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'गो माता को फिर से किसानों के खूंटे में बांधने की जरूरत' –श्री मोहन नागर


'गाय के बिना भारतीय संस्कृति का चिन्तन हो ही नहीं सकता' –डॉ.मोहन गुप्त

'हम गाय को नहीं बल्कि गाय हमको पालती है'

'पत्रकारिता के बदलते दौर में स्वयं को बदलना भी

उतना ही जरूरी' –श्री शिवकुमार विवेक

'पत्रकारिता में ड्रेसअप और प्रजेंटेशन पर

विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता' –श्री मनोज सैनी

'गो-संवर्धन में शासन एवं समाज की भागीदारी' पर

जनसम्पर्क विभाग द्वारा मीडिया संवाद आयोजित

      उज्जैन । गुरूवार को संभागीय जनसम्पर्क कार्यालय द्वारा होटल शान्ति पैलेस में 'गो-संवर्धन में शासन एवं समाज की भागीदारी' पर कार्यशाला-सह-मीडिया संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के अतिथि गो-संवर्धन पर विषय विशेषज्ञ श्री मोहन नागर, भारतीय संस्कृत के विद्वान एवं महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.मोहन गुप्त, पत्रकारिता कौशल पर मीडिया विशेषज्ञ दैनिक भास्कर भोपाल के सेन्ट्रल सेटेलाइट एडिटर श्री शिवकुमार विवेक, सहारा समय इन्दौर के रीजनल हेड श्री मनोज सैनी तथा उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं डॉ.एचव्ही त्रिवेदी थे। मां सरस्वती के चित्र के समक्ष माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन कर संवाद कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया गया। स्वागत भाषण सहायक संचालक सुश्री अनुभा सिंह द्वारा दिया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रभारी संयुक्त संचालक श्री पंकज मित्तल द्वारा किया गया।

कार्यशाला में विषय विशेषज्ञ श्री मोहन नागर द्वारा गो-संवर्धन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा गया कि जनसम्पर्क विभाग द्वारा गो-संवर्धन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अत्यन्त उपयोगी कार्यशाला आयोजित की गई है। वर्तमान समय में गो-माता को फिर से किसानों के खूंटे से बांधने की आवश्यकता है। गाय के कृषि से दूर होते ही कृषि की अवनति प्रारम्भ हो गई। हमारे देश की संस्कृति में जिसने हमारा पालन-पोषण किया और जिसका इस प्रकृति में महत्वपूर्ण योगदान रहा, उसे हमारे पूर्वजों ने धर्म के माध्यम से स्थापित किया है, ताकि हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो सके। गाय को हमारी संस्कृति में माता का दर्जा दिया गया है। धरती के बाद हमारे समाज की श्रद्धा गोमाता के लिये भी उतनी ही प्रगाढ़ रही है। सभी शास्त्रों में गोवंश को जोड़ा गया है। हमारी संस्कृति में विभिन्न त्यौहारों को मनाये जाने का एक प्रमुख वैज्ञानिक कारण भी रहा है।

विगत कुछ समय से प्रकृति के संसाधनों के आवश्यकता से अधिक और उपेक्षापूर्ण दोहन में गोवंश का भी उपयोग किया गया है। इस कारण हम हमारे पारम्परिक रास्ते से थोड़ा भटक गये हैं, जहां हमें पुन: पहुंचने की आवश्यकता है। जब से हरित क्रान्ति शुरू हुई, तब से रासायनिक खाद का उपयोग कृषि में शुरू हो गया। आधुनिकता से बैलगाड़ी के स्थान पर नई-नई मशीन उपयोग में लाई जाने लगी, जिससे बैल खेती से अलग होते गये। इस कारण गाय की उपयोगिता भी खत्म होती गई। गोवंश के माध्यम से दूध उत्पादन एवं उसके सदुपयोग की कला भगवान कृष्ण द्वारा सिखाई गई थी, परन्तु गाय को दूध के लिये कभी नहीं पाला गया। गायों को मुख्यत: बैल एवं इंधन के लिये ही पाला जाता था। अधिक दूध प्राप्त करने के लालच में जर्सी गाय और अन्य क्रॉसब्रीड नस्ल की गायों का चलन समाज में बढ़ा, जिससे देशी नस्ल की गायों के जीवन पर संकट आ गया। आज ढूंढने से भी देशी नस्ल की गाय नहीं मिलती है।

