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'विक्रमोत्सव का है मौका, रोशन करना है अवंतिका का नाम'


 

'शुरू हुई वेद मंत्रों की अंताक्षरी, लेकर विक्रमादित्य का नाम'

नवसंवत्सर के आगाज के पूर्व वैदिक मंत्रों से हुआ अभिनंदन

विक्रम उत्सव के अंतर्गत वेद अंताक्षरी आयोजित

उज्जैन । नवसंवत्सर के आगाज के पूर्व वैदिक मंत्रों के उच्चारण से भारतीय नववर्ष का अभिनंदन किया गया। विक्रम उत्सव के अंतर्गत शुक्रवार को महाकाल मंदिर प्रवचन हॉल में अनुष्ठान मंडपम ज्योतिष अकादमी, महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति, महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, संस्कृत विभाग विक्रम विश्वविद्यालय एवं शासकीय संस्कृत महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में वेद अंताक्षरी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के संयोजक अनुष्ठान मंडपम के निदेशक पं.श्यामनारायण व्यास थे। मुख्य अतिथि रामानुज कोट के पीठाधीश्वर महंत श्री रंगनाथाचार्यजी महाराज थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित ने की। बतौर विशिष्ट अतिथि श्री विभाष उपाध्याय, प्रो.बालकृष्ण शर्मा, डॉ.केदारनाथ शुक्ल, सहायक प्रशासक महाकाल मंदिर समिति सुश्री प्रीति चौहान और संस्कृत महाविद्यालय के आचार्य श्री सदानंद त्रिपाठी कार्यक्रम में शामिल हुए।

कार्यक्रम में बताया गया कि विक्रम उत्सव के अंतर्गत वेद मंत्रों की अंताक्षरी के आयोजन के पीछे यही उद्देश्य है कि सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शुरू किए गए विक्रम संवत के नए संवत्सर का अभिनंदन वैदिक मंत्रों द्वारा हो, ताकि संपूर्ण वातावरण शुद्ध हो सके और नव वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो।

पं.श्यामनारायण व्यास द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। उन्होंने बताया कि विगत 14 वर्षों से निरंतर वेद अंताक्षरी का कार्यक्रम संचालित हो रहा है। इसमें डॉ.राजपुरोहित की महती भूमिका रही है। इसमें एक उद्देश्य यह भी है कि हमारी प्राचीन वैदिक संस्कृति की रक्षा हो सके। इसे निरंतर बनाए रखने की आवश्यकता है। इसके पश्चात ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद के मंत्रों से वेदपाठी बटुकों द्वारा मंगलाचरण किया गया। श्री विभाष उपाध्याय ने इस अवसर पर कहा कि यह एक अनूठा प्रयोग है। किसी समय काशी वैदिक अध्ययन का मुख्य केंद्र रहा करता था, लेकिन अब उज्जैन भी इसमें विशिष्ट स्थान बनाते हुए प्रसिद्ध होता जा रहा है। सभी आचार्यों के संयुक्त प्रयास से यह संभव हो सका है। अगले वर्ष से महाकालेश्वर शोध संस्थान में भी वैदिक पाठ प्रारंभ करने के प्रयास किए जाएंगे।

सुश्री प्रीति चौहान ने कहा कि विक्रम उत्सव के आयोजन में विगत कुछ वर्षों से मंदिर समिति की सहभागिता रही है। यह कार्यक्रम आगे नई ऊंचाईयों को छुए और भारतीय संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करे, यही कामना है।

डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित ने कहा कि हमारा समाज इस तरह के वैदिक आयोजन के लिए सदैव ऋणी रहेगा। वेद पाठियों को वेदों के साथ वेदांतों का भी अध्ययन करना चाहिए, तभी हम सही स्वरूप मे वेदों को समझ पाएंगे। सम्राट विक्रमादित्य के समय भी ऐसे आयोजन वृहद स्तर पर हुआ करते थे। यह क्रम आगे भी सदैव चलता रहना चाहिए।

प्रो.केदारनाथ शुक्ला ने कहा कि वैदिक मंत्रों से नए संवत्सर का अभिनंदन किया जाना सर्वथा उपयुक्त है। गायत्री मंत्र संवत्सर का प्रतिनिधित्व करता है। संवत्सर का अर्थ संपूर्ण ब्रह्मांड भी होता है, इसलिए हमारी निष्ठा इसके प्रति होनी ही चाहिए।

