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किसानों को बताये कम पानी, कम लागत से गेहूं की अच्छी पैदावार के तरीके


 

उज्जैन। भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की सहकारी शिक्षा क्षेत्रीय परियोजना द्वारा सीमांत एवं लघु कृषकों को गेहूं की फसल कम पानी एवं कम लागत में अधिक पैदावार कैसे संभव हो समझाने एवं प्रत्यक्ष देखने के लिए कृषकों के दल ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केन्द्र इंदौर का भ्रमण किया जहां गेहूं पर अनुसंधान होता है। भ्रमण के लिए कृषकों को प्रेमसिंह झाला एवं जगदीश नारायणसिंह सहकारी शिक्षा प्रेरक ने प्रेरित किया। प्रतिभागियों में लघु एवं सीमांत कृषक शामिल थे, अधिकांश कृषक पहली बार किसी अनुसंधान केन्द्र में आये। 

कृषकों को अनुसंधान केन्द्र के कनिष्ट वैज्ञानिक अब्दुल वसीम अब्दुल वसीम ने अनुसंधान केंद्र के भंडागारण में ले जाकर गेहूं का भंडारण करने के तरीके समझाए। भारतीय अनुसंधान केन्द्र के वरिष्ठ एवं मुख्य वैज्ञानिक ए.के. सिंह ने मौलिक एवं सरल भाषा में खेत तैयार करना, मिट्टी परीक्षण, गोबर खाद, बीज एवं उपवार, बुवाई, पोषक तत्व का प्रबंधन, खरतपवार प्रबंधन, सिंचाई व्यवस्था, फसल सुरक्षा, कटाई एवं मढ़ाई साथ ही भंडारण पर विस्तृत रूप से समझाया। कार्यक्रम में आये सभी प्रतिभागी कृषकों एवं संस्था के वैज्ञानिकों का आभार परियोजना अधिकारी चंद्रशेखर बैरागी ने माना। कृषकों को प्रेरित करने में कृपा वेलफेयर सोसायटी की पूजा चौहान एवं गोपाल गुप्ता का सहयोग रहा। 

मालवी गेहूं जलवायु के अनुरूप होने के साथ पौष्टिक भी

कनिष्ट वैज्ञानिक अब्दुल वसीम ने गेहूं के प्रदर्शन प्लाट पर प्रत्यक्ष रूप से गेहूं की हर किस्म की प्रजाति की विशेषताएं एवं रखरखाव के साथ ही मार्केटिंग के विषय में जानकारी दी। उनमें मालवी गेहूं की आवश्यकता एवं उपयोगिता, कम सिंचाई में अधिक उत्पादन क्षमता, पोषण सुरक्षा, रोग एवं उनसे बचाव, मालवी गेहूं की नयी किस्में, मालवी गेहूं की खेती की सफलता के मुख्य आधार, रोजगार को बढ़ावा एवं विदेश व्यापार की संभावना को समझाया, साथ ही कहा कि मालवी गेहूं मालवा के जलवायु के अनुरूप होने के साथ-साथ पौष्टिक भी है। आप उसे अपनाकर वैज्ञानिक तरीके से कृषि करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं। 

10 से 12 वर्षों तक अनुसंधान के बाद विकसित होती है गेहूं की नई प्रजाति

वैज्ञानिक ए.के. सिंह ने कृषक दल को अपना एवं भारतीय कृषि अनुसंधान का परिचय कराते हुए अनुसंधान में किस प्रकार कृषकों के लिए नई प्रजातियां विकसित की जाती है एवं यह अनुसंधान केन्द्र पूरे भारत में अपने तरह का एकमात्र संस्थान है जो गेहूं के लिए अनुसंधान कार्य करता है। गेहूं की नई प्रजाति विकसित करने के लिए 10 से 12 वर्षों तक अनुसंधान कार्य किया जाता है तब जाकर नई प्रजाति विकसित होती है। यह अनुसंधान गेहूं में होने वाले रोगों एवं उसके निदान के साथ ही ऐसी प्रजाति विकसित करता है कि उस प्रजाति में किसी प्रकार का रोग न आ पाये। सिंह ने कृषकों को गेहूं की फसल के पहले खेत कैसे तैयार करें, किस प्रकार जुताई करना है, गोबर खाद का इस्तेमाल, अंतिम जुताई पर कैसे किया जाना चाहिये बतलाया। बीज एवं बुवाई अच्छी किस्म तथा उच्च गुणवत्ता के बीज का प्रयोग करना चाहिये। बीज का अपने पास उपलब्ध पानी के अनुसार चयन करें। बीज हमेशा भरोसेमंद संस्थान से ही खरीदें। हमने सिंह ने बताया कि हमने आपको एक तालिका दी है उसी के अनुरूप आप बीज का चयन करें, खेत तैयार करें साथ ही लाईन से लाईन की दूरी भी उसी अनुरूप रखें। बीज बोवाई से पहले बीज का उपचार करें ताकि बीमारियों से रोकथाम हो सके एवं बीज का पूर्ण अंकुरण हो पाये। तालिका अनुसार एवं फील्ड विजिट के अनुरूप बीज का चयन करें ताकि आपके ग्रामानुसार, जलवायु अनुसार, पानी की उपलब्धता अनुसार उपयुक्त हो जिससे आपको अधिक उत्पादन मिल सकें। जब हम पूर्व फसल काटने के पश्चात जब खेत में नमी रहती है तब उसकी अच्छे से सुताई करें एवंज ब गेहूं का बोवाई समय आये तब सूखे खेत में बीज को डेढ़ इंची गहराई में एवं खाद को तीन इंच की गहराई में डाले। मिट्टी परीक्षण के अनुरूप आप सिंचित खेत में खाद देवें। खाद से पहले विशेषज्ञ से सलाह जरूर लेवे जिससे आपको खाद चयन एवं खाद की मात्रा का निर्धरण हो सके जिससे गेहूं को जरूरी पोषक तत्व मिल सकें। फसल को खरपतवार से मुक्त रखें। कम से कम बुवाई के 35 दिन के बाद तक खेत को खरपतवार विहिन रखना अति आवश्यक है। जो भी खरपतवार है उसे उखाड़कर फिकवा दें। यदि मानव श्रम की कमी हो तो विशेषज्ञ की राय खरपतवार नाशक दवाईयों का उपयोग करें ताकि फसल को नुकसान न हो पाये। सिंचाई व्यवस्था की नमी बोवाई का समय एवं बोने जाने वाले बीज की प्रजाति पर निर्भर करता है। साथ ही खेत की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि खेत ढलानवाला या पथरिला हो तो अधिक पानी की आवश्यकता होगी। सिंचाई बीज के अनुसार होती है। सिंचाई 15 बाय 20 मीटर की क्यारी में करें तो लाभकारी होती है न की सरी बनाकर देने से। उन्नत किस्म के बीज पर कीट का प्रकोप नहीं होता है और यदि हो जाता है तो विशेषज्ञों की सलाह लेना चाहिये। फसल की कटाई उचित समय पर पुलों को खड़ा कर देना चाहिये ताकि उसकी नमी दूर हो सके एवं तीन चार दिन अच्छी धूप भी लग जाये। फिर अच्छे थ्रेसर से उसकी मढ़ाई कर देनी चाहिये।

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