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शशांक के व्यंग्य में मालवापन है -यशवंत व्यास



उज्जैन। अपने देश में दो तरह के लोग होते हैं, एक जिनकी जेबें होती हैं
और दूसरे जो जेबकतरे हैं। व्यंग्यकार को जेब वाले लोगों पर नजर रखना होती
है क्योंकि वे जेबें हमारी ही होती हैं। व्यंग्यकार शशांक दुबे के
व्यंग्य महत्वपूर्ण होकर उनके व्यंग्यों में मालवापन है। साहित्य में
आजकल ‘प्रिय भाई‘ नामक एक गेंग होती है जो एक दूसरे की तारीफ़ और समीक्षा
कर रही होती है।
ये विचार संपादक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार यशवंत व्यास ने , साहित्य मंथन
के तत्वावधान में व्यंग्यकार शशांक दुबे के व्यंग्य संग्रह ‘असल से तो
नक़ल अच्छी‘ के विमोचन प्रसंग में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किये।
अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. शिव शर्मा ने कहा कि जितने
व्यंग्यकार मालवा में हैं उतने पूरे देश में नहीं हैं और शरद से शशांक तक
व्यंग्य की एक परंपरा चली आ रही है। आपने कहा कि व्यंग्य की कोई
सिनोप्सिस नहीं होती और हर व्यंग्यकार की अपनी एक शैली होती है और शशांक
,व्यंग्य के खिलंदड हैं। संग्रह पर चर्चा करते हुए बी.एल. आच्छा और डॉ.
पिलकेंद्र अरोरा ने संग्रह को रंजक, रोचक और रेचक बताया। विमोचन प्रसंग
में व्यंग्यकार ओम वर्मा देवास, ब्रजेश कानूनगो इंदौर, रमेशचंद्र शर्मा
उज्जैन ने व्यंग्यपाठ किया। अतिथियों ने शशांक दुबे के व्यंग्य संग्रह का
विमोचन किया। माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप आलोकन से आयोजन
प्रारंभ हुआ। स्वागत भाषण साहित्य मंथन के अध्यक्ष डॉ. प्रेम पथिक ने
दिया। लेखकीय वक्तव्य शशांक दुबे ने दिया। स्वागत मुकेश जोशी, अशोक भाटी,
सुरेन्द्र सर्किट, डॉ. हरीशकुमार सिंह, वाय.के. दुबे, डॉ. रमेशचन्द्र,
रमेश कर्नावट, डॉ. प्रभाकर शर्मा, याज्ञवल्क्य दुबे, रमेशचन्द्र शर्मा
आदि ने किया। आयोजन में साहित्यकार शिव चौरसिया, प्रमोद त्रिवेदी,
श्रीराम दवे, पुरुषोत्तम दुबे, सतीश राठी, डॉ. देवेन्द्र जोशी, विवेक
चौरसिया, संदीप सृजन, कमलेश व्यास, दिनेश विजयवर्गीय, स्वामीनाथ पांडे,
नारायण मंध्वानी, अनिल कुरेल, राजेन्द्र देवधरे, संतोष सुपेकर सहित बड़ी
संख्या में साहित्यकार उपस्थित रहे। संचालन साहित्य मंथन के महासचिव डॉ.
संदीप नाडकर्णी ने किया और आभार डॉ. हरीशकुमार सिंह ने व्यक्त किया।

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