श्री नागर ने कहा कि हरित क्रान्ति से कुछ सालों तक तो खेती में लोगों को काफी सुविधा हुई, लेकिन पिछला दशक भारतीय कृषि के लिये बहुत दु:खदायी रहा है। रासायनिक खाद के प्रयोग से कैंसर जैसे रोगों का खतरा बढ़ गया है। लालच के कारण बेतरतीब और अनुचित ढंग से रासायनिक खाद का प्रयोग किया गया, जिस कारण मिट्टी की उर्वरता समाप्त हो गई। जमीन के अन्दर की जैव विविधताओं और विभिन्न जीवाणुओं तथा प्रकृति प्रेमी कीटों के जीवन पर संकट बढ़ गया। यह खेती से गाय को अलग करने का ही परिणाम है। गाय जन्म से लेकर मृत्यु उपरान्त तक खेती और भूमि के लिये बेहद उपयोगी रहती है। गाय के गोबर से जैविक खाद और उसके मूत्र से यूरिया की प्राप्ति होती है, जिससे अपने आप कई कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। ये एक पूर्णत: प्राकृतिक चक्र है, जिसके केन्द्र बिन्दु में गाय है। गाय के हटने से प्रकृति चक्र टूटता है और मानव विनाश के करीब पहुंचता है।

श्री नागर ने कहा कि गाय अपने आप में एक सम्पूर्ण अर्थशास्त्र और चिकित्सा शास्त्र है। धरती के संरक्षण के लिये गो-संरक्षण बेहद जरूरी है। बैलों द्वारा प्राचीन समय में जब खेतों में जुताई का कार्य किया जाता था तो समय-समय पर उनके द्वारा छोड़े गये अपशिष्ट एक बहुत अच्छी खाद और कीटाणुनाशक का कार्य करते थे। महर्षियों का मानना था कि जहां गाय रहती है, उस घर में कभी असमय मृत्यु नहीं आ सकती। गाय मनुष्य से भी ज्यादा संवेदनशील होती है। खेती तो हमारी भारतीय संस्कृति में जीवन जीने की पद्धति रही है, लेकिन इसे धंधा बनाकर इसमें हम अपना लाभ और हानि खोजते हैं, जो सही नहीं है। किसानों की दुर्दशा का प्रमुख कारण गोवंश को उनके घर से बाहर निकालना है, इसीलिये आज के वर्तमान समय में गायों को पुन: किसानों के खूंटे से बांधने की आवश्यकता है। समाज में गाय के प्रति उसी श्रद्धा के भाव को लाना जरूरी है। समाज की भी यह जिम्मेदारी होनी चाहिये कि गोमाता को कृषि का केन्द्र बनाया जाये। गाय की महत्ता एक-एक किसान को समझाना भी जरूरी है। गाय का दूध अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक होता है, इसमें भैंस के दूध की अपेक्षा कम फेट पाया जाता है। जैविक खेती का प्रयोग अधिक से अधिक बढ़ाने के लिये शासन द्वारा निरन्तर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं, यह जानना बेहद जरूरी है कि बिना गाय के जैविक खेती संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि जैविक खेती के लिये प्रशिक्षण केन्द्र भी और बढ़ाये जाने चाहिये। मीडिया को भी समाज को जागरूक करने के लिये अपनी जिम्मेदारी समझते हुए गोवंश के संवर्धन में अपनी महती भूमिका अदा करनी होगी, क्योंकि मीडिया के माध्यम से ही समाज में जागरूकता आती है। हमें हमारी ग्रामीण संस्कृति को बचाये रखने की आवश्यकता है पर इसके लिये बहुत जरूरी है कि गांव में रहने वाला व्यक्ति सदैव गांव में ही निवास कर सके। उनके जीवन को उन्नत बनाने का कार्य हमें करना होगा, जो बिना गोवंश के संवर्धन के संभव नहीं है। कृषि के साथ-साथ पशुपालन यदि किसान करते हैं तो ही उन्हें मुनाफा मिल सकेगा। सरकार ने सभी स्तरों पर इस हेतु आवश्यक कदम उठाये हैं। गोपालन और गो-संवर्धन से ही हमारी ग्रामीण संस्कृति में उन्नति होगी और तभी हमारे देश की तरक्की हो सकेगी। सरकार की ओर से इस दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं कि कैसे उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध कराये जा सकें, जिससे कृषकों को दूध के कारोबार में मुनाफा हो। श्री नागर ने कहा कि गोवंश कभी भी हमारे ऊपर बोझा नहीं है। समाज की ये जवाबदेही बनती है कि गाय को बचा लिया जाये, गो-संवर्धन किया जाये, पर्यावरण अपने आप बच जायेगा।

