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जीवन को सार्थक करने वाले दो विषय धर्म व ब्रह्म है -श्री शंकराचार्य जी महाराज


श्री महाकालेष्वर प्रवचन हाॅल में जगत्गुरू की अभ्यर्थना,
अभिनदंन, आर्शीवचन का कार्यक्रम सम्पन्न

        उज्जैन ।  जीवन को सार्थक करने वाले दो विषय धर्म व ब्रह्म है। वेदों का अपूर्व प्रतिपाद भी धर्म और ब्रह्म है व इसीलिए ब्रह्म की सिद्धि के लिए ब्रह्मसूत्र की रचना की गयी है। सबका विज्ञान वेदो द्वारा ही संभव है। वेदों व वेदांग का अध्ययन ही सम्यक है। वेदसम्मत विकास के अभाव में दुषित विकास हो रहा है। यह उद्गार अनन्त श्री विभूषित श्री ऋगवेदिय परम पूज्य पूर्वाम्नाय श्री गोवर्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर श्रीमद्जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने उद्बोधन में व्यक्त कियंे।
श्री महाकालेष्वर मंदिर प्रबन्ध समिति द्वारा श्री महाकालेष्वर प्रवचन हाॅल में सायं 06ः00 बजे अनन्त श्री विभूषित श्री ऋगवेदिय परम पूज्य पूर्वाम्नाय श्री गोवर्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर श्रीमद्जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज  का जगत्गुरू अभ्यर्थना, अभिनदंन, आर्शीवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में श्री शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि, जीव का जगदीष्वर का संगम सुलभ होता है। राकेट, कम्प्युटर, एटम व मोबाईल आदि के युग में कुछ महानुभाव एैसे भी है, जो ईष्वर का अस्तित्व नही मानते। परन्तु कोई प्राणी एैसा नही होता जो ईष्वर का अस्तित्व नही मानता है। नास्तिको को पता नही कि, उनकी चाह का वास्तविक विषय परमात्मा ही है और जो चाह का विषय है, वही आकर्षण का भी विषय है। प्रत्येक अंश अपनी अंषी की ओर आकर्षित होता है। जीव भगवान का अंश है, और हम भगवान को मानते है। यही वेद-वेदांग , वैदिक-वाड्गमय सम्मत ईश्वर है। जीवन को सार्थक करने वाले वेद और वेदांग ही हो सकते है। उन्होने कहा कि, आनादि परम्परा से प्राप्त ज्ञान का विलोप नही होना चाहिए। हमारी संस्कृति या ज्ञान-विज्ञान का विलोपन होगा तो संसार में बचेगा क्या ? तथा वर्तमान षिक्षा पद्धति से मानवता का उद्धार संश्व नही है। दार्षनिक, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक धरातल पर दृष्टियों से सनातन संस्कृति एवं सनातन सिद्धान्त इस राकेट एवं मोबाईल के युग में श्ी सर्वोष्कृट है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबन्ध समिति के प्रषासक श्री प्रदीप सोनी, समिति सदस्य पुजारी प्रदीप गुरू, श्री जगदीश शुक्ला द्वारा शाल, श्रीफल व श्री महाकालेश्वर का प्रसाद देकर सम्मान किया गया। उसके पश्चात डाॅ. मोहन गुप्त ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी। प्रशासक श्री सोनी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि, भारतीय सभ्यता, संस्कृति व विज्ञान सभी धर्म के साथ है। आध्यात्म के बिना इन चीजों की उत्पत्ति संभव नही है और आज के परिवेश में इन संस्कारों को प्राप्त करने के लिए संतो का सानिघ्य आवष्यक हैं। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पीयूष त्रिपाठी ने किया।
कार्यक्रम में समिति सदस्य श्री विभाष उपाध्याय, सिहस्थ केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष श्री माखन सिंह, सहायक प्रशासक श्री सतीष व्यास, सहायक प्रषासनिक अधिकारी द्वव्य श्री एस.पी.दीक्षित, श्री दीलिप गरूड, श्री आषीष पुजारी, श्री अनन्त नारायण मीणा आदि उपस्थित थे।

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