अन्तवर्ती फसलों को बढ़ावा देने के साथ ही एकीकृत कृषि प्रणाली का
मॉडल अपनाने से 5 वर्षों में किसानों की आय दोगुनी हो सकेगी
उज्जैन । उज्जैन जिले में किसानों की आय आगामी पांच वर्ष में दोगुनी करने के
अभियान में अन्तवर्ती फसलें लेने एवं एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने पर जोर देते हुए आय दोगुनी
कैसे हो सके, इस पर प्रयास चल रहा है। किसानों को परम्परागत खेती के अलावा पशुपालन,
मधुमक्खी पालन, कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन, सब्जी एवं फल उत्पादन करने की प्रेरणा दी जा रही
है।
किसानों की आय दोगुनी करने के लिये प्रमुख कारक जो तय किये गये हैं, उनमें कृषि लागत
में 15 प्रतिशत की कमी करना, उत्पादकता में 30 प्रतिशत की वृद्धि करना, क्षेत्र विस्तार में 14
प्रतिशत की वृद्धि करना, कृषि, फसल प्रजाति विविधिकरण को 20 प्रतिशत बढ़ाना, कटाई उपरान्त
फसल का समुचित प्रबंधन करके छह प्रतिशत आय में वृद्धि करना और किसानों को बेहतर मूल्य
विपणन व्यवस्था एवं प्रसंस्करण सुविधाएं देकर आय में 15 प्रतिशत बढ़ोत्री करना प्रमुख लक्ष्य हैं।
किसानों को मिट्टी परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरक का उपयोग करने, जैविक खेती को बढ़ावा
देना, जिसमें नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट, बायोगैस, जैव उर्वरक का उपयोग शामिल है। जैविक कीट एवं
फफूंदनाशक को बढ़ावा देकर रासायनिक दवाओं पर निर्भरता को कम करना, समन्वित फसल को
बढ़ावा देना, अन्तवर्ती खेती को लोकप्रिय करना शामिल है। यही नहीं सिंचाई के विभिन्न साधनों जैसे-
स्प्रिंकलर, ड्रिप का अधिक से अधिक उपयेाग, कृषि यंत्रीकरण, ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्त्रोतों को
बढ़ावा देना व मूल्य संवर्धन में शुद्ध लाभ में वृद्धि करना प्रमुख कारक हैं।
क्रॉप पैटर्न में बदलाव
किसानों की आय बढ़ाने के लिये उनको एक ही तरह की फसल बोने से रोकने एवं अन्य
वैकल्पिक फसलों को लेने के लिये प्रेरित करना प्रमुख है। उज्जैन जिले में वर्तमान में खरीफ में
सोयाबीन प्रमुख फसल है, जबकि रबी में गेहूं और कुछ मात्रा में चना। आय को दोगुनी करने के लिये
किसानों को खरीफ फसल में सोयाबीन के विकल्प के रूप में मूंग, उड़द, अरहर तथा रबी में सरसो,
मसूर, अलसी को बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है।
कृषि आय दोगुनी करने के लिये जो रणनीति तैयार की गई है, उसके तहत किसानों को स्वयं
का बीज तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जायेगा। आने वाले समय में किसान सोयाबीन, गेहूं, चना,
अरहर, मूंग, उड़द आदि के उन्नत बीज स्वयं तैयार करेगा एवं परस्पर विनिमय से बीज का परिवर्तन
निरन्तर करता रहेगा। साथ ही किसानों से कहा जायेगा कि वे स्वयं का जैविक खाद एवं कीटनाशक
तैयार करें। इसमें कम्पोस्ट खाद, वर्मी कम्पोस्ट आदि आते हैं। परम्परागत रूप से फसल की बोवनी
करने के स्थान पर किसानों को सोयाबीन, चना में रेज्डबेड व मेड़ नाली पद्धति, अरहर में धारवाड़
पद्धति एवं गेहूं व चना में गहनता प्रणाली से बुवाई कराई जायेगी। गर्मी में गहरी जुताई, बीजोपचार,
बुवाई करने के लिये प्रेरित किया जायेगा। साथ ही जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिये सूक्ष्म सिंचाई
पद्धति का उपयोग किया जायेगा।
प्रजाति प्रतिस्थापन
जिले में फसलों की प्रचलित किस्मों के अलावा उन्नत किस्मों को बढ़ावा दिया जायेगा। उन्नत
किस्मों से जहां एक ओर उत्पादकता में वृद्धि होगी, वहीं नई प्रजातियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता
अधिक होती है। प्रजातियों के प्रतिस्थापन का रोडमेप इस प्रकार है-
मौसम फसल प्रचलित किस्म़ 2018 से 2021 तक प्रस्तावित
किस्में
खरीफ सोयाबीन जेएस-335, जेएस-9560,
जेंएस-9305
शीघ्र पकने वाली जेएस-20, 34,
जेएस-95- 60, मध्यम पकने वाली
आरवीएस-2001- 4, जेएस-20- 29,
एनआरसी-86
उड़द टी-9, पीयू-30, जेयू-2, जेयू-3, पीडीयू-1
मूंग पूसा बैसाखी के-851 एचयूएम-1, 16, 12, पीडीएम-
139, टीजेएम-3
मक्का संकर मक्का संकर मक्का
स्वीट कॉर्न स्वीट कॉर्न
अरहर आईपीसीएल-87, आशा
आईसीपीएल-87- 119
पूसा-991, जेकेएम-189, टीजेटी-
501 एवं संकर किस्में
रबी
गेहूं एस्टीवम-पूर्णा एचआई-1544,
जीडब्ल्यू-332, जीडब्ल्यू-273,
लोक-1 एवं अन्य
एस्टीवम पूर्णा एचआई-1418,
जीडब्लयू-366, जीडब्लयू-4109,
डयूरम पोषण 8663, पूसा अनमोल
एचआई-8737
चना विशाल उज्जैन-21, जेजी-315
एवं अन्य
जेजी-130, जेएकेआई-9218, बीजी-
202, जेजी-11, जेजी-63, जेजी-
16, जेजी-6 काबुली चने के लिये
कृपा, केएजी-2, 3, जेजीके-1,
जॉकी-9218
सरसों वरूणा, पूसा बोल्ड जेएम-1, जेएम-2, जेएम-3, जेएम-
4 एवं अन्य उन्नत किस्म