और पवित्रता पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहते हैं यदि मंदिर समिति परंपरा के विपरित जाती है तो अनेक समाज अपने हित में मंदिर की परंपरा को समाप्त करने का हथियार बना लेंगे। आपने पत्र में लिखा है कि पुजारी महासंघ सभी वेशभूषा का सम्मान करता है, उसका पालन सभी भक्तों को करना चाहिये। जिस वेशभूषा को लेकर मीणासमाज नाराज है वह राजस्थानी वेशभूषा है। वह ब्लाउज न होकर कांचली (कुर्ता) है, इसलिए उसको ब्लाउज की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। 

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