प्रो.बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि बुद्धिमान लोगों का काव्यशास्त्र के विनोद में समय व्यतीत होता है। अंताक्षरी प्राचीनकाल से ही विनोद की प्रथा रही है। हमारे ऋषियों ने मनोविनोद एवं कालयापन के लिये जो मार्ग चुना वह भी सभी के लिये मंगलमय ही साबित हुआ है। वे बुद्धि की प्रखरता को बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है। उज्जैन से यह मार्ग प्रशस्त हो रहा है। यह हमारे लिये गौरव की बात है। राजा विक्रमादित्य के साथ वेदों को जब जोड़ा जाता है तो यह क्रम विशेष बन जाता है।

महन्त श्री रंगनाथाचार्यजी महाराज ने कहा कि भगवान महाकाल एवं श्रीकृष्ण की विद्यास्थली में यह अनुष्ठान होना अत्यन्त गौरव की बात है। बटुक वेदों की अंताक्षरी में भाग लेकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं। अमरकोश का अध्ययन भी उन्हें करना चाहिये। इस आयोजन से हमारी वैदिक संस्कृति की जड़ें मजबूत होंगी। छात्रों को व्याकरण की ओर भी विशेष ध्यान देनाचाहिये, ताकि वैदिक मंत्रों का सही उच्चारण कर वे संस्कृत और संस्कृति को भलीभांति समझ सकें। वेद केवल कर्मकाण्ड तक सीमित न रहे, बल्कि उनसे विद्यार्थियों की प्रतिभा का विस्तार भी देश-विदेश में होना चाहिये।

कार्यक्रम में पं.श्यामनारायण व्यास द्वारा नये वर्ष के पंचाग का अनावरण किया गया। अतिथियों एवं निर्णायकों का स्वागत शाल और श्रीफल भेंट कर किया गया। कार्यक्रम ें अपनी प्रतिभा से उज्जैन का नाम पूरे देश में रोशन करने वाली शुभांगी दवे का भी सम्मान किया गया। बताया गया कि सुश्री शुभांगी द्वारा काफी कम आयु में शास्त्रीय संगीत में राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रस्तुतियां दी गई हैं। हाल ही में रांची में हुई अखिल भारतीय संगीत स्पर्धा में देश के 120 विश्वविद्यालय के प्रतिभागियों ने शिरकत की थी। शुभांगी दवे द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया गया था, जिसमें उन्हें तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।

प्रतिभाओं के सम्मान के पश्चात वेद मंत्रों की अंताक्षरी शुरू की गई। इसमें चार टीमें बनाई गई थीं महर्षि वशिष्ठ, महर्षि अत्री, महर्षि भारद्वाज और महर्षि विश्वामित्र। अंताक्षरी के दौरान मंत्रों के विचार के लिये प्रतिभागियों को 15 सेकण्ड का समय दिया गया था। अंताक्षरी के निर्णायक श्री नीलेश शर्मा, श्री विपुल शर्मा एवं श्री जयनारायण शर्मा थे। वेद अंताक्षरी में प्रथम स्थान महर्षि विश्वामित्र टीम ने प्राप्त किया, जिसके प्रतिभागी ओम प्राच्य विद्या परिषद के थे। इन्हें अतिथियों द्वारा पुरस्कार के रूप में 2100 रूपये की नगद राशि एवं प्रमाण-पत्र दिये गये। द्वितीय स्थान भारद्वाज टीम ने प्राप्त किया। इसके प्रतिभागी महर्षि काव्य वेदविद्याधाम के थे। इन्हें 1500 रूपये की राशि और प्रमाण-पत्र दिये गये। तृतीय स्थान महर्षि गौतम टीम ने प्राप्त किया, जिसके प्रतिभागी श्री मौनी बाबा वेदविद्या पीठ के थे। इसमें पुरस्कारस्वरूप 1100 रूपये की नगद राशि एवं प्रमाण-पत्र दिये गये।

कार्यक्रम में सभी सहभागियों को 500 रूपये की प्रोत्साहन राशि एवं प्रमाण-पत्र दिये गये। कार्यक्रम का संचालन और आभार प्रदर्शन डॉ.पतंजली कुमार पाण्डे ने व्यक्त किया। 

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