भारतीय संस्कृति में गोवंश के विशिष्ट स्थान पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतीय संस्कृति के ख्यात विद्वान एवं पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.मोहन गुप्त ने कहा कि गाय के बिना भारतीय संस्कृति का चिन्तन हो ही नहीं सकता। भारतीय संस्कृति की चेतना के जो द्वीप हर जगह प्रज्वलित हैं, उनमें गाय, गंगा और गोविन्द का विशेष महत्व है। सृष्टि का प्रारम्भ मातृ तत्व से हुआ है। जल से ही जीवन की उत्पत्ति हुई। जल को संस्कृति में अम्बु कहा गया है, जो मां का पर्यायवाची है। गाय को ही विश्व की माता कहा गया है, क्योंकि मनुष्य के संवर्धन के लिये जिन-जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, वे सभी गाय में निहित हैं। गाय में समस्त कामनाओं की पूर्ति की क्षमता है। कितने अचरज की बात है कि पृथ्वी भी गाय का ही एक पर्यायवाची है।

डॉ.गुप्त ने कहा कि हमारी संस्कृति में कृषकों को गोरक्षा का काम भी सौंपा गया है। सभी प्राचीन सभ्यताओं का प्रारम्भ पशुपालन से ही हुआ है। गाय एक ऐसा पशु है, जिसका गोबर एवं गोमूत्र तक उपयोगी होता है। हमारा दुर्भाग्य है कि हमने गाय से प्राप्त होने वाले संसाधनों का आवश्यकताओं से अधिक दोहन किया, जिस कारण लगातार गोवंश की समय के साथ उपेक्षा होती चली गई। प्राचीन समय में जो दम्पति नि:सन्तान हुआ करते थे, वे गायों को पालते थे। राजा दिलीप ने भी अपनी पत्नी के साथ नन्दिनी गाय की सेवा की। एक चक्रवर्ती सम्राट से गाय की सेवा करवाये जाने के पीछे उद्देश्य यह था कि सम्पूर्ण मानव जाति को यह सन्देश दिया जा सके कि गोसेवा सभी का समान कर्तव्य है।

डॉ.गुप्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि गाय के दूध पर सबसे पहले उसके बछड़े का हक होता है और उसके बाद समाज की बारी आती है। गाय से उत्पन्न होने वाले सभी उत्पाद मानव जीवन के लिये बेहद जरूरी है। भारतीय संस्कृति का चिन्तन शाश्वत चिन्तन रहा है, जिसके वैज्ञानिक आधार भी हैं। एक चिन्तनशील व्यक्ति ही समाज को जोड़ने का कार्य करता है। घर में गाय होने से सारी नकारात्मक ऊर्जा अपने आप समाप्त हो जाती है। इतने सारे महत्वपूर्ण तथ्यों को विगत कुछ समय से हमने भुला दिया है और हम अपने मार्ग से थोड़ा भटक गये हैं। आज आवश्यकता है, पुन: उसी मार्ग पर लौटने की। देखा जाये तो आज भी बैल के समान उपयोगी व्हीकल दूसरी कोई आधुनिक से आधुनिक मशीन भी नहीं है। पत्रकारों को गो-संवर्धन के लिये व्यापक प्रचार-प्रसार आमजन में करना चाहिये। जो गो-पालन करते हैं, वे सभी गोविन्द हैं।

मीडिया विशेषज्ञ श्री शिवकुमार विवेक द्वारा पत्रकारिता कौशल एवं बारीकियों पर वक्तव्य दिया गया। उन्होंने कहा कि बचपन से हम लोग गाय के निबंध को पढ़ते और लिखते आ रहे हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था में यह सन्देश देना इसलिये आवश्यक था, ताकि गाय और गोवंश से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों से सभी को परिचित किया जा सके। इस दिशा में मीडिया भी एक सकारात्मक सन्देश दे सकता है। विगत कुछ समय से मीडिया की दिशा में बदलाव हुआ है। अब मीडिया का रूझान सकारात्मक खबरों की तरफ भी बढ़ा है। आमजन और पाठक की भी यही भावना रही है, जिस कारण मीडिया में बदलाव आया है। पत्रकारों को अपने माध्यमों को और सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। किसी भी विषय में प्रासंगिकता और पाठक को उससे सही तरीके से जोड़ने की आवश्यकता है। समय और आधुनिकता में लगातार हो रहे बदलाव से मीडियाकर्मियों को चिर-परिचित रहना चाहिये। इसके साथ ही हमें भी बदलने की आवश्यकता है। नई पीढ़ी के साथ मीडियाकर्मियों को तादाम्य स्थापित करने की जरूरत है। साथ ही सोशल मीडिया से भी तारतम्य बनाये रखने की महती जरूरत है। किसी भी जानकारी का आमजन में लोकप्रिय होना उसकी प्रासंगिकता के ऊपर निर्भर करता है। हमें समाज में हो रहे बदलाव को स्वीकार कर पत्रकारिता में भी बदलाव लाने होंगे।

मीडिया विशेषज्ञ श्री मनोज सैनी ने अपने वक्तव्य में कहा कि वर्तमान समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कई चुनौतियों का सामना करना होता है, जिन्हें समझने की आवश्यकता है। किसी भी खबर की विश्वसनीयता उसके दस्तावेज और पर्याप्त साक्ष्य होने पर ही होती है। वर्तमान समय आधुनिक तकनीक का समय है। सभी लोग हाईटेक हो गये हैं। मीडिया क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। इन्हीं बारीकियों को हमें समझने की आवश्यकता है। किसी भी खबर को प्रचारित करने से पहले उसकी सच्चाई के बारे में पता लगाना बेहद जरूरी है। आज के दौर में समस्त पत्रकारगणों के समक्ष यही सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि अब पत्रकारिता पहले जैसी नहीं रही। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े लोगों का अब सबसे पहले यही काम होता है कि कौन कितनी देर तक हमें देख रहा है और किस प्रकार हमारे चैनल की टीआरपी बढ़ रही है। इसी आधार पर हमें अपने ड्रेसअप और प्रजेंटेशन पर भी विशेष ध्यान देना होगा। हमारे पास प्रस्तुत करने के लिये जो भी नयापन है और किसी समाचार को कितने रोचक ढंग से हम प्रस्तुत कर सकते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। इसलिये अपना प्रस्तुतिकरण हमें उचित ढंग से करना होगा।

उन्होंने कहा कि मीडियाकर्मियों को आपस में एका बनाकर रखना होगा। गुटबाजी को छोड़कर ही हम सही मायनों में पत्रकारिता के अस्तित्व को बनाये रखते हैं। पत्रकारों को वर्तमान समय में किसी विशेष राजनैतिक दल या वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी का मात्र प्रवक्ता नहीं होना चाहिये। इस बात का विशेष ध्यान हमें रखना होगा। मीडियाकर्मियों को आज के परिवेश में अपने आप को ढालना होगा। ग्राउण्ड रिपोर्टिंग करने पर विशेष फोकस करने की आवश्यकता है। साथ ही लगातार कुछ नया करने का प्रयास मीडियाकर्मियों को करना चाहिये। श्री सैनी ने कहा कि आने वाला समय कई कठिनाईयों से भरा होगा, इसीलिये उन सभी चुनौतियों का सामना करना हमें आना चाहिये, इसीलिये एक मीडियाकर्मी का विनम्र होना भी उतना ही जरूरी है।

वक्तव्य के पश्चात संवाद कार्यक्रम में विशेषज्ञों के साथ स्थानीय पत्रकारों का संवाद प्रारम्भ किया गया। श्री महेन्द्रसिंह बैस ने गोवंश के संरक्षण में शासन द्वारा सार्थक प्रयास किये जाने की बात कही तथा आमजन और किसानों को इस हेतु विशेष रूप से जागरूक किये जाने पर जोर दिया। श्री हरिमोहन ललावत ने गाय को कृषकों का राष्ट्रीय पशु घोषित किये जाने सम्बन्धी सुझाव दिया। साथ ही पशु चिकित्सालयों के चलित किये जाने के बारे में भी सुझाव दिये। उन्नत नस्लों के बारे में मीडिया को अवगत कराये जाने की बात कही। श्री देवेन्द्र जोशी ने संवाद में विशेषज्ञों से कहा कि पत्रकारिता को ग्रामीण स्तर पर ले जाये जाने की महती आवश्यकता है, जिस पर श्री शिवकुमार विवेक ने कहा कि समाचार-पत्रों द्वारा ग्रामीण इलाकों के विशेष कवरेज किये जाकर विशेष संस्करण अखबार में निकाले जा रहे हैं। समाचार-पत्रों के संस्करण में ऐसी भाषा का उपयोग किया जाता है, जिसे आमजन आसानी से समझ सकें। अब ग्रामीण क्षेत्रों के कई विषय अलग से अखबारों में प्रकाशित किये जाने लगे हैं। श्री नरेन्द्रकुमार चौकसे ने पशुपालकों द्वारा दुग्ध उत्पादों के उचित दाम प्रदाय किये जाने पर सुझाव दिया। श्री रमेश दास द्वारा प्रत्येक गांव को गो-संरक्षण के लिये आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराये जाने की बात कही। श्री गणपतसिंह चौहान द्वारा बड़े अखबारों में भ्रामक विज्ञापनों पर नकेल कसे जाने का सुझाव दिया गया। श्री शिवकुमार विवेक ने संवाद के दौरान कहा कि केवल पत्रकार के दम पर ही पत्रकारिता चलायमान है और इसी रूप में इसे निरन्तर बनाये रखना जरूरी है। भ्रामक विज्ञापनों को प्रकाशित करने से रोकने के लिये आमजन को भी सम्पादकों को सुझाव देने चाहिये तथा इन पर सख्ती से रोक लगाने के लिये कहना चाहिये।

श्री सचिन गोयल द्वारा संवाद के दौरान कहा गया कि बड़े अखबारों द्वारा अक्सर शहर के दबंगों का इंपैक्ट फीचर के माध्यम से महिमा मंडन किया जाना पूर्णत: गलत है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिये। इस पर श्री शिवकुमार विवेक ने कहा कि इन सबके लिये एक कुशल प्रबंधन की आवश्यकता है। वर्तमान में अखबार का पाठक अखबार से क्या अपेक्षा रखता है, ये देखना जरूरी है। सफल अखबार चलाने के पीछे अखबार के सम्पादक या मालिक का यही उद्देश्य होना चाहिये, कि समाचार-पत्रों के पाठक जागरूक हो सकें। इसी प्रकार अन्य मीडियाकर्मियों ने भी संवाद में अपने विचार व्यक्त किये। संवाद कार्यक्रम के समापन पर अतिथियों को जनसम्पर्क विभाग द्वारा स्मृति चिन्ह भेंट किये गये। आभार प्रदर्शन सहायक जनसम्पर्क अधिकारी श्री हरिशंकर शर्मा द्वारा किया गया।

मीडिया संवाद कार्यक्रम के प्रारम्भ में गो-संवर्धन पर पॉवर पाइन्ट प्रजेंटेशन के माध्यम से उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं डॉ.एचव्ही त्रिवेदी ने बताया कि राज्य शासन की ओर से देशी नस्ल की गायों के संवर्धन एवं संरक्षण के लिये अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। विकास खण्ड स्तर पर गोपाल पुरस्कार योजना के तहत श्रेष्ठ गोपालक को पुरस्कृत किया जाता है। कार्यक्रम में डॉ.जीजी गोस्वामी ने पीपीटी के माध्यम से विभाग द्वारा गो-संवर्धन के बारे में किये जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि खेती के साथ यदि पशुपालन का कार्य किया जाता है तो किसानों की आमदनी बढ़ सकती है। डॉ.गोस्वामी ने कहा कि आजकल हम काऊबेस्ड एकानॉमी की बात कर रहे हैं। एक गाय के पालन से पूरे वर्ष दो व्यक्तियों के लिये आवश्यक खर्च जुटाया जा सकता है। वस्तुत: हम गाय को नहीं बल्कि गाय हमें पालने की क्षमता रखती है।

डॉ.गोस्वामी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर आज भी बैलगाड़ी का उपयोग किया जाता है। बैल ट्रेक्टर से भी किफायती होता है। गाय की इंसानों और प्रकृति के साथ में सहजीवन होता है। सम्पूर्ण गांव के विकास के लिये गो-संवर्धन बेहद जरूरी है। पशुपालन विभाग द्वारा गोपालन और संवर्धन को बढ़ावा देने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में सघन कार्य किये जा रहे हैं। पशु उत्पादन की उचित मार्केटिंग करने के लिये ग्रामीणों को प्रेरित करने की आवश्यकता है। दुग्ध सहकारी समितियों का भी विभाग द्वारा गठन किया गया है। गोवंश के पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मप्र पशुपालन संवर्धन बोर्ड का निर्माण भी किया गया है। देशी नस्ल की गाय के पालन को बढ़ावा देने का भी सतत प्रयास किया जा रहा है। इस हेतु विभाग की ओर से गोपालकों को पांच हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाती है। पशुपालन विभाग से गो-संरक्षण का कार्य भी अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

विभाग द्वारा गोकुल उत्सव के तहत गांव-गांव जाकर पशुओं का टीकाकरण किया गया है। वर्तमान में उज्जैन जिले में 12 लाख से अधिक पशुओं का टीकाकरण किया जा चुका है। मध्य प्रदेश शासन द्वारा आगर जिले में सालरिया गो-अभ्यारण्य केन्द्र भी संचालित है। विभिन्न योजनाओं के माध्यम से पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र भी बनाये गये हैं। 'इनाफ कार्ड' की योजना भी शुरू की गई है, जिसमें आधार कार्ड की तरह ही पशु का पूरा डाटा फीड रहता है।

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