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हर पालक कर रहा है- फीस वृद्धि पर नियंत्रण का स्वागत


 

उज्जैन। हर माता पिता की इच्छा होती हे कि उसके बेटा बेटी अच्छे स्कूल में पढ़े।
पालक अपनी आमदनी की परवाह किये बिना प्रायवेट स्कूल में अपने बच्चों का एडमिशन करवा देते हैं।
नर्सरी की फीस को आधार बनाकर सोचते हैं कि जैसे-तैसे 12वी तक उसी स्कूल में बच्चे को पढ़ा लेंगे।
लेकिन निजी स्कूल संचालकों ने शिक्षा को व्यवसाय में तब्दील कर दिया है। आये दिन कभी इस बहाने तो
कभी उस बहाने फीस बढ़ाते रहते हैं। कई पालकों पर फीस का बोझ कहर बनकर टूट पड़ता है बीच रास्ते में
ही बच्चों को स्कूल से निकालकर किसी कम फीस वाले स्कूल में बच्चों शिफ्ट करना पड़ता है। स्कूलों की
फीस वृद्धि पर कोई नियंत्रण नहीं है। प्रदेश के सारे स्कूल बेलगाम मनचाही फीस बढ़ाने के लिए स्वतंत्र थे।
लेकिन अब राज्य सरकार फीस वृद्धि के नियंत्रण के लिए विधेयक ला रही है। पालकों के लिए यह विधेयक
आशा की किरण के समान है।
न्यू इंदिरानगर उज्जैन में रहने वाले विजय वर्मा बताते हैं कि राज्य सरकार को फीस पर नियंत्रण
करना ही चाहिए। हमारी वर्षों से इच्छा रही है कि निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगे। वे बताते हैं कि न
केवल फीस बल्कि कोर्स की किताबों की बिक्री ड्रेस आदि में भी स्कूल धांधली करते हैं। इन सब विषयों को
भी विधेयक में स्थान देना चाहिए।
अपनी बच्ची को कान्वेंट स्कूल में पढ़ा रहे राजेश बताते बताते हैं कि जब उन्होंने बच्ची का
एडमिशन करवाया था तब महज 3 हजार रु. वार्षिक फीस थी। आज बढ़कर 30 हजार रु. से अधिक हो गई
है। चार पांच वर्षों में फीस चार गुना बढ़ गई हैं। सीमित आमदनी के पालकों को बच्चों को अच्छी शिक्षा
दिलवाना हो तो यह सब तो भुगतना ही पड़ता है। यह जानकर वे प्रसन्नता व्यक्त करते हैं कि सरकार फीस
नियंत्रण करने जा रही है। उन्हें लगता है कि इस कानून के पास होने से 12वी तक उनकी लड़की की फीस
में दो गुनी चार गुनी वृद्धि नहीं होगी।

सेठीनगर उज्जैन में रहने वाले 57 वर्षीय श्री एम.एल. सोनी अपनी पोती के एडमिशन को लेकर
चिंता में है। वे ऐसे विश्वसनीय स्कूल में पढ़ाना चाह रहे हैं जो बार-बार फीस न बढ़ाये और अच्छी शिक्षा दे।
राज्य शासन द्वारा की जा रही पहल पर वे कहते हैं कि “सरकार सही दिशा में सोच रही है शिक्षा माफियाओं
से लड़ने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए”।
विष्णुपुरा उज्जैन निवासी श्री सतेन्द्र सिंह कहते हैं “क्या वाकई सरकार ऐसा करना भी चाहती है।”
यदि ऐसा हो रहा है तो प्रदेश के पालकों के लिए यह वरदान सिद्ध होने वाला है। हम लोग लम्बे समय से
इस कानून का इंतजार कर रहे हैं।
महानंदानगर निवासी श्री ललित सुधाकर कहते हैं कि फीस नियंत्रण का यह विधेयक सबको शिक्षा का
बराबर अधिकार प्रदान करेगा। वे कहते हैं कि फीस नियंत्रण के साथ-साथ सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर
बढ़ाने के लिए भी कुछ ठोस कार्यवाही की जाना चाहिए। उनका मानना है कि सभी शासकीय अधिकारी
कर्मचारियों के बच्चों को शासकीय स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य होना चाहिए।
कोट मोहल्ला निवासी श्री मोहसिन खान अपने बच्चों को एक प्रतिष्ठित कान्वेंट स्कूल में पढ़ा रहे हैं।
पहली कक्षा की फीस 50 हजार रु. सालाना है। वे कहते हैं कि पहली कक्षा के लिए कुछ कान्वेंट स्कूल साल
के 30 हजार रु. लेते हैं तो कुछ 20 हजार रु.। फीस में इतना बड़ा अन्तर नहीं होना चाहिए। सरकार को कुछ
स्टेण्डर्ड तय करके सभी कान्वेंट स्कूल की फीस नियत कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहली कक्षा में 50
हजार में 50 हजार है तो पांचवी, आठवी और 12वी तक जाते-जाते न जाने कितनी फीस हो जायेगी। अच्छी
बात है फीस वृद्धि पर नियंत्रण करने की बात चल रही है।
स्कूलों की फीस वृ्द्धि नियंत्रण को लेकर राज्य सरकार द्वारा की जा रही है तैयारी का सकारात्मक
प्रभाव पालकों पर पड़ रहा है। वे इस बीमारी पर तगड़ा प्रहार चाहते हैं। राज्य सरकार की इस पहल का हर
कही स्वागत हो रहा है।

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