नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ अरुण की बांसुरी से खिचे चले आते है बच्चे
उज्जैन स्कूली बच्चो को छुट्टी के बाद थोडा रिलेक्स और मूड फ्रेश करने और बच्चो को शिक्षा के बोझ से थोडा संगीत के जरिये हल्का करने का मन बना कर एक शख्स एसे भी है जो स्कुल में आते तो अपने पोती को लेने के लिए लेकिन सभी बच्चो और उनको लेने आने वाले अभिभावकों को अपनी मधुर बासुंरी के जरिये स्कुल परिसर में ही बांधे रखते है. उज्जैन नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ अरुण पांडूरंके की पोती उज्जैन के सेंटमेरी स्कुल में पढाई करती है अपनी पोती को रोज स्कुल में लेने जाते है डॉ अरुण पेशे से नेत्र रोग विशेषग्य रह चुके है फ़िलहाल वे घर पर ही रहते है लेकिन अपने बांसुरी बजाने के शोक को वो आज भी जिन्दा रखे हुए है . और रोजाना अपने पोती के स्कुल परिसर में बांसुरी बजाते है जिसमे अलग तरह के पुराने गाने और राष्ट्र गान भी बजाते है . जिसको सुनकर स्कुल छूटने से पहले बच्चो के परिजन और स्कुल छूटने के बाद बच्चे बड़े शोक से सुनते है और भीड़ लगाकर बांसुरी का आनंद लेते है . दरअसल डॉ अरुण का मानना है की बच्चो और परिजनों को बांसुरी सुनाने के पीछे कारण है की जो परिजन अपने बच्चो को लेने आते है उनका टाइम पास हो जाता है है लेकिन जिन बच्चो की छुट्टी होती है और बाहर निकलकर वे बच्चे पढाई के बोझ के बाद काफी हल्का महसूस करते है होंगे क्युकी संगीत एक अच्छा माध्यम है शांत मन के लिए . और जिस तरह अंग्रेजी स्कुलो में बच्चो पर पढाई का बोझ होता है उसके लिए संगीत सबसे अच्छा माध्यम है .