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मंदिरों की परंपरा अनादिकाल से, प्रशासन या पुजारी नहीं बदल सकते


उज्जैन। महाकाल की नगरी में मंदिरों की परंपराओं को लेकर अनर्गल बहस बाजी होती है जो सनातन धर्म के लिए उचित नहीं है। मंदिर एवं उनकी प्राचीन परंपराएं शास्त्र आधारित होती है इसलिए उसका पालन किया जाता है तथा कुछ व्यवस्थाओं को पवित्रता का ध्यान में रखकर बनाया जाता है। वह व्यवस्था लौकीक होती है जो शास्त्र के मुताबिक परंपराएं हैं उसे पुजारी, पुशासन या अन्य किसी को बदलने का अधिकार नहीं है।
यह बात अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के संस्थापक महेश पुजारी ने कही। आपने कहा कि गढ़कालिका मंदिर में मदिरा का भोग नहीं लगाया जाएगा इसके कारण पुजारी परिवार में अकाल मौत होना बताया है। इस विषय पर पुजारी ने कहा है कि सुख दुख, जन्म मृत्यु यह सब विधाता के हाथ में है। देवालय की मर्यादा एवं पवित्रता एवं सत्य का पालन करना पूजा पध्दति का अंग है इसमें कोई त्रुटि होती है तो ही घटना घटती है। मदिरा चढ़ाने के विषय में शास्त्रों को देखा जाना चाहिये तथा मंदिरों में ऐसी परंपरा प्रचलित है इस पर भी अध्ययन करना आवश्यक है। इसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिये। वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि मंदिरों की परंपराओं को शास्त्र संवत लिपिबध्द किया जाना आवश्यक है जिससे किसी परंपरा पर कुठाराघात न हो सके